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खाद संकट से रीवा-मऊगंज संभाग में हाहाकार: किसानों की दुर्दशा, बिचौलिए मालामाल, क्या यह है सुशासन? Aajtak24 News |
रीवा - रीवा और मऊगंज संभाग में खरीफ फसल 2025-26 के सीजन में खाद का भीषण संकट गहरा गया है। इस समस्या ने किसानों को दर-दर भटकने पर मजबूर कर दिया है और केंद्र व राज्य सरकार की व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
निजी विक्रेताओं की हड़ताल और खाद की भारी कमी
जिले में खाद की कमी का एक बड़ा कारण 555 निजी विक्रेताओं की हड़ताल है। इनमें से केवल 14 विक्रेताओं ने खाद बेची, जबकि 541 दुकानें बंद रहीं। यदि प्रत्येक दुकान से औसतन दो ट्रक खाद भी वितरित होती, तो क्षेत्र में 1082 ट्रक खाद की कमी हुई है। इस हड़ताल ने गाँव-गाँव तक खाद पहुँचाने के सिस्टम को पूरी तरह से बाधित कर दिया है।
बिचौलियों की चांदी और किसानों की मजबूरी
खाद की कमी का फायदा बिचौलिए उठा रहे हैं। चाकघाट और हनुमना बॉर्डर से लगभग 2000 ट्रक खाद रीवा और मऊगंज जिले में लाई गई, जिसे ₹800 से ₹1000 प्रति बोरी के हिसाब से बेचा जा रहा है। इसका सीधा नुकसान किसानों को हो रहा है, जिन्हें मजबूरी में ऊँचे दामों पर खाद खरीदनी पड़ रही है।
कुव्यवस्था का खामियाजा भुगतते किसान
प्रशासन की लापरवाही के कारण खाद वितरण केंद्रों पर अराजकता का माहौल बन गया है। करहिया मंडी में पुलिस ने किसानों पर लाठीचार्ज किया, जिसमें कई निर्दोष किसान घायल हुए, जबकि उद्दंडता फैलाने वाले भाग निकले। इसी तरह उमरी में भी भगदड़ मची, जिसमें कई महिलाएँ बेहोश हो गईं। ये घटनाएँ मानवता को शर्मसार करने वाली हैं और यह दिखाती हैं कि किसानों के प्रति प्रशासन कितना संवेदनहीन है।
सत्ता पर सवाल: सेवक या शासक?
यह सरकार, जो चुनावों के समय किसान सम्मान निधि और लाडली बहना जैसी योजनाओं का ढिंढोरा पीटती है, वह अब सेवक की बजाय शासक की तरह व्यवहार कर रही है। किसानों का आरोप है कि सरकार की गलत नीतियों और कुप्रबंधन के कारण उनकी यह दुर्दशा हो रही है। यदि समय पर खाद उपलब्ध नहीं हुई, तो उनकी पूरी फसल बर्बाद हो जाएगी, और तब 'का वर्षा जब कृषि सुखाने' वाली कहावत सच हो जाएगी। रीवा संभाग के सभी सांसद, विधायक और मंत्री, जिन्हें जनता ने रिकॉर्ड वोटों से जिताया है, उन्हें इस समस्या पर ध्यान देना चाहिए। जनता के एहसान का बदला इस तरह से चुकाना ठीक नहीं है, जहाँ 80% किसान कुचले जा रहे हैं और 20% बिचौलिए मालामाल हो रहे हैं। यह सरकार के न्याय और सुशासन के वादों पर एक बड़ा सवाल है।