गौशालाओं के नाम पर 'कागजी खेल'? रीवा में लगे 5 लाख रुपये के सालाना गबन के आरोप Aajtak24 News

गौशालाओं के नाम पर 'कागजी खेल'? रीवा में लगे 5 लाख रुपये के सालाना गबन के आरोप Aajtak24 News

रीवा -  रीवा-मऊगंज क्षेत्र में गौ संरक्षण योजनाओं को लेकर एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जिसने सरकार की पारदर्शी योजनाओं और प्रशासनिक निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक वायरल वीडियो में एक ग्रामीण ने दावा किया है कि उनके घर पर एक पंजीकृत गौशाला चल रही है, जहाँ मवेशी भी नहीं हैं, और वे इसके लिए सरकार से हर साल ₹5 लाख ले रहे हैं। यह बयान बताता है कि कैसे गौ संरक्षण की योजनाएं केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गई हैं।

वीडियो में लगे गंभीर आरोप

वीडियो में गाँव का एक व्यक्ति बेखौफ होकर यह दावा कर रहा है कि वह 'अपनी समझ से' हर साल ₹5 लाख की राशि ले रहा है। यह आरोप इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि सरकार गौ संरक्षण के लिए लगातार प्रयास करने का दावा करती है। अगर यह आरोप सही हैं, तो यह सीधे तौर पर प्रशासन की लापरवाही और योजनाओं के दुरुपयोग को दर्शाता है। यह सवाल उठाता है कि आखिर बिना किसी जाँच या निरीक्षण के इतनी बड़ी रकम का भुगतान कैसे किया जा रहा है।

विभाग ने आरोपों को बताया निराधार

वहीं, इस मामले पर जब गंगेव के संबंधित विभाग से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। विभाग का कहना है कि न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार गौ संरक्षण के नाम पर किसी भी एनजीओ या व्यक्ति को ऐसी कोई राशि सीधे तौर पर देती है। विभाग के अनुसार, गौशालाओं को सिर्फ अनुदान दिया जाता है, और वायरल वीडियो में किए गए दावे पूरी तरह से निराधार हैं।

आंकड़ों की कमी से बढ़ी आशंका

हालाँकि, विभाग के खंडन के बावजूद, स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाई है। प्रशासनिक स्तर पर पंजीकृत गौशालाओं की संख्या और उन्हें अब तक दी गई कुल राशि का कोई आधिकारिक आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया गया है। पारदर्शिता की कमी के कारण ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों की आशंकाएँ और बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि अगर सब कुछ पारदर्शी है, तो प्रशासन इन गौशालाओं की सूची और खर्च का ब्यौरा क्यों नहीं जारी कर रहा? ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने अब मांग की है कि रीवा-मऊगंज क्षेत्र की सभी पंजीकृत गौशालाओं की सूची तुरंत सार्वजनिक की जाए। इसके साथ ही, इस बात की गहन जाँच की जाए कि क्या वास्तव में इन गौशालाओं को कोई सरकारी राशि मिली है और उसका उपयोग सही तरीके से हुआ है या नहीं। यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या ये गौशालाएँ सिर्फ कागजों पर ही मौजूद हैं, और क्या इन योजनाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक पहुँच रहा है। फिलहाल, यह मामला प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रशासन इस पर कब और कैसी कार्रवाई करता है, और क्या गौ संरक्षण के नाम पर चल रहे इस कथित 'खेल' का पर्दाफाश हो पाता है।


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