अनंत चतुर्दशी: प्रेमानंद महाराज ने बताया गणपति विसर्जन का सही तरीका, कहा- भूलकर भी न करें ये गलती Aajtak24 News

अनंत चतुर्दशी: प्रेमानंद महाराज ने बताया गणपति विसर्जन का सही तरीका, कहा- भूलकर भी न करें ये गलती Aajtak24 News

वृंदावन - आज अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व है, जिसे हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश की विदाई का भी है। 10 दिनों तक धूमधाम से गणपति बप्पा की सेवा-सत्कार करने के बाद भक्तों की आँखें नम हो जाती हैं। हिंदू धर्म में भगवान गणेश को सर्वोच्च पूज्य माना जाता है, इसलिए गणेश चतुर्थी की तरह ही उनके विसर्जन की पूजा में भी कोई कमी नहीं होनी चाहिए। इसी संदर्भ में, वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने गणपति विसर्जन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण नियम बताए हैं और उन गलतियों के बारे में आगाह किया है, जिनसे बचना बेहद जरूरी है।

ऐसे न करें भगवान का अपमान

अक्सर देखा जाता है कि गणपति विसर्जन के दौरान भगवान गणेश की प्रतिमाएँ नदियों, घाटों और तालाबों में इधर-उधर पड़ी रहती हैं। प्रेमानंद महाराज ने अपने हाल ही के एक प्रवचन में इस पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "लोग इस पर्व के दौरान भगवान गणेश की पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से पूजा करते हैं, लेकिन विसर्जन के समय मूर्ति को नदी या तालाब में ऐसे ही डाल देते हैं। बाद में ये मूर्तियां किनारों पर आ जाती हैं और फिर उन्हें जेसीबी जैसी मशीनों से हटाया जाता है। उन्होंने सवाल किया, "जिस भगवान को आप इतने दिन तक प्यार से भोग लगाते हैं, तिलक करते हैं और पूजा करते हैं, उसे ऐसी अनादरपूर्ण स्थिति में डाल देना कहाँ से सही है?" प्रेमानंद महाराज ने कहा कि किसी भी तरीके से भगवान की मूर्ति का अपमान नहीं होना चाहिए।

गणपति विसर्जन का सबसे सही तरीका

प्रेमानंद महाराज ने गणपति विसर्जन का सबसे सम्मानजनक तरीका भी बताया। उन्होंने कहा कि विसर्जन के लिए किसी नदी या तालाब पर जाने के बजाय, घर में ही एक छोटा तालाब या कुंड बना लेना चाहिए और उसमें ही गणपति का विसर्जन करना चाहिए। ऐसा करने से न तो जेसीबी से मूर्तियों को उठाने की नौबत आएगी और न ही उन पर कचरा इकट्ठा होगा। उन्होंने आगे कहा कि अगर घर में तालाब बनाना संभव न हो, तो जमीन में एक गड्ढा बनाकर ही मूर्ति का विसर्जन कर देना चाहिए। उनका मानना है कि यह तरीका पर्यावरण के अनुकूल भी है और भगवान के प्रति सम्मान भी दर्शाता है। यह संदेश देता है कि पूजा-पाठ में श्रद्धा और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण हैं, और हमें भगवान की प्रतिमा का अपमान नहीं करना चाहिए, भले ही विदाई का समय हो।

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