रीवा में चरमराई यातायात व्यवस्था: सोमवार को शहर में घंटों लगा जाम, 40 मिनट तक फंसी रही एंबुलेंस Aajtak24 News

 
रीवा में चरमराई यातायात व्यवस्था: सोमवार को शहर में घंटों लगा जाम, 40 मिनट तक फंसी रही एंबुलेंस Aajtak24 News

रीवा - रीवा शहर में सोमवार का दिन एक बार फिर यातायात की बदहाली का प्रतीक बन गया। सुबह से देर शाम तक शहर की प्रमुख सड़कों पर वाहन रेंगते रहे, जिससे आम जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। इस अव्यवस्था का सबसे चिंताजनक पहलू तब सामने आया, जब एक गंभीर मरीज को ले जा रही एंबुलेंस गुढ़ चौराहा से अस्पताल चौराहा होते हुए धोबिया टंकी मार्ग पर करीब 40 मिनट तक जाम में फंसी रही। इस घटना ने यातायात प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं, और लोग पूछ रहे हैं कि आखिर ऐसे समय में यातायात पुलिस कहाँ थी?

प्रमुख चौराहों पर लगा घंटों जाम

सोमवार को शहर के लगभग सभी मुख्य चौराहे जाम से जूझते रहे। गुढ़ चौराहा, अस्पताल चौराहा, धोबिया टंकी, अमहिया और कलेक्ट्रेट के आसपास घंटों तक यातायात अव्यवस्थित रहा। फोर्ट रोड पर तो स्थिति इतनी खराब थी कि स्वयं नगर पुलिस अधीक्षक भी आधे घंटे तक जाम में फंसी रहीं। यह इस बात का प्रमाण है कि शहर की यातायात व्यवस्था कितनी चरमरा गई है।

त्योहार और सोमवार का बहाना नहीं चलेगा

अक्सर यातायात अधिकारी जाम के लिए त्योहारों या सोमवार की भीड़ को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। लेकिन यह एक बहाना बनकर रह गया है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि जब त्योहारों या सोमवार को भीड़ बढ़ना तय होता है, तो यातायात विभाग इसके लिए क्या तैयारी करता है? क्या संवेदनशील चौराहों और मार्गों के लिए कोई ठोस ट्रैफिक प्लान बनाया गया था? क्या भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया था? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या एंबुलेंस और अन्य आपातकालीन वाहनों के लिए कोई वैकल्पिक या ग्रीन कॉरिडोर मार्ग तय किया गया था? इन सभी सवालों का जवाब देना शायद विभाग के लिए मुश्किल होगा।

जनता बेहाल, जिम्मेदार अधिकारी लापरवाह

शहरवासी रोजाना इस तरह के जाम से जूझते हैं, लेकिन यातायात प्रबंधन का हाल जस का तस बना हुआ है। जिम्मेदार अधिकारी हर बार बहाने बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं, जबकि हकीकत यह है कि रीवा जैसे तेजी से विकसित हो रहे शहर में ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए एक मजबूत और दूरगामी योजना का अभाव है। यातायात पुलिस की भूमिका केवल चालान काटने तक ही सीमित दिखती है, जबकि असली समस्या को हल करने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

यह घटना शहर के प्रशासन से कई बड़े सवाल पूछती है: क्या यातायात पुलिस अपनी जिम्मेदारी सिर्फ चालान काटने तक सीमित रखेगी? क्या त्योहारों और साप्ताहिक भीड़ का पूर्वानुमान लगाना इतना मुश्किल है? और सबसे जरूरी, क्या यह सुनिश्चित करने के लिए कोई जिम्मेदारी तय की जाएगी कि एंबुलेंस जैसी जरूरी सेवाएं जाम में न फंसें? रीवा की जनता अब इस अव्यवस्था से मुक्ति चाहती है और उम्मीद करती है कि प्रशासन इस गंभीर समस्या को गंभीरता से लेगा।


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