आज से शुरू हुई विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा: भक्ति और आस्था का महाकुंभ mahakumbha Aajtak24 News

आज से शुरू हुई विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा: भक्ति और आस्था का महाकुंभ mahakumbha Aajtak24 News

पुरी/ओडिशा - ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा का भव्य शुभारंभ हो गया है। लाखों भक्तों का सैलाब पुरी की सड़कों पर उमड़ पड़ा है, जहाँ भक्ति और उत्साह का अद्भुत नजारा देखने को मिल रहा है। यह 12 दिवसीय महापर्व आज से शुरू होकर 8 जुलाई को नीलाद्रि विजय के साथ संपन्न होगा, जब भगवान वापस अपने धाम लौटेंगे।

शुभ मुहूर्त में हुई यात्रा की शुरुआत

सुबह 6 बजे मंगला आरती के साथ धार्मिक विधियों का सिलसिला शुरू हुआ। दोपहर लगभग 1 बजे, भगवान को उनके भव्य रथों पर विराजमान कराया गया. इसके बाद, अभिजीत मुहूर्त (दोपहर 11:56 से 12:52) और पुष्य नक्षत्र जैसे शुभ योगों में यात्रा की शुरुआत हुई। इन शुभ योगों को यात्रा के लिए बेहद मंगलकारी माना जा रहा है। पुरी का ग्रैंड रोड (बड़ा दंड) भक्तों से खचाखच भरा हुआ है, जो अपने आराध्य की एक झलक पाने के लिए घंटों से इंतजार कर रहे थे।

रथ और रस्सियों के हैं खास नाम

इस यात्रा में तीन विशाल रथों का उपयोग होता है, जिनके अपने विशेष नाम हैं।

  • भगवान जगन्नाथ का रथ: नंदीघोष

  • बलभद्र का रथ: तालध्वज

  • सुभद्रा का रथ: देवदलन

इन रथों को खींचने के लिए इस्तेमाल होने वाली रस्सियों को भी पवित्र माना जाता है और उनके भी खास नाम हैं।

  • बलभद्र के रथ की रस्सी: वासुकी

  • सुभद्रा के रथ की रस्सी: स्वर्णचूड़ा

  • जगन्नाथ के रथ की रस्सी: शंकचूड़ा

मान्यता है कि इन रस्सियों को खींचने से भक्तों के पुराने कर्मों का बोझ हल्का होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

सोने के झाड़ू से मार्ग की सफाई: एक सदियों पुरानी परंपरा

यात्रा का शुभारंभ एक अनूठी और महत्वपूर्ण रस्म 'छर पंहरा' से होता है. इस रस्म में, पुरी राजपरिवार के गजपति रथ यात्रा के मार्ग को सोने के झाड़ू से साफ करते हैं। यह परंपरा तब से चली आ रही है जब राजाओं का शासन था, और यह राजा की विनम्रता और भगवान के प्रति सेवा भाव को दर्शाती है। सोने के झाड़ू का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सोना एक अत्यंत पवित्र धातु है। इसे सुख, वैभव और ज्ञान के कारक ग्रह गुरु से भी जोड़ा जाता है। इस प्रकार, सोने के झाड़ू से मार्ग की सफाई करने से यात्रा मंगलमय और निर्बाध होती है। यह रस्म यह संदेश भी देती है कि भगवान के सामने कोई भी बड़ा या छोटा नहीं होता, और हर कोई उनका सेवक है।

आस्था, प्रेम और समर्पण का प्रतीक

यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और समर्पण का एक जीता-जागता उदाहरण है। भगवान जगन्नाथ अपने भक्तों को दर्शन देने और उन्हें आशीर्वाद देने के लिए खुद गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जिसे उनकी मौसी का घर माना जाता है। लाखों भक्तों का यह सैलाब इस बात का प्रमाण है कि भगवान और उनके भक्तों के बीच का रिश्ता कितना गहरा और अटूट है।


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