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जल संरक्षण अभियान पर 'ड्राई फ्रूट' का दाग: शहडोल में जल चौपाल के नाम पर हजारों का बिल वायरल, मचा बवाल bawal Aajtak24 News |
शहडोल/मध्य प्रदेश - मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव की महत्वाकांक्षी 'जल गंगा संवर्धन अभियान' पहल पर उस समय गंभीर सवाल खड़े हो गए, जब शहडोल जिले की एक ग्राम पंचायत में जल चौपाल के नाम पर अधिकारियों की आवभगत में लाखों रुपये के सूखे मेवे और महंगी चाय का बिल सामने आया। यह घटना 'अजब-गजब' मध्य प्रदेश के कारनामों की फेहरिस्त में एक और नया अध्याय जोड़ गई है, जबकि ग्रामीण पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। मामला शहडोल जिले के गोहपारू जनपद की ग्राम पंचायत भदवाही का है, जहाँ जल संरक्षण पर आयोजित एक घंटे की जल चौपाल में अधिकारी कथित तौर पर 14 किलो ड्राई फ्रूट खा गए। ग्राम पंचायत के रजिस्टर में दर्ज खर्चों ने सभी को चौंका दिया है।
बिल में दर्ज चौंकाने वाले आंकड़े:
पंचायत के बिल के अनुसार, इस एक घंटे की 'जल चौपाल' में निम्न चीजें परोसी गईं:
5 किलो काजू
5 किलो बादाम
3 किलो किशमिश
30 किलो नमकीन
20 पैकेट बिस्कुट
6 लीटर दूध
5 किलो शक्कर
2 किलो घी (चाय में उपयोग होने का दावा)
इन सभी पर ₹19,010 का कुल खर्च बताया गया है। इतना ही नहीं, ₹5,260 का एक और बिल 'विशेष घी' के नाम पर लगाया गया है। स्थानीय मार्केट रेट के हिसाब से काजू की कीमत में भी बड़ा अंतर देखने को मिला है, जहां बिल में 1 किलो काजू की कीमत ₹1000 बताई गई है, जबकि बाजार में यह ₹600-₹650 में बिक रहा है। वहीं, ग्रामीणों को इस दौरान खिचड़ी, पूड़ी और सब्जी परोसी गई थी।
सवाल-जवाब और अधिकारियों की सफाई:
इस मामले के सामने आने के बाद कई गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं: क्या जल बचाने की नसीहत देने पहुंचे अधिकारी खुद खर्चे बचाना भूल गए थे? जब गांव में लोग सूखे कुएं और तालाबों की शिकायत लेकर पहुंचे थे, तब अधिकारियों की मेज पर काजू-बादाम और मलाईदार चाय की क्या जरूरत थी? शहडोल की जिला पंचायत प्रभारी सीईओ मुद्रिका सिंह ने इस बिल पर हैरानी जताई है। उन्होंने कहा कि वे कार्यक्रम में मौजूद थीं, चाय-नाश्ते की व्यवस्था जरूर थी, लेकिन काजू-बादाम जैसे महंगे आइटम्स के बिल उनके संज्ञान में पहली बार आए हैं। उन्होंने मामले की जांच कराने की बात कही है।
वहीं, स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि एक तरफ वे पानी की किल्लत से बेहाल हैं, दूसरी तरफ अधिकारियों की आवभगत में सूखे मेवे उड़ाना "जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने" जैसा है। यह मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है, क्योंकि अधिकारियों का दावा है कि 'जल गंगा संवर्धन अभियान' जनता के सहयोग से चलाया जा रहा है और इसके लिए कोई अलग से बजट नहीं है। यह घटना कुछ ही दिन पहले शिक्षा विभाग में सामने आए पोताई घोटाले की जांच पूरी होने से पहले ही सामने आई है, जिसने मध्य प्रदेश में सरकारी कार्यक्रमों में होने वाले खर्चों और पारदर्शिता पर फिर से बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।