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रीवा जिले में भ्रष्टाचार की परतें: योजनाओं का पैसा कागज़ पर, धरातल पर अंधेरा Aajtak24 News |
रीवा - प्रदेश की मौजूदा सरकार में विकास और भ्रष्टाचार को लेकर सवालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। आम जनमानस का कहना है कि भ्रष्टाचार नीचे से नहीं, बल्कि ऊपर से शुरू होकर नीचे तक पहुँचता है। रीवा जिले में सांसद और विधायकों द्वारा स्वीकृत कार्यों का अवलोकन किया जाए तो लगभग 50 प्रतिशत कार्य अधूरे या सिर्फ कागज़ों में ही पूरे दिखाए गए हैं।
गाँवों के विकास की सच्चाई
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गांवों को शहरों की तर्ज पर संवारने की योजना बनाई थी। विद्युतीकरण के लिए करोड़ों रुपए स्वीकृत किए गए, पर हकीकत यह है कि कई पंचायतों में काल्पनिक खंभे और बल्ब लगाए गए, जबकि ग्रामीण आज भी अंधेरे में जीने को मजबूर हैं। योजनाओं की राशि पंचायत स्तर पर बराबर-बराबर बांट दी गई और रिकॉर्ड पर सब कुछ सही दिखाने की कवायद हुई।
मजदूरों के नाम पर मशीनों का खेल
सरकार दावा करती है कि मनरेगा जैसी योजनाओं से लाखों लोगों को रोजगार दिया जा रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। कार्यों का बजट मजदूरों के नाम पर तैयार होता है, पर वास्तविक काम जेसीबी मशीनों से कराए जाते हैं। जहां 100 मजदूरों का एक दिन का काम जेसीबी एक घंटे में कर देती है। मजदूरों की मजदूरी की रकम कागजों पर दर्ज होती है और खाते में काल्पनिक नामों से पैसा डाला जाता है। कई मामलों में तो आंगनबाड़ी सहायिका या बाहर नौकरी करने वालों के नाम भी मजदूर सूची में पाए गए हैं।
गंगेव जनपद की गढ़ पंचायत का मामला
रीवा जिले की गढ़ ग्राम पंचायत इसका बड़ा उदाहरण है। पिछले 25–30 वर्षों में यहाँ नाली, सड़क, विद्युतीकरण और कंक्रीट सड़क निर्माण पर करोड़ों रुपए खर्च दिखाए गए हैं। लेकिन धरातल पर गंदी नालियां, टूटी-फूटी सड़कें और अव्यवस्थित बिजली व्यवस्था ही नजर आती हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक पूर्व में 25 लाख रुपए एवं वर्तमान में लाखों लाख रुपए विद्युतीकरण के लिए स्वीकृत किए गए थे। वर्तमान सरपंच ने मरम्मत के नाम पर लाखों रुपए खर्च कर दिए, फिर भी गाँव अंधेरे में है। अब फिर से विद्युत व्यवस्था के नाम पर नई स्वीकृति जारी की गई है, किंतु कार्य कहीं नज़र नहीं आता।
घटिया निर्माण और भ्रष्टाचार की श्रृंखला
नालियों में अधूरे सीमेंट, सड़कों की कम चौड़ाई और घटिया गुणवत्ता के कारण निर्माण कार्य सालभर भी टिक नहीं पाते। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह भ्रष्टाचार केवल सरपंच या सचिव तक सीमित नहीं, बल्कि ऊपर तक जुड़ी हुई लंबी श्रृंखला है, जिसमें हिस्सेदारी बंट जाती है। इस संबंध में गढ़ पंचायत के पूर्व पंच कुबेरनाथ त्रिपाठी तथा वर्तमान जनपद सदस्य के पति उमेश सोनी ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि यहाँ हर स्तर पर गड़बड़ी की गई है और अगर स्वतंत्र जांच हो तो करोड़ों का भ्रष्टाचार सामने आ सकता है।
जिम्मेदारी किसकी?
रीवा संभाग के उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ला लगातार जिले में विकास की नई गाथा लिखने का दावा करते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि उनके आसपास घूमने वाले कुछ प्रभावशाली लोग “विकास अभियान” की आड़ में केवल लक्ष्मी अर्जित अभियान चला रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इन आरोपों की जांच करवाएंगे या यह प्रकरण भी अन्य मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?