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मनगवा में उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल का जन्मोत्सव भव्य, लेकिन जनता की मूल समस्याओं पर अब भी ताले – प्रशासन की आंखें कब खुलेंगी Aajtak24 News |
रीवा/मनगवा - मनगवा क्षेत्र इन दिनों उपमुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल के जन्मोत्सव के भव्य आयोजन की तैयारियों में सराबोर है। गांव से लेकर कस्बों तक पोस्टर-बैनर, पंपलेट और स्वागत द्वार सज चुके हैं। कार्यकर्ताओं की भीड़, नारों की गूंज और रंगीन रोशनी से पूरा क्षेत्र उत्सवमय हो उठा है। लेकिन इस चमक-दमक के बीच जनता की असली समस्याएं धूल खा रही हैं। सवाल यह है कि प्रशासन की आंखें कब खुलेंगी? या फिर क्या यह आयोजन केवल राजनीतिक प्रदर्शन और काली कमाई को सफेद करने का साधन बनकर रह जाएगा?
मनगवा की गौरवशाली परंपरा और उपेक्षा
मनगवा विधानसभा ने देश और प्रदेश को कई महान नेता दिए – पूर्व सांसद जमुना प्रसाद शास्त्री, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्रीनिवास तिवारी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम, विधायक गुड़ नागेंद्र सिंह, पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी और पूर्व विधायक मनगवां रुक्मणी रमन प्रताप सिंह जैसी विभूतियों ने इस क्षेत्र को ऐतिहासिक पहचान दिलाई। लेकिन आज स्थिति यह है कि इस आयोजन में इन विभूतियों की स्मृति और योगदान तक को जगह नहीं दी गई। न उनका नाम, न उनकी विरासत। जनता में यही चर्चा है कि "अपने घर की नींव भुलाकर पराए ईंट-पत्थरों से इमारत खड़ी करने की कोशिश क्यों हो रही है?"
आयातित नेतृत्व और खोखली दिखावेबाजी
कार्यक्रम में स्थानीय नेतृत्व की बजाय बाहर से लाए गए नेताओं पर ज्यादा जोर है। जनता सवाल कर रही है कि जब क्षेत्र में अपनी ही राजनीतिक विरासत इतनी मजबूत है, तो आयातित नेतृत्व पर क्यों निर्भर होना पड़ रहा है? क्या यह केवल शक्ति प्रदर्शन और चकाचौंध के लिए किया जा रहा है? लोग यह भी कहते हैं कि इस आयोजन पर खर्च हो रहे लाखों-करोड़ों रुपए कहीं न कहीं उन पैसों से आ रहे हैं जिनकी जड़ें काली कमाई से जुड़ी हैं। जो लोग ईमानदारी से मेहनत करते हैं, वे इतना खर्च नहीं कर सकते, लेकिन जिनके पास बिना मेहनत की कमाई है वे पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। यही कारण है कि यह आयोजन जितना भव्य है, उतना ही संदेहों से घिरा हुआ है।
जनता की पीड़ा – अब भी अनसुनी
मनगवा क्षेत्र की असल तस्वीर उत्सव के पोस्टरों और बैनरों से नहीं झलकती। बल्कि कार्यों से चमकती है। मनगवां के नेताओं की विभूति भारत के साथ प्रदेश में अपनी प्रतिभा की झलक दिखाई । किंतु सड़कों पर आवारा पशुओं का आतंक है, किसान खाद की कमी से परेशान हैं, युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा और गांवों में मूलभूत सुविधाएं अब भी अधूरी हैं। प्रशासन के सामने बार-बार यही मुद्दे उठाए गए हैं, लेकिन समाधान कहीं नजर नहीं आता। अगर उपमुख्यमंत्री के जन्मोत्सव जैसे बड़े मंच पर भी इन समस्याओं पर चर्चा नहीं होती, तो जनता की उम्मीदें आखिर कब पूरी होंगी?
रीवा का विकास बनाम मनगवा की अनदेखी
सच यह है कि रीवा जिला संभाग पूर्व में भी विकास की राह पर आगे बढ़ रहा है। जिसमें विश्वविद्यालय, सैनिक स्कूल, चिकित्सा संस्थान और नई परियोजनाओं ने जिले को नई पहचान दी है। किंतु आज के विकास को देख कर पूर्व के विकाश कार्य को पीछे नहीं छोड़ सकते है। क्या विकास सिर्फ शहरों तक सीमित रह जाएगा और गांव-देहात केवल नारेबाजी और राजनीतिक आयोजनों तक सीमित रहेंगे?
प्रशासन की आंखें अब भी बंद
जनता का यह कहना कड़वा जरूर है लेकिन सच है – "अगर इतने सालों में प्रशासन की आंखें नहीं खुलीं तो अब क्या खुलेंगी?" किसान बरसात में अपनी फसलों को बचाने के लिए तरस रहा है, पशु पालक आवारा मवेशियों से जूझ रहे हैं, और गरीब परिवार रोटी-कपड़ा-रोजगार की जद्दोजहद में हैं। लेकिन प्रशासन के लिए सबसे बड़ा मुद्दा आयोजन की भीड़ और भव्यता को दिखाना बन गया है।
जनता की आवाज – समाधान चाहिए, न कि दिखावा
जनता यह चाहती है कि करोड़ों रुपए पोस्टरों और बैनरों पर खर्च करने की बजाय आवारा पशुओं की रोकथाम, खाद की उपलब्धता, रोजगार योजनाओं और किसानों की कर्जमाफी जैसे मुद्दों पर ठोस कदम उठाए जाएं। लोग यह भी कहते हैं कि अगर प्रशासन अब भी नहीं जागा तो आने वाले समय में जनता खुद अपने फैसले से जवाब देगी। आरक्षण के बाद मनगवां विधानसभा की विकास की गति रुकी थीं इस आयोजन के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि क्या मनगवां विधानसभा विकास की रप्तार पकड़े गा या फिर ऐसे ही चलता रहे गा। मनगवा में उपमुख्यमंत्री का जन्मोत्सव निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक अवसर है, लेकिन यदि इस अवसर पर जनता की आवाज को अनसुना किया गया तो यह आयोजन इतिहास के पन्नों में केवल "चकाचौंध का उत्सव" बनकर रह जाएगा। प्रशासन और नेताओं को यह समझना होगा कि जनता सिर्फ नारों और पोस्टरों से नहीं बल्कि जमीनी हकीकत से संतुष्ट होती है। अब भी समय है – अगर प्रशासन की आंख खुले। लेकिन अगर इतने वर्षों में नहीं खुलीं, तो जनता का सवाल वाजिब है – "अब क्या खुलेंगी?"