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रीवा लोक निर्माण विभाग में करोड़ों का भ्रष्टाचार उजागर: प्रभारी कार्यपालन यंत्री पर गंभीर आरोप aarop Aajtak24 News |
नियमों की खुली अवहेलना और वित्तीय अनियमितता
प्राप्त जानकारी के अनुसार, विद्युत यांत्रिकी संभाग के कार्यों को ठेके पर स्वीकृति देते समय, प्रभारी कार्यपालन यंत्री ने किसी भी प्रोजेक्ट की राशि को स्वीकृत प्रशासनिक सीमा से 10 गुना तक बढ़ा दिया। यह वृद्धि बिना किसी तकनीकी विश्लेषण, सक्षम प्राधिकारी की स्वीकृति या अनुमति के की गई, जो सीधे तौर पर लोक निर्माण विभाग के मापदंडों और शासन के वित्तीय निर्देशों का घोर उल्लंघन है।
दस्तावेजी प्रमाण और निर्देशों का उल्लंघन
मध्यप्रदेश शासन, लोक निर्माण विभाग, भोपाल के पत्र क्रमांक 1993, दिनांक 29.07.2019 में स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि प्रशासकीय स्वीकृति से अधिक राशि का किसी भी स्थिति में व्यय नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, मुख्य अभियंता कार्यालय, रीवा द्वारा जारी पत्र क्रमांक 1360, दिनांक 07.08.2020 में इस कार्य की वैधता पर स्पष्टीकरण मांगा गया है। इसमें साफ तौर पर उल्लेख है कि बिना पूर्व स्वीकृति एवं तकनीकी आधार के ही कार्य कराया गया है। यह दर्शाता है कि नियमों की जानबूझकर अवहेलना की गई।
भ्रष्टाचार का संगठित स्वरूप और निजी स्वार्थ
सूत्रों का कहना है कि श्री श्रीवास्तव ने निजी स्वार्थ और 'लोभ-लालच' में आकर अपनी पसंदीदा निजी फर्मों को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से अनुचित राशि जारी की। कई मामलों में स्वीकृत राशि से कहीं अधिक भुगतान किया गया, जबकि कार्यस्थल पर निर्माण की कोई भौतिक प्रगति नहीं पाई गई। आरोप यह भी है कि संबंधित ठेकेदारों से सांठगांठ कर रिश्वतखोरी के माध्यम से मोटा कमीशन लिया गया।
जनता और शासन के लिए गंभीर चिंता का विषय
लोक निर्माण विभाग का यह प्रकरण न केवल सरकारी धन की बर्बादी है, बल्कि इससे शासन की विश्वसनीयता और आम जनता के हितों को भी गहरा आघात पहुँचा है। यदि समय रहते इस मामले की गहन जांच नहीं की गई, तो विभागीय कार्यप्रणाली में और अधिक गिरावट आ सकती है। करोड़ों की यह राशि, जो जनहित के विकास कार्यों में लगनी थी, भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है। रीवा जिले के इस बहुचर्चित भ्रष्टाचार प्रकरण ने यह साबित कर दिया है कि यदि प्रशासनिक लापरवाही और भ्रष्ट मंशा को समय रहते नहीं रोका गया, तो विकास कार्यों की गति ठप हो जाएगी और जनता का भरोसा शासन से उठ जाएगा। शासन और प्रशासन को इस मामले में तत्परता से हस्तक्षेप कर एक उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, जिससे अन्य अधिकारी भी कर्तव्य से विमुख होने का साहस न करें।