संजय गांधी अस्पताल: एक मिसाल
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के समय बना संजय गांधी अस्पताल आज भी मजबूती से खड़ा है। इसकी दीवारें और छतें 25 साल बाद भी बिना किसी बड़ी मरम्मत के टिके हुए हैं। यह इस बात का सबूत है कि उस समय जनहित में काम किया गया था, और सरकारी पैसों का सही इस्तेमाल हुआ था। यह इमारत दिखाती है कि अगर नीयत साफ हो, तो विकास टिकाऊ होता है।
सुपर स्पेशलिटी अस्पताल: भ्रष्टाचार का प्रतीक
इसके ठीक उलट, भाजपा सरकार में बना सुपर स्पेशलिटी अस्पताल दो साल में ही खराब होने लगा है। दीवारों का प्लास्टर उखड़ रहा है, और छतें टपक रही हैं। करोड़ों रुपये के अत्याधुनिक उपकरण भी खराब पड़े हैं। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का सीधा सबूत है। यह बताता है कि 'विकास' के नाम पर कैसे जनता के पैसे का दुरुपयोग किया गया है। इस बर्बादी का सीधा जिम्मेदार विंध्य क्षेत्र के वे नेता हैं, जिन्होंने विकास का श्रेय तो लिया, लेकिन इस भ्रष्टाचार की जिम्मेदारी नहीं ली। विकास का असली मतलब सिर्फ उद्घाटन करना नहीं, बल्कि ऐसी इमारतें बनाना है जो समय की कसौटी पर खरी उतरें। इस मामले में, भाजपा शासन पूरी तरह से विफल रहा है।
रीवा की जनता के मन में यह सवाल है कि क्या यही 'अच्छे दिन' हैं, जिनका वादा किया गया था? क्या यही पारदर्शिता है? या यह जनता के साथ किया गया एक सोचा-समझा धोखा है? अब समय आ गया है कि सरकार इस पर जवाब दे। एक अस्पताल की दीवारें दरकने का मतलब सिर्फ इमारत का कमजोर होना नहीं है, बल्कि पूरी व्यवस्था और जनता के भरोसे का टूटना है।संजय गांधी अस्पताल सत्यनिष्ठा की निशानी है, जबकि सुपर स्पेशलिटी अस्पताल झूठे वादों और टूटी हुई उम्मीदों का प्रतीक बन गया है। अब सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे लोग इस सच्चाई को स्वीकार करेंगे और इसकी जिम्मेदारी लेंगे? अगर जाँच की जाए, तो ऐसी और भी कई सरकारी इमारतें और सड़कें सामने आ सकती हैं।