![]() |
जगदीप धनखड़ से राधाकृष्णन तक 180 डिग्री का टर्न: उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन में बदल गई भाजपा की रणनीति Aajtak24 News |
नई दिल्ली - केंद्र में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन ने उपराष्ट्रपति पद के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। यह फैसला पिछले उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के चयन से पूरी तरह अलग है और भाजपा की बदलती प्राथमिकताओं को साफ तौर पर दर्शाता है। जहां 2022 में भाजपा ने जाटों को साधने की रणनीति अपनाई थी, वहीं अब वह दक्षिण भारत और ओबीसी समुदाय पर ध्यान केंद्रित करती दिख रही है। जगदीप धनखड़ का इस्तीफा और उनकी जगह सीपी राधाकृष्णन का नामांकन इस बदलाव का एक स्पष्ट संकेत है।
जगदीप धनखड़ का चयन: जाटों को साधने की कवायद
2022 में, जब देश में किसान आंदोलन की गूंज शांत हो रही थी, तब भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद के लिए जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाया था। इस कदम को राजनीतिक विश्लेषकों ने जाट समुदाय को संदेश देने की एक सोची-समझी रणनीति के रूप में देखा। धनखड़ एक प्रभावशाली जाट नेता हैं, और उनका चयन जाटों के बीच भाजपा के प्रति पैदा हुई नाराजगी को कम करने की एक कोशिश थी। धनखड़ की पहचान एक मुखर और आक्रामक नेता के रूप में रही है। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में ममता बनर्जी सरकार के साथ उनका टकराव अक्सर सुर्खियों में रहा। इस दौरान उन्होंने सरकार की नीतियों की तीखी आलोचना की, जिससे उनकी छवि एक ऐसे नेता के रूप में बनी जो सत्ता के एजेंडे को दृढ़ता से आगे बढ़ा सकते हैं। जब वह राज्यसभा के सभापति बने, तो उनका यही मुखर स्वभाव सदन में भी दिखा। विपक्ष ने अक्सर उन पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया। उनका कार्यकाल कई बार हंगामेदार रहा, और राज्यसभा में एक संतुलित माहौल बनाने में उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
सीपी राधाकृष्णन का चयन: दक्षिण और ओबीसी पर नया फोकस
अब, तीन साल बाद, उसी पद पर सीपी राधाकृष्णन का चयन भाजपा की एक नई रणनीति को दर्शाता है। राधाकृष्णन तमिलनाडु के रहने वाले हैं और प्रभावशाली ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। भाजपा लंबे समय से दक्षिण भारत, खासकर तमिलनाडु और केरल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जहां उसे कर्नाटक जैसी सफलता नहीं मिल पाई है। राधाकृष्णन के नामांकन को अगले साल होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है। उनका चयन दक्षिण में भाजपा के विस्तार की योजनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। राधाकृष्णन का स्वभाव जगदीप धनखड़ से बिल्कुल अलग है। उन्हें एक सुलझे हुए, सौम्य और समावेशी नेता के रूप में जाना जाता है। भाजपा ने संभवतः यह संदेश देने की कोशिश की है कि राज्यसभा को आक्रामकता नहीं, बल्कि संतुलन और सर्वसम्मति की जरूरत है। राधाकृष्णन का शांत और मिलनसार स्वभाव इस संवैधानिक पद के लिए अधिक उपयुक्त माना जा रहा है।
वैचारिक पृष्ठभूमि का अंतर
दोनों नेताओं के चयन में उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि का अंतर भी एक महत्वपूर्ण पहलू है। जगदीप धनखड़ की शुरुआती राजनीतिक पृष्ठभूमि समाजवादी और कांग्रेसी रही है, जबकि सीपी राधाकृष्णन की जड़ें सीधे तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी हैं। वह 17 साल की उम्र से ही आरएसएस और जनसंघ के साथ रहे हैं। यह मजबूत वैचारिक जुड़ाव भाजपा के कोर वोट बैंक के लिए एक बड़ा संदेश है। राधाकृष्णन पर कोई राजनीतिक बोझ नहीं है, और उनकी छवि एक आम सहमति बनाने वाले नेता के रूप में है, जो राष्ट्रीय समावेशिता को बढ़ावा देते हैं। इसके विपरीत, धनखड़ का दृष्टिकोण कुछ मामलों में जाति-क्षेत्र तक सीमित माना जाता था। कुल मिलाकर, भाजपा ने जगदीप धनखड़ के चयन से एक तात्कालिक राजनीतिक चुनौती (जाटों की नाराजगी) को साधने का प्रयास किया था, जबकि सीपी राधाकृष्णन का चयन एक दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति दक्षिण भारत में अपनी पैठ बनाने और ओबीसी समुदाय को आकर्षित करने पर केंद्रित है। यह फैसला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भाजपा अब आक्रामक शैली से हटकर समावेशी और संतुलित नेतृत्व को प्राथमिकता दे रही है। यह 180 डिग्री का बदलाव सिर्फ एक उम्मीदवार के चयन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भाजपा की बदलती राजनीतिक दिशा का संकेत है।