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देवतालाब सीएम राइज स्कूल हादसा: ईमानदार अफसर फिर बलि का बकरा? Aajtak24 News |
रीवा - सरकारी स्कूलों के भवनों की जर्जरता और प्रशासनिक लापरवाही का एक और भयावह उदाहरण रीवा के देवतालाब सीएम राइज विद्यालय में सामने आया है, जहाँ छात्राओं पर छत का प्लास्टर गिर गया। इस घटना ने एक बार फिर सिस्टम की खामियों को उजागर किया है, जहाँ ईमानदारी से काम करने वाले अधिकारी को ही कटघरे में खड़ा किया जा रहा है, जबकि वास्तविक दोषी बचने की जुगत में हैं।
सावधानी के बावजूद प्रधानाचार्य पर खतरा
विद्यालय के प्राचार्य ने सत्र शुरू होने से पहले ही, 30 जून को, भवन की खराब स्थिति के बारे में मौखिक रूप से अवगत करा दिया था, जिसके बाद 1 जुलाई को विधिवत पत्राचार भी किया गया। सूचना मिलने पर, उपयंत्री प्रवीण कुमार श्रीवास्तव और सोभनाथ साकेत ने स्कूल का निरीक्षण किया और छह कक्षों व तीन कार्यालयों (कुल 9 कमरे) को मरम्मत के लिए चिन्हित किया। प्राचार्य ने निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार रखरखाव का कार्य भी करवाया, और 7 जुलाई को पुनः निरीक्षण हुआ, जिसमें दोनों उपयंत्रियों ने भवन को "संतोषजनक स्थिति में" घोषित कर दिया।
तीन दिन बाद ही ढह गई "ठीक" बताई गई छत
मात्र तीन दिन बाद, 10 जुलाई को, ठीक उसी भवन के एक हिस्से में छत का प्लास्टर छात्राओं पर गिर गया, जिसे निरीक्षण में "ठीक" बताया गया था। गनीमत रही कि कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई, लेकिन छात्राएं घायल हुईं और स्कूल में अफरा-तफरी मच गई। जैसे ही यह मामला सोशल मीडिया पर उछला, प्रशासन ने अपना पुराना 'डैमेज कंट्रोल' का स्क्रिप्टेड प्लान एक्टिवेट कर दिया।
"बचाओ ऑपरेशन" शुरू: बलि का बकरा बनेगा मेहनती अफसर?
घटना के अगले ही दिन, 11 जुलाई को, वही उपयंत्री दोबारा स्कूल पहुंचे और इस बार उसी भवन के पूर्वी हिस्से को "नवीन रूप से क्षतिग्रस्त" बताते हुए नए रखरखाव की सिफारिश कर दी। अब सवाल यह उठता है:
क्या 7 जुलाई के निरीक्षण में खतरा न दिखना सिर्फ लापरवाही थी?
क्या यह इतनी बड़ी तकनीकी चूक उपयंत्रियों की योग्यता पर सवाल नहीं उठाती?
या फिर यह जानबूझकर तैयार की गई रणनीति थी ताकि वास्तविक जिम्मेदार बच सकें और प्रधानाचार्य को बलि का बकरा बना दिया जाए?
सरकारी तंत्र की पुरानी कहानी: ईमानदार कर्मचारी ही निशाने पर
मध्य प्रदेश के शासकीय ढांचे में यह कोई नई बात नहीं है। जब भी किसी सरकारी विभाग में गंभीर चूक या हादसा होता है, तो जांच की स्क्रिप्ट "ऊपर" से तैयार होती है। दोषियों के नाम पहले से तय होते हैं, लेकिन वे केवल निचले स्तर के कर्मचारी होते हैं। और अंत में, "काम करने वाला कर्मचारी" ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है, जबकि लापरवाह और भ्रष्ट अधिकारियों को चुपचाप बचा लिया जाता है।
देवतालाब हादसे ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब तकनीकी निरीक्षण (Technical Inspection) भी महज औपचारिकता बनकर रह गया है। निरीक्षण अधिकारी रिपोर्ट में 'ऑल क्लियर' लिख देते हैं, और जब हादसा होता है, तब चुपचाप नई मरम्मत की सिफारिश कर देते हैं। क्या ऐसे में कोई जवाबदेही तय होती है? क्या तकनीकी अधिकारियों के खिलाफ कभी कोई विभागीय जांच पूरी होती है? जवाब अक्सर "नहीं" होता है।
क्या ईमानदारी सबसे बड़ा अपराध बन गई है?
देवतालाब सीएम राइज स्कूल के प्राचार्य ने समय पर चेतावनी दी, पत्राचार किया, निरीक्षण का पालन किया और मरम्मत करवाई। फिर भी, जब हादसा हुआ, तो उन्हीं पर प्रशासनिक उंगलियां उठने लगीं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि:
क्या अधिकारी अब गलती न करने की सजा भुगतेंगे?
क्या प्रदेश में ईमानदारी सबसे बड़ा अपराध बन गई है?
क्या शिक्षा विभाग का उद्देश्य अब "सत्य छिपाना" बनकर रह गया है?
अगर इस मामले में उपयंत्रियों पर जांच और कार्रवाई नहीं होती है, तो यह साफ संकेत होगा कि मध्य प्रदेश में काम करने वाले अधिकारी ही सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। इससे ना केवल शिक्षा व्यवस्था का मनोबल टूटेगा, बल्कि भविष्य में कोई अधिकारी जोखिम उठाकर समय पर चेतावनी देने की हिम्मत नहीं करेगा।