रीवा शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्ति घोटाला: टेंट संचालक से लेकर पूर्व व वर्तमान DEO तक जांच के घेरे में me Aajtak24 News


रीवा शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्ति घोटाला: टेंट संचालक से लेकर पूर्व व वर्तमान DEO तक जांच के घेरे में me Aajtak24 News 

रीवा -  जिले के शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है, जिसने पूरे प्रशासनिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। शुरुआत में यह मामला एक फर्जी नियुक्ति का प्रतीत हो रहा था, लेकिन जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, चौंकाने वाले तथ्य उजागर हो रहे हैं, जो शिक्षा विभाग में वर्षों से जारी 'मिलीजुली बंदरबांट' और नियमों की खुली अवहेलना की कहानी बयां कर रहे हैं।

एक फर्जी नियुक्ति से शुरू हुई परत-दर-परत पोल: इस घोटाले की शुरुआत बृजेश कोल नामक व्यक्ति को वर्ष 2024 में दी गई एक फर्जी अनुकंपा नियुक्ति से हुई। यह नियुक्ति दस्तावेजों के अनुसार नियमों के विपरीत थी। नियुक्ति पत्र पर वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) सुदामा गुप्ता के हस्ताक्षर थे, जबकि प्रक्रिया के नोडल अधिकारी अखिलेश मिश्रा की अनुशंसा पर यह आदेश जारी किया गया था। जब यह मामला मीडिया और शिकायतों के माध्यम से उजागर हुआ, तो विभाग ने आनन-फानन में केवल लिपिक रामप्रसन्न द्विवेदी को निलंबित कर अपनी जिम्मेदारी पूरी करने की कोशिश की, और प्रमुख अधिकारियों को बचाने के प्रयास किए गए।

एक ही परिवार को दो-दो नियुक्तियाँ: नियमों की सरेआम धज्जियां: जांच के दौरान शिक्षा विभाग की फाइलों से एक और गंभीर अनियमितता सामने आई। रामसखा रावत नामक कर्मचारी के निधन के बाद वर्ष 2023 में उनके बेटे अंजेश रावत को तत्कालीन डीईओ आरएन पटेल ने अनुकंपा नियुक्ति दी थी, जो नियमों के अनुरूप मानी जा सकती है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इसी परिवार की बेटी साधना कोल को भी वर्ष 2024 में अनुकंपा नियुक्ति प्रदान कर दी गई। यह नियुक्ति तत्कालीन डीईओ गंगा उपाध्याय के हस्ताक्षर से जारी हुई, और वह भी उसी दिन जब वे डीईओ पद से मुक्त हो रहे थे। नियमानुसार, एक कर्मचारी के निधन पर उसके परिजनों में से केवल एक को ही अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है, ऐसे में यह दूसरी नियुक्ति सीधे-सीधे नियमों का उल्लंघन है और बेहद संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है।

टेंट हाउस संचालक बना अनुकंपा नियुक्तियों का 'किंगपिन': इस पूरे प्रकरण में सबसे गंभीर तथ्य यह है कि अनुकंपा नियुक्ति प्रक्रिया में अनुशंसा करने और फाइलों पर टिप्पणी लिखने का कार्य एक ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया, जो सहायक संचालक के पद पर तो था, लेकिन जिसकी प्राथमिक पहचान एक टेंट हाउस संचालक के रूप में है। सूत्रों की मानें तो यही व्यक्ति साधना कोल की नियुक्ति का नोडल अधिकारी था, और उसी की अनुशंसा पर तत्कालीन डीईओ गंगा उपाध्याय ने अपने अंतिम दिन आनन-फानन में नियुक्ति आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए। बताया जा रहा है कि यहीं से अनुकंपा नियुक्तियों में फर्जीवाड़े की शुरुआत हुई और इसके बाद नियमों को ताक पर रखकर नियुक्तियों की एक लंबी श्रृंखला तैयार की गई।

DEO कार्यालय ही नहीं, JD ऑफिस भी संदिग्ध: जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि इस घोटाले की जड़ें केवल जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि संयुक्त संचालक (जेडी) कार्यालय के भी कुछ कर्मचारी और अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। बगैर किसी उचित पूछताछ और सत्यापन के एक के बाद एक नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर होते गए, और फर्जी लाभार्थियों को आसानी से शासकीय सेवा में प्रवेश मिल गया। यह सब शिक्षा विभाग के भीतर एक संगठित गिरोह की मौजूदगी की ओर स्पष्ट रूप से इशारा करता है।

प्रशासनिक चुप्पी और कार्रवाई का इंतजार: इतने बड़े फर्जीवाड़े के उजागर होने के बावजूद, सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिला प्रशासन ने अब तक न तो किसी अधिकारी के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया है और न ही फर्जी नियुक्ति पाने वालों को तलब कर उनसे विस्तृत पूछताछ की गई है। प्रशासन की ओर से केवल यह कहा जा रहा है कि फर्जी नियुक्तियों को निरस्त किया जाएगा। लेकिन सवाल यह है कि जिन अधिकारियों ने इन नियमविरुद्ध नियुक्तियों को अंजाम दिया, उनके खिलाफ कब और कैसी सख्त कार्रवाई होगी? यह प्रशासनिक ढिलाई इस पूरे मामले की निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रही है।

जांच समिति का गठन, पर सवाल कायम: मामले की गंभीरता को देखते हुए संयुक्त संचालक लोक शिक्षण, रीवा संभाग नीरव दीक्षित ने एक जांच समिति गठित की है। इस समिति में पीजीबीटी कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आर.एन. पटेल, सीधी के पूर्व डीईओ और गवर्नमेंट स्कूल के प्राचार्य डॉ. प्रेमलाल मिश्रा तथा लेखापाल हीरा सिंह को सदस्य बनाया गया है। समिति को पिछले एक वर्ष में की गई समस्त अनुकंपा नियुक्तियों की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। डॉ. पटेल और डॉ. मिश्रा की निष्पक्ष और सख्त कार्यशैली को देखते हुए विभाग के भीतर हड़कंप मच गया है।

रीवा जिले में शिक्षा विभाग की अनुकंपा नियुक्तियों में जिस प्रकार नियमों की अनदेखी की गई और एक संगठित तंत्र ने इसे भ्रष्टाचार का जरिया बना लिया, वह न केवल प्रशासनिक नैतिकता के लिए एक गंभीर चुनौती है, बल्कि आमजन के सरकारी व्यवस्था पर विश्वास के लिए भी खतरा है। यदि समय रहते इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष, न्यायिक या उच्च स्तरीय जांच नहीं कराई गई, तो न केवल दोषी अधिकारी बच निकलेंगे बल्कि यह भ्रष्टाचार और भी गहरा और संस्थागत होता जाएगा। यह सिर्फ नौकरी की बात नहीं, यह जनता के विश्वास के साथ किए गए विश्वासघात का मामला है।

Post a Comment

Previous Post Next Post