रीवा में अपराध और अनैतिक गतिविधियों पर भाजपा कार्यकर्ताओं का आक्रोश: क्या यही था सत्ता परिवर्तन का सपना? Aajtak24 News

रीवा में अपराध और अनैतिक गतिविधियों पर भाजपा कार्यकर्ताओं का आक्रोश: क्या यही था सत्ता परिवर्तन का सपना? Aajtak24 News

रीवा - विंध्य प्रदेश की ऐतिहासिक राजधानी और वर्तमान में मध्यप्रदेश का एक महत्वपूर्ण संभागीय मुख्यालय, रीवा, आज एक अजीबोगरीब विरोधाभास का सामना कर रहा है। एक तरफ जहाँ यहाँ से चुने गए प्रतिनिधि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय स्तर पर कानून-व्यवस्था और बढ़ते अपराधों को लेकर भाजपा के अपने ही कार्यकर्ताओं में भारी discontent और निराशा का माहौल है। पार्टी, जो स्वयं को संस्कार और विचारधारा पर आधारित बताती है, आज सत्ता की मजबूरियों और राजनीतिक समझौतों के चलते हालात बिल्कुल अलग दिखाई दे रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो नेता विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ आंदोलनों, धरना-प्रदर्शनों और चक्काजाम का नेतृत्व करते थे, वही आज उन्हीं दलों से जुड़े नेताओं और कारोबारियों को सत्ता की चाबी सौंप चुके हैं।

अवैध कारोबारियों की मौज, प्रशासन मौन

रीवा जिले की वर्तमान तस्वीर कार्यकर्ताओं और आम जनता के लिए चिंता का विषय बन गई है। जिस इलाके में लकड़ी, चंदन और खनिजों के अवैध व्यापारियों के खिलाफ भाजपा के कार्यकर्ता कभी सड़क पर उतरते थे, सत्ता परिवर्तन के बाद वही चेहरे अब सत्ता के करीबियों में शामिल हो गए हैं। आरोप हैं कि कभी आरोपी कहे जाने वाले लोग अब नेताओं के साथ मंच साझा कर रहे हैं। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी सत्ता के कथित दबाव में हाथ बांधकर खड़े नजर आते हैं। कार्यकर्ताओं का दावा है कि नशे के बड़े कारोबारी, जिनके पारिवारिक संबंध सत्ता के शीर्ष नेताओं से जुड़े हैं, खुलेआम शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं, गोलियां लहराते हैं और अपने घरों को 'सरकारी कार्यालय' जैसा घोषित कर देते हैं।

जनता की सुरक्षा दांव पर, विश्वास डगमगाया

रीवा और आसपास के क्षेत्रों में बढ़ते अपराधों ने आम नागरिकों का जीना दूभर कर दिया है। घरों में चोरी की घटनाएं आम हो चुकी हैं। सड़कों पर लूटपाट और राहगीरों से छिनैती की खबरें आए दिन सामने आती हैं। एक समय था जब लोग सुरक्षा के प्रति आश्वस्त थे, लेकिन आज आलम यह है कि लोग जब यात्रा पर निकलते हैं तो उन्हें यह भरोसा नहीं रह गया कि वे सुरक्षित घर लौट पाएंगे। इस स्थिति ने प्रशासन और शासन दोनों से जनता का विश्वास हिला दिया है।

भाजपा कार्यकर्ताओं की पीड़ा: "क्या यही सपना था?"

पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष राजेंद्र पांडे, वरिष्ठ नेता चंद्रमणि त्रिपाठी और अन्य कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में वर्षों तक आंदोलन करने वाले लोग आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। जिन कार्यकर्ताओं ने नशे, अवैध खनन और अपराध के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी, वही आज सत्ता के इस स्वरूप को देखकर तड़प रहे हैं। पार्टी के पुराने सदस्यों के मन में यह सवाल गहरा रहा है कि क्या उनके संघर्षों का यही प्रतिफल था? कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि जो कार्यकर्ता आज इस दुनिया में नहीं हैं, उनकी आत्माएं शायद ऊपर से यह सोचकर हंस रही होंगी कि अगर यही परिणाम होना था तो आंदोलन क्यों किया? हम भी सत्ता का सुख लेते और सत्ता परिवर्तन के बाद आसानी से अपने पाले बदल लेते।

पार्टी की आत्मा पर सवाल और ताजा विवाद

भाजपा हमेशा से संस्कार और विचारधारा की बात करती आई है। लेकिन रीवा में पनप रहे हालात पार्टी के मूल सिद्धांतों पर सवाल खड़े कर रहे हैं। क्या सत्ता की राजनीति में सिद्धांतों को ताक पर रख दिया गया है? क्या जनता के विश्वास और कार्यकर्ताओं के संघर्ष का यही प्रतिफल है कि अपराधी सत्ता की छत्रछाया में फल-फूल रहे हैं? कार्यकर्ताओं में यह आक्रोश बढ़ता जा रहा है कि क्या यही वह रीवा है, जिसके लिए उन्होंने वर्षों तक संघर्ष किया और बलिदान दिए थे? पार्टी के भीतर का आक्रोश हाल ही में सामने आए एक ताजा विवाद से और भी बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार, रीवा-सीधी इलाके से भारतीय जनता पार्टी के कुछ पदाधिकारियों पर भी गंभीर आरोप सामने आए हैं। बताया जा रहा है कि हाल ही में पार्टी के एक पदाधिकारी के खिलाफ मोटरसाइकिल विवाद की शिकायत दर्ज कराई गई है। यह प्रकरण अभी जांच के अधीन है, लेकिन इसे लेकर कार्यकर्ताओं और जनता में भारी चर्चा है। रीवा आज विकास की राह पर जितना तेजी से दौड़ना चाहता है, अपराध और सत्ता संरक्षण की सियासत उसे उतना ही पीछे खींच रही है। भाजपा के मूल सिद्धांतों और संगठन की आत्मा पर जो सवाल आज खड़े हो रहे हैं, यदि उनका समाधान नहीं निकाला गया तो यह न सिर्फ पार्टी की साख के लिए बल्कि जनता के विश्वास के लिए भी खतरनाक साबित होगा। अब देखना यह होगा कि भोपाल का शीर्ष नेतृत्व कब इस स्थिति का संज्ञान लेता है और रीवा में राजनीतिक संरक्षण के आड़ में पनप रही उन "मगरमच्छों" पर कब कार्रवाई होती है।

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