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मेडिकल शिक्षा में 'महा-घोटाला': CBI ने किया भंडाफोड़, पूर्व UGC चीफ और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी FIR में नामजद namjad Aajtak24 News |
नई दिल्ली - केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने देश में एक बड़े मेडिकल एजुकेशन घोटाले का पर्दाफाश किया है, जिसने स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ों को उजागर किया है। इस घोटाले में स्वास्थ्य मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारियों, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के पूर्व चेयरमैन, एक स्वयंभू संत और कई डॉक्टरों सहित कुल 34 लोगों को CBI की FIR में नामजद किया गया है। इन पर कॉलेजों को निरीक्षण से पहले ही गोपनीय जानकारी लीक करने, फर्जी स्टाफ दिखाकर मनमानी रिपोर्ट तैयार करने और बड़े पैमाने पर रिश्वत लेने का आरोप है।
घोटाले में शामिल हाई-प्रोफाइल नाम
CBI की FIR के अनुसार, इस घोटाले में कई हाई-प्रोफाइल नाम सामने आए हैं:
डीपी सिंह: UGC के पूर्व चेयरमैन, जो वर्तमान में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के चांसलर हैं।
रविशंकर महाराज: रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च के चेयरमैन और स्वयंभू संत, जिन्हें 'रावतपुरा सरकार' के नाम से भी जाना जाता है।
सुरेश सिंह भदौरिया: इंडेक्स मेडिकल कॉलेज, इंदौर के चेयरमैन।
मयूर सरकार: गीतांजलि विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार।
इसके अलावा, FIR में स्वास्थ्य मंत्रालय के आठ अधिकारी, एक नेशनल हेल्थ अथॉरिटी के अधिकारी, पांच डॉक्टर और अन्य बिचौलिये शामिल हैं।
कैसे हुआ घोटाला और अब तक की गिरफ्तारियां
CBI ने इस मामले में अब तक आठ लोगों को गिरफ्तार किया है। जांच एजेंसी का दावा है कि तीन डॉक्टरों पर 55 लाख रुपये घूस लेकर मनमानी जांच रिपोर्ट लगाने का आरोप है। FIR के मुताबिक, रविशंकर महाराज ने कथित तौर पर जांच को लेकर एडवांस जानकारी लेने की कोशिश की। इसके बाद, रावतपुरा इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर अतुल कुमार तिवारी ने मयूर रावल से संपर्क किया, जिन्होंने जानकारी देने के लिए 25 से 30 लाख रुपये की मांग की। रावल ने कथित तौर पर निरीक्षण की तारीख और अधिकारियों के नाम तक बता दिए। एजेंसियों का यह भी दावा है कि रविशंकर महाराज ने अपनी पसंद की रिपोर्ट बनवाने के लिए डीपी सिंह से भी संपर्क किया था, और डीपी सिंह ने यह काम सुरेश को सौंप दिया।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह घोटाला स्वास्थ्य मंत्रालय से ही शुरू हुआ था। आरोप है कि आठ अधिकारियों ने दलालों को गोपनीय फाइलों की जानकारी दी। रिश्वत के बदले कॉलेज प्रतिनिधियों को सीक्रेट इन्फॉर्मेशन भेजी गई, जिसमें अधिकारियों ने फाइलों की फोटो खींचकर बिचौलियों को भेजी थी। CBI ने इन अधिकारियों की पहचान पूनम मीना, धर्मवीर, पियूष मल्यान, अनूप जैसवाल, राहुल श्रीवास्तव, दीपक, मनीषा और चंदन कुमार के तौर पर की है।
फर्जीवाड़े का जाल: डमी फैकल्टी और बायोमेट्रिक धांधली
ऐसी गुप्त जानकारी मिलने से कॉलेज जांच से पहले ही पूरी तरह तैयार हो जाते थे। कॉलेजों में फर्जी फैकल्टी (शिक्षक), फर्जी मरीजों का इंतजाम किया गया और बायोमेट्रिक सिस्टम में भी बड़े पैमाने पर बदलाव किए गए। आरोपी इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के सुरेश सिंह भदौरिया पर आरोप है कि वह डॉक्टरों की बायोमेट्रिक अटेंडेंस बनाने के लिए आर्टिफिशियल फिंगर (कृत्रिम उंगली) का इस्तेमाल करते थे।
CBI का कहना है कि रिश्वत की बड़ी रकम हवाला के जरिए दी जाती थी। इसे कभी मंदिर बनवाने के लिए दान के रूप में दिखाया जाता था तो कभी चैरिटी के लिए। इस घोटाले की जड़ें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और दक्षिण के अन्य राज्यों में भी फैली हुई बताई जा रही हैं, जहां डमी फैकल्टी की व्यवस्था करने वाले दलाल सक्रिय थे। यह घोटाला देश में मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता पर गंभीर सवाल खड़े करता है, जिसकी गहन जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की जा रही है।