![]() |
शहडोल में ‘जमीन घोटाला’: चरनोई और सरकारी जमीन का फर्जी हस्तांतरण, रीवा के प्रभारी मंत्री पर आरोप Aajtak24 News |
शहडोल - मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल शहडोल जिले में एक बड़े 'जमीन घोटाले' का खुलासा हुआ है, जिसने राजस्व विभाग की कार्यप्रणाली और राजनीतिक संरक्षण पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। आरोप है कि ब्यौहारी ब्लॉक के खरौली गांव में राजस्व अधिकारियों ने मिलकर चरनोई और गैरहकदार भूमि (सरकारी जमीन) को अवैध तरीके से अपने रिश्तेदारों के नाम पर दर्ज कर दिया और बाद में उसे भूमाफिया को बेच दिया। इस घोटाले में करीब 200 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन का सौदा होने का अनुमान है।
तहसीलदार और पटवारी पर रिश्तेदारों को 'मालिक' बनाने का आरोप
जानकारी के अनुसार, खरौली गांव में लगभग 100 एकड़ सरकारी जमीन, जिसमें चरनोई (पशुओं के चरने के लिए आरक्षित) और गैरहकदार (राज्य सरकार की संपत्ति) भूमि शामिल थी, उसे नियमों को ताक पर रखकर निजी संपति बना दिया गया। आरोप है कि इस अवैध काम को अंजाम देने में तहसीलदार और संबंधित पटवारी शामिल थे। उन्होंने अपने परिजनों, पत्नी और रिश्तेदारों के नाम पर इन जमीनों का फर्जी हस्तांतरण किया और बाद में इसे करोड़ों रुपये में बेच दिया। स्थानीय सूत्रों और कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता विनोद शर्मा के अनुसार, इस "फर्जी खेल" के जरिए केवल एक गांव में 200 करोड़ रुपये की सरकारी जमीन का लेन-देन हुआ है। यह घोटाला न सिर्फ राजस्व विभाग की लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि शहडोल, उमरिया और अनूपपुर जैसे आदिवासी जिलों में इस तरह की कितनी जमीनें अवैध रूप से बेची गई हैं।
राजनीतिक संरक्षण के गंभीर आरोप
इस मामले में राजनीतिक संरक्षण के आरोप भी लग रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने शहडोल जिले के प्रभारी मंत्री और रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ल पर उंगली उठाते हुए कहा है कि उनके "इशारे" या "संरक्षण" के बिना इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं था। लोगों का मानना है कि जब प्रदेश स्तर पर मंत्री और बड़े नेता आंखें मूंद लेते हैं, तभी तहसील स्तर के अधिकारी इस तरह के बड़े भ्रष्टाचार को अंजाम देने की हिम्मत जुटा पाते हैं। 'विकास पुरुष' के नाम से प्रसिद्ध राजेंद्र शुक्ल पर लगे ये आरोप काफी गंभीर हैं और जनता में असंतोष पैदा कर रहे हैं।
गरीबों और आदिवासियों पर सीधा असर
यह जमीन घोटाला सीधे तौर पर आदिवासी और गरीब समुदायों को प्रभावित करता है। शहडोल, उमरिया और अनूपपुर जैसे आदिवासी-बहुल क्षेत्रों में चरनोई और सरकारी जमीनें पशुपालकों और गरीब किसानों की आजीविका का मुख्य आधार होती हैं। इन जमीनों के बिकने से गांवों में मवेशियों के चरने की जगह कम हो रही है, जिससे पशुपालन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ रहा है।
प्रशासन की चुप्पी और जनता की मांग
इस बड़े घोटाले के बावजूद, जिला प्रशासन ने अब तक कोई ठोस जांच शुरू नहीं की है, और न ही शासन स्तर से कोई कार्रवाई हुई है। ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने कहा है कि खरौली गांव सहित पूरे संभाग में चरनोई और गैरहकदार जमीनों की जांच एसआईटी (SIT) या लोकायुक्त से कराई जाए, और दोषी अधिकारियों और उनके संरक्षकों के खिलाफ सख्त आपराधिक कार्रवाई की जाए।