रासायनिक खाद पर निर्भरता कम करने के लिए होंगी अब गांव-गांव प्राकृतिक खेती Aajtak24 News

रासायनिक खाद पर निर्भरता कम करने के लिए होंगी अब गांव-गांव प्राकृतिक खेती Aajtak24 News

रीवा/गंगेव - रासायनिक खाद पर किसानों की निर्भरता कम करने और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से, राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन के तहत गंगेव में ब्लॉक स्तरीय निगरानी समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक की अध्यक्षता जनपद पंचायत गंगेव की मुख्य कार्यपालन अधिकारी प्राची चतुर्वेदी ने की। बैठक में कृषि, उद्यानिकी और आजीविका मिशन के वरिष्ठ अधिकारी, प्रगतिशील किसान और एफपीओ प्रतिनिधि शामिल हुए। वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी शिवसरण सरल और ब्लॉक प्रबंधक दीपक कुमार श्रीवास्तव ने एजेंडावार विभिन्न बिंदुओं पर चर्चा की।

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए मुख्य बिंदु:

  • पात्र किसानों का पंजीकरण: समिति ने कदैला, खरहरी और सरई क्लस्टर के गांवों में पात्र किसानों के पंजीकरण की समीक्षा की।

  • कृषि सखियों को प्रस्ताव: आजीविका मिशन से प्राप्त कृषि सखियों के प्रस्तावों पर भी चर्चा हुई और उनका अनुमोदन किया गया।

  • प्रोत्साहन राशि: प्राकृतिक खाद बनाने वाले किसानों को प्रति एकड़ 4000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह योजना उन किसानों के लिए है जिनके पास एक एकड़ से अधिक कृषि भूमि है और वे गौ-पालन करते हैं।

  • जैव आदान की पूर्ति: जैव आदान (जैविक सामग्री) की आपूर्ति के लिए बीआरसी के आवेदनों पर चर्चा की गई।

  • किसानों का ऑनलाइन आवेदन: सरई, भौखरीखुर्द, कोल्हाई, खरहरी, बेलवाकुर्मीयान, बेलवाबड़गईयान, कदैला, जोड़ोंरी और धुंधकी गांवों के एक एकड़ से अधिक भूमि वाले किसानों और महिलाओं से ऑनलाइन आवेदन आमंत्रित किए गए हैं।

प्राकृतिक खाद पर जोर:

वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी शिवसरण सरल ने कृषि सखियों और किसानों के साथ बीजामृत, जीवामृत और नीमास्त्र जैसे प्राकृतिक खाद बनाने की विधियों पर चर्चा की। वहीं, ब्लॉक प्रबंधक प्रियरंजन पांडे ने 'एक बगिया मां के नाम' पहल और मानव स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक खेती के महत्व पर जोर दिया।

गौ-संवर्धन और एफपीओ की भूमिका:

गंगेव एग्रो फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने समिति के सदस्यों के साथ गौ-संवर्धन और जैव आदान, जैसे गोबर और गोमूत्र, की आपूर्ति के लिए गौशाला प्रबंधन के माध्यम से काम करने पर चर्चा की। इस पहल से उम्मीद है कि क्षेत्र के किसान धीरे-धीरे रासायनिक खाद पर अपनी निर्भरता कम कर पाएंगे और एक स्वस्थ और टिकाऊ कृषि व्यवस्था की ओर बढ़ेंगे।


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