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भारत की सबसे अनोखी परंपरा: कामाख्या में 'महावारी' की पूजा, 3 दिन बाद खुलेंगे मंदिर के द्वार! Aajtak24 News |
गुवाहाटी/असम - असम की राजधानी गुवाहाटी में स्थित प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में वार्षिक अंबुबाची मेला शुरू हो गया है। यह मेला, जो हर साल जून महीने में आयोजित होता है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक इस पवित्र स्थल पर देवी कामाख्या के मासिक धर्म (रजस्वला) के वार्षिक चक्र का उत्सव मनाता है। इस अनूठी परंपरा के तहत, 22 जून से मंदिर के कपाट अगले तीन दिनों के लिए बंद कर दिए गए हैं, और 25 जून की सुबह भक्तों के लिए फिर से खोले जाएंगे। लाखों श्रद्धालु, तांत्रिक और पर्यटक इस अद्भुत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम का हिस्सा बनने के लिए पहुँच रहे हैं।
अंबुबाची मेला: देवी के 'रजस्वला' होने का उत्सव और उसका आध्यात्मिक महत्व
अंबुबाची मेले को पूर्वी भारत के सबसे बड़े और सबसे रहस्यमयी धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है, जहाँ लाखों की संख्या में श्रद्धालु, साधु-संत और तांत्रिक देश-विदेश से देवी के दर्शन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं। यह पर्व न केवल देवी कामाख्या की सृजनात्मक शक्ति का सम्मान करता है, बल्कि स्त्री शक्ति और प्रकृति के गहरे संबंध को भी दर्शाता है।
- क्या है मान्यता: ऐसी मान्यता है कि अंबुबाची के दौरान देवी कामाख्या अपने वार्षिक मासिक धर्म चक्र से गुजरती हैं। इस अवधि को 'धरती माता' के 'रजस्वला' होने का समय भी माना जाता है, जिससे पृथ्वी की उर्वरता और पोषण शक्ति बढ़ती है। यह समय देवी के विश्राम, शुद्धिकरण और उनके प्राकृतिक चक्र के सम्मान का प्रतीक है। 'अंबुबाची' शब्द का अर्थ है "जल से बोली गई," जो मानसून और देवी के मासिक धर्म, दोनों से जुड़ा है। माना जाता है कि जब भगवान शिव तांडव कर रहे थे, तब देवी सती की योनि (गर्भस्थान) यहीं गिरी थी, इसलिए ये जगह शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
- कब से कब तक: इस साल 2025 में अंबुबाची मेला 22 जून से शुरू होकर 26 जून तक चलेगा। 22 जून सुबह 8:43 बजे स्नान (पवित्र स्नान) और नित्य पूजा के साथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं। यह अवधि देवी के रजस्वला काल की मानी जाती है, जिसमें कोई पूजा-पाठ या दर्शन नहीं होते, क्योंकि यह समय देवी के विश्राम का माना जाता है। 25 जून की सुबह करीब 6 बजे मंदिर के दरवाजे फिर से खोले जाएंगे, जिसके बाद मंदिर की साफ-सफाई की जाएगी और भक्त फिर से दर्शन कर सकेंगे। 26 जून को विशेष पूजा और अनुष्ठानों के साथ मेले का भव्य समापन होगा।
- अनोखा प्रसाद: इस मेले का सबसे अनोखा और पवित्र पहलू यहाँ वितरित किया जाने वाला प्रसाद है। मान्यता है कि मंदिर के गर्भगृह में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो देवी के मासिक धर्म के दौरान लाल रंग का हो जाता है। इस 'रजस्वला वस्त्र' को अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे प्रसाद स्वरूप भक्तों को वितरित किया जाता है। भक्त इसे बहुत श्रद्धा से अपने घर ले जाते हैं, क्योंकि यह उर्वरता, शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
तांत्रिकों का संगम, सांस्कृतिक उत्सव और सामाजिक संदेश
कामाख्या मंदिर तांत्रिक साधनाओं और अघोर पंथ के लिए विश्व प्रसिद्ध है। अंबुबाची मेले के दौरान, देश-विदेश से बड़ी संख्या में तांत्रिक, अघोरी और साधु-संत भी इस अवसर पर मंदिर पहुंचते हैं। वे इस समय को अपनी गुप्त साधनाओं और सिद्धियों के लिए अत्यंत शुभ मानते हैं और मंदिर परिसर के आसपास विभिन्न अनुष्ठानों में लीन रहते हैं।
यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक भव्य सांस्कृतिक उत्सव भी है। इन दिनों में, कामाख्या मंदिर के आसपास का पूरा इलाका भक्ति, मंत्रोच्चार, धूपबत्ती और पारंपरिक संगीत से पूरी तरह गूंज उठता है। विभिन्न राज्यों से आए श्रद्धालु, कलाकार और संगठन भजन-कीर्तन, लोक नृत्य और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं, जिससे मेले में एक अद्भुत ऊर्जा और उत्साह का माहौल बन जाता है।
सामाजिक रूप से, यह मेला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है। जहाँ भारत के कई हिस्सों में आज भी मासिक धर्म (पीरियड्स) को लेकर चुप्पी, शर्म और कई तरह की पाबंदियां देखने को मिलती हैं, वहीं असम का कामाख्या मंदिर इसे सम्मान और उत्सव के रूप में पूजता है। यह दर्शाता है कि मासिक धर्म एक प्राकृतिक और पवित्र प्रक्रिया है, जिसे छुपाने या शर्मिंदा होने की बजाय सम्मान के साथ देखा जाना चाहिए। यह त्योहार प्रकृति की सृजनात्मक शक्ति और स्त्री के नैसर्गिक चक्र को स्वीकार करने और उसका सम्मान करने का एक सशक्त माध्यम है। पहले के समय में, जब ये पर्व हुआ करता था, तब खेतों में काम भी रोक दिया जाता था, जो पृथ्वी के 'विश्राम' के सम्मान को दर्शाता था।
कामाख्या मंदिर तक कैसे पहुंचें
गुवाहाटी, असम की नीलांचल पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर देवी शक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का एक बहुत ही पवित्र और खास स्थान है। दुनियाभर से लाखों भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।
- हवाई मार्ग: गुवाहाटी हवाई अड्डा (लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा) मंदिर का सबसे निकटतम हवाई अड्डा है। यह देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।
- रेल मार्ग: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन प्रमुख रेलवे स्टेशन है, जहाँ से देश के विभिन्न हिस्सों से ट्रेनें आती हैं।
- सड़क मार्ग: गुवाहाटी शहर से मंदिर लगभग 8 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे या रेलवे स्टेशन से मंदिर तक पहुँचने के लिए टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या लोकल बस जैसे परिवहन के साधन आसानी से उपलब्ध हैं। मंदिर तक पहुँचने के लिए पहाड़ी पर सीढ़ियाँ भी बनी हुई हैं, और सड़क मार्ग से वाहन भी सीधे मंदिर तक जाते हैं।
यह उत्सव एक अनोखी परंपरा और गहरे आध्यात्मिक अर्थ को दर्शाता है, जो हर साल लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह उन लोगों के लिए एक अनूठा अनुभव प्रदान करता है जो भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और स्थानीय परंपराओं को करीब से जानना चाहते हैं।