अजा एकादशी का महापर्व: भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप की पूजा से खुलेंगे मोक्ष के द्वार; जानें व्रत का महत्व, विधि और शुभ मुहूर्त Aajtak24 News


अजा एकादशी का महापर्व: भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप की पूजा से खुलेंगे मोक्ष के द्वार; जानें व्रत का महत्व, विधि और शुभ मुहूर्त Aajtak24 News

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का पावन पर्व 19 अगस्त को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह सीधे सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित है। ज्योतिष और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, अजा एकादशी का व्रत रखने से न केवल जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, बल्कि यह व्रत व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति में भी सहायक होता है। इस वर्ष की अजा एकादशी को विशेष रूप से फलदायी माना जा रहा है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप की पूजा की जाती है।

अजा एकादशी का आध्यात्मिक महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने दो एकादशी पड़ती हैं - एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इन सभी में अजा एकादशी का अपना एक अनूठा और गहरा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि अजा एकादशी का व्रत व्यक्ति के सभी पापों का नाश कर देता है, चाहे वे जाने-अनजाने में हुए हों। यह व्रत न केवल शारीरिक शुद्धता का प्रतीक है, बल्कि यह मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। इस दिन का उपवास और ध्यान व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देता है और उसे नकारात्मकता से दूर रखता है। धार्मिक कथाओं में इस व्रत की महिमा का विस्तार से वर्णन है, जिसके अनुसार इसका फल व्यक्ति को इस जन्म के साथ-साथ अगले जन्म में भी मिलता है।

संपूर्ण पूजा विधि: चरण-दर-चरण

अजा एकादशी के व्रत की शुरुआत और पालन पूरी निष्ठा और विधि-विधान से करना चाहिए।

  • प्रातःकाल का अनुष्ठान: व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। संभव हो तो किसी पवित्र नदी या जल स्रोत में स्नान करें। यदि यह संभव न हो, तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।

  • दीप प्रज्वलन और संकल्प: स्नान के बाद स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। घर के मंदिर में घी का एक दीपक प्रज्वलित करें और व्रत का संकल्प लें।

  • विष्णु जी की स्थापना: एक छोटी चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु के ऋषिकेश स्वरूप और मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

  • अभिषेक और पूजन: भगवान विष्णु का गंगाजल से अभिषेक करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और पीले पुष्प, नारियल, सुपारी, लौंग, और अक्षत (बिना टूटे हुए चावल) अर्पित करें।

  • तुलसी दल का महत्व: भगवान विष्णु को तुलसी दल (पत्ते) अर्पित करना अनिवार्य है। माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान भोग ग्रहण नहीं करते हैं। पूजा में पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल का मिश्रण) में तुलसी डालकर अर्पित करें।

  • मंत्र जाप और कीर्तन: दिन भर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का अधिक से अधिक जाप करें। यह मंत्र मन को शांत और एकाग्र बनाता है। यदि संभव हो, तो विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी करें। रात में भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें।

व्रत के नियम और दान-पुण्य

एकादशी का व्रत करने वालों को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है।

  • उपवास: इस दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। फल, पानी और दूध का सेवन किया जा सकता है।

  • सात्विक भोजन: यदि आप व्रत नहीं रख रहे हैं, तो भी इस दिन प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से दूर रहें।

  • दान: अपनी श्रद्धा के अनुसार, गरीबों और जरूरतमंदों को अनाज, वस्त्र या धन का दान करें। दान-पुण्य करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है।

व्रत का पारण और शुभ मुहूर्त

एकादशी व्रत का पारण अगले दिन, यानी द्वादशी तिथि को किया जाता है। व्रत पारण का अर्थ है उपवास खोलना। अजा एकादशी व्रत का पारण 20 अगस्त को सुबह 05:53 एएम से 08:29 एएम के बीच किया जा सकता है। इस समय सीमा में व्रत खोलने से व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। पारण के समय सबसे पहले भगवान को भोग लगाएं और फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। अजा एकादशी का यह व्रत भक्तों को न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति कराता है, बल्कि उन्हें आध्यात्मिक मार्ग पर भी आगे बढ़ने में मदद करता है। यह एक ऐसा अवसर है जब हम भगवान विष्णु के प्रति अपनी अटूट भक्ति और समर्पण को दर्शा सकते हैं।

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