रीवा कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में तीन पत्रकार बाइज्जत बरी bari Aajtak24 News

रीवा कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: फर्जी गैंगरेप-पॉक्सो मामले में तीन पत्रकार बाइज्जत बरी bari Aajtak24 News 

रीवा - न्याय की धरती रीवा ने एक बार फिर साबित किया कि सत्य की जीत अंततः अवश्यंभावी है। 12 जुलाई 2025 को रीवा न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीन पत्रकारों अमर मिश्रा, प्रद्युम्न शुक्ला और उमेश सिंह को फर्जी गैंगरेप और पॉक्सो (POCSO) के आरोपों से पूर्णतः दोषमुक्त करार दिया। यह मामला पुलिस प्रशासन की मनमानी, षड्यंत्रपूर्ण कार्रवाई और संवेदनशील कानूनों के दुरुपयोग का जीवंत उदाहरण बन गया है, जिस पर न्यायालय ने कड़ी चोट की है।  

कैसे गढ़ा गया फर्जी मामला? 

21 मार्च 2022 को रीवा के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में हुई एक मारपीट की घटना को लेकर स्थानीय पत्रकारों ने समाचार प्रकाशित किया था। इस खबर से आहत होकर एक महिला ने रंजिश के तहत 23 मई 2022 को पत्रकारों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज कराई। हैरत की बात यह थी कि 7 फरवरी 2022 की एक मनगढ़ंत घटना को आधार बनाकर, धारा 376(2)(n), 450, 506 भा.दं.वि. और पॉक्सो एक्ट के गंभीर प्रावधान लगाए गए। इस दौरान तत्कालीन पुलिस अधीक्षक नवनीत भसीन और सिविल लाइन थाना प्रभारी हितेंद्र नाथ शर्मा की भूमिका संदेह के घेरे में रही। पुलिस ने बिना ठोस सबूतों के ही पत्रकारों को फंसाने की कोशिश की, जिससे न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग पर गंभीर सवाल उठे हैं।  

न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: "झूठ की बुनियाद हिल गई। 

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, वरिष्ठ अधिवक्ता धीरेंद्र नाथ चतुर्वेदी, आनंद सिंह और अर्पित पांडेय की टीम ने पत्रकारों की ओर से जोरदार पैरवी की।न्यायालय ने पाया कि घटना का कोई प्रमाण नहीं था, न ही कोई चिकित्सकीय रिपोर्ट या सबूत।पुलिस ने जानबूझकर गलत तथ्य पेश किए और जांच में गंभीर लापरवाही बरती। मामला पत्रकारों को प्रताड़ित करने की साजिश लगता था। अदालत ने पुलिस की मनमानी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि "संवेदनशील कानूनों का दुरुपयोग निर्दोषों को फंसाने के लिए नहीं किया जा सकता।"

मीडिया और न्यायपालिका की जीत। 

यह फैसला सिर्फ तीन पत्रकारों की बरी तक सीमित नहीं, बल्कि इसके व्यापक निहितार्थ हैं: पुलिस प्रशासन को सबक: कानून को हथियार बनाकर निर्दोषों को निशाना बनाने की कोशिश नाकाम हुई।  

मीडिया की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरे को झटका। 

पत्रकारों को डराने-धमकाने की कोशिश विफल हुई, न्यायपालिका का दृढ़ संदेश: भले ही सत्ता ताकतवर हो, लेकिन न्याय के आगे झूठ टिक नहीं सकता। प्रदेश मीडिया संघ के उपाध्यक्ष विमलेश त्रिपाठी ने कहा, यह फैसला पत्रकारिता की निष्पक्षता और न्यायिक सिस्टम पर भरोसे की जीत है।

रीवा का यह फैसला इतिहास बन गया।  

रीवा न्यायालय का यह निर्णय न सिर्फ निर्दोषों के लिए न्याय की मिसाल है, बल्कि उन ताकतों के लिए एक चेतावनी भी है जो कानून को अपनी स्वार्थपूर्ति का औजार समझते हैं। अमर मिश्रा, प्रद्युम्न शुक्ला और उमेश सिंह की धैर्यपूर्ण लड़ाई हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो अन्याय के खिलाफ संघर्ष कर रहा है। जब न्याय सोता है, तो अराजकता जागती है। लेकिन रीवा का यह फैसला दिखाता है कि न्यायपालिका अभी जाग रही है। पुलिस और प्रशासन को अब यह समझना चाहिए कि कानून की डंडी दबे-कुचले लोगों को रौंदने के लिए नहीं, बल्कि उनकी रक्षा के लिए बनी है।




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