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एक विवादित प्रतिमा का अनावरण: राजनीतिक विरासत और प्रतीकात्मक संघर्ष का प्रदर्शन! Aajtak24 News |
रीवा - आज विवादों के घने बादलों के बीच, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा का अनावरण एक ऐसे समारोह में संपन्न हुआ, जो कम एक श्रद्धांजलि और अधिक कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक शक्ति के प्रदर्शन के समान प्रतीत हुआ। इस घटना ने एक सार्वजनिक स्थल को राजनीतिक दावों और प्रतिदावों के एक जटिल चेसबोर्ड में परिवर्तित कर दिया। पुलिस लाइन चौराहा, एक स्थान जो राज्य की सत्ता और अनुशासन का प्रतीक है, आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेतृत्व की उपस्थिति से गुलज़ार था। इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, सीडब्लूसी सदस्य कमलेश्वर पटेल, पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया, अमरपाटन विधायक एवं पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेंद्र सिंह, और सतना विधायक डब्बू कुशवाहा सहित पार्टी के तमाम दिग्गज चेहरे मौजूद रहे। इस शक्तिशाली उपस्थिति ने इस आयोजन को एक साधारण स्मरणोत्सव से कहीं अधिक, एक स्पष्ट राजनीतिक विवरण का रूप दे दिया।
कार्यक्रम के केंद्र में श्री तिवारी थे, जिन्हें पार्टी के नेताओं द्वारा 'विंध्य के विकास पुरुष' के रूप में संबोधित किया गया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने अपने संबोधन में तिवारी की विरासत को "सैद्धांतिक राजनीति" और "गरीब, शोषित वंचित की आवाज" के रूप में रेखांकित किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे "दादा के बनाए पदचिन्हों पर चलें," एक ऐसा आदर्शवादी नारा जो अक्सर राजनीतिक उत्तराधिकार की लड़ाई में इस्तेमाल होता है। हालाँकि, इस एकजुटता और आदर्शवाद के भाषणों के पीछे, प्रतिमा की स्थापना को लेकर हुए विवाद का साया मंडरा रहा था। यह तथ्य कि इस प्रतिमा की स्थापना "विवादों के बाद" हुई, इस पूरे कार्यक्रम पर एक प्रश्नचिह्न लगाता है। सार्वजनिक भूमि, विशेष रूप से एक प्रशासनिक और कानून- व्यवस्था से जुड़े चौराहे पर, किसी एक राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्ति की प्रतिमा का स्थापित होना, निश्चित रूप से तटस्थता और सार्वजनिक हित के सवाल खड़े करता है।
विन्ध के सबसे बड़े सामंत वाद के घोर विरोधी नेता गरीबो के मशीहा सबसे युवा विधायक भइया से दादा तक का सफर तय किया, यह कार्यक्रम केवल एक नेता को श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि एक प्रतीकात्मक अधिग्रहण का प्रयास प्रतीत होता है, एक सार्वजनिक स्थान को एक विशिष्ट राजनीतिक से जोड़ने का। यह उस स्थान पर एक दावेदारी है, जो सैद्धांतिक रूप से समस्त जनता का है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह द्वारा प्रतिमा का अनावरण करना स्वयं में एक सार्थक कार्य था। यह कांग्रेस की वरिष्ठ पीढ़ी की एकजुटता, पार्टी के इतिहास और अपनी विरासत पर दावे का प्रदर्शन था। यह वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस की 'लड़ने की क्षमता' का एक सूक्ष्म संकेत भी था। अंततः आज का कार्यक्रम एक बहुआयामी घटना थी। एक सतह पर, यह एक सम्मानित नेता के लिए एक योग्य श्रद्धांजलि थी। परंतु एक गहरे स्तर पर, यह राजनीति के उस जटिल नृत्य का हिस्सा था जहाँ इतिहास, विरासत और सार्वजनिक स्थान का उपयोग वर्तमान राजनीतिक संघर्ष में हथियार के रूप में किया जाता है। श्री तिवारी की प्रतिमा अब केवल एक स्मारक नहीं, बल्कि एक विवाद का बिंदु, एक राजनीतिक प्रतीक और कांग्रेस के लिए एक एकीकृत स्तंभ बन गई है। इसका अनावरण समारोह उस सतत लड़ाई का एक अध्याय था जहाँ अतीत, वर्तमान की लड़ाई लड़ने के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार बन जाता है।