छत्तीसगढ़ पुलिस का माओवादी नेता बसवराजू का शव सौंपने से इनकार: एक गहरा सुरक्षा और वैचारिक संघर्ष shangharsh Aajtak24 News


छत्तीसगढ़ पुलिस का माओवादी नेता बसवराजू का शव सौंपने से इनकार: एक गहरा सुरक्षा और वैचारिक संघर्ष shangharsh Aajtak24 News 

रायपुर - छत्तीसगढ़ पुलिस ने नारायणपुर में हुई एक हालिया मुठभेड़ में मारे गए सीपीआई (माओवादी) के शीर्ष नेता नंबला केशव राव, जिसे बसवराजू के नाम से जाना जाता है, के शव को उनके परिवार को सौंपने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया है। यह निर्णय महज एक प्रशासनिक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक गहरी सुरक्षा चिंता और वैचारिक संघर्ष को दर्शाता है, जहां पुलिस को डर है कि माओवादी नेता का सार्वजनिक अंतिम संस्कार नक्सलवाद के महिमामंडन का एक मंच बन सकता है।

महिमामंडन का खतरा और कट्टरता पर लगाम

पुलिस के इस सख्त रुख के पीछे सबसे बड़ी वजह माओवादी विचारधारा के महिमामंडन को रोकना है। बसवराजू जैसे नेता, जिनके ऊपर सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों और निर्दोष आदिवासियों की क्रूर हत्याओं का आरोप है, अगर उन्हें "शहीद" या "हीरो" के रूप में पेश किया जाता है, तो यह नक्सलवादी आंदोलन के लिए सहानुभूति और समर्थन को बढ़ावा दे सकता है। अधिकारियों का मानना है कि एक भव्य अंतिम संस्कार समारोह युवा आदिवासियों को हिंसक गतिविधियों में शामिल होने के लिए उकसा सकता है, जिससे क्षेत्र में पहले से ही व्याप्त अशांति और बढ़ सकती है। यह चिंता जम्मू-कश्मीर में अपनाई गई रणनीति से भी प्रेरित है, जहां 2019 से मुठभेड़ों में मारे गए आतंकवादियों के शवों को उनके परिवारों को नहीं सौंपा जाता है। इसके बजाय, पुलिस खुद ही कुछ करीबी रिश्तेदारों की मौजूदगी में उन्हें चिह्नित कब्रों में दफना देती है। इस कदम का मुख्य उद्देश्य भीड़ को इकट्ठा होने से रोकना और आतंकवाद के नाम पर कट्टरता को बढ़ावा मिलने से रोकना है। छत्तीसगढ़ पुलिस भी इसी तर्ज पर काम करना चाहती है ताकि बसवराजू के अंतिम संस्कार को एक सार्वजनिक तमाशे में बदलने से रोका जा सके।

परिवार का दावा बनाम पुलिस का संदेह

बसवराजू के परिवार में उनकी सौतेली माँ और भाई आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में रहते हैं। उनके भाई और कुछ चचेरे भाई उनके शव को अंतिम संस्कार के लिए आंध्र प्रदेश ले जाना चाहते हैं और इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ पुलिस से संपर्क किया है। हालांकि, पुलिस उनके दावों की गंभीरता से जांच कर रही है और अंतिम निर्णय लेने से पहले सभी पहलुओं पर विचार कर रही है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बसवराजू का अपने परिवार से पिछले चार दशकों से कोई संपर्क नहीं था। वह एक तरह से "एकांत" जीवन जी रहे थे और "निंजा" की तरह घूमते थे, यानी उनका ठिकाना कभी भी स्थिर नहीं होता था। इससे पुलिस को संदेह है कि परिवार का यह दावा अचानक क्यों आया। दिलचस्प बात यह भी है कि शव का दावा करने वाले किसी भी रिश्तेदार ने सार्वजनिक रूप से कोई अपील नहीं की है, न ही मीडिया से बात करते हुए सीपीआई (माओवादी) के साथ बसवराजू के संबंध की निंदा की है। पुलिस के सामने भी उन्होंने बसवराजू को त्याग दिया और खुद को उनकी हिंसक गतिविधियों से दूर कर लिया। यह स्थिति पुलिस के संदेह को और गहरा करती है। अधिकारियों को प्रबल संदेह है कि बसवराजू के रिश्तेदारों को माओवादियों द्वारा शव का दावा करने के लिए उकसाया गया होगा। उनका मुख्य मकसद बसवराजू के सार्वजनिक अंतिम संस्कार का उपयोग उन्हें 'माओवादी हीरो' के रूप में अमर बनाने और जनता के बीच वामपंथी उग्रवादियों के लिए समर्थन और सहानुभूति जगाना हो सकता है। यह एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक युद्ध है जिसे माओवादी अक्सर लोगों को अपनी तरफ खींचने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

बीच का रास्ता और भावी रणनीति

एक सरकारी अधिकारी ने संकेत दिया है कि छत्तीसगढ़ पुलिस इस संवेदनशील मामले में बीच का रास्ता निकाल सकती है। इसमें बसवराजू के शव का दावा करने वाले रिश्तेदारों को पुलिस द्वारा सुरक्षित और गोपनीय स्थान पर किए जाने वाले अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जा सकती है। यह अंतिम संस्कार जनता की नज़रों से दूर होगा, जिससे न केवल कानून और व्यवस्था की समस्या नहीं होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि अंतिम संस्कार को किसी 'हीरो की विदाई' में न बदला जाए। पुलिस अधिकारी ने स्पष्ट किया है कि नारायणपुर ऑपरेशन में मारे गए 27 माओवादियों में से एक दर्जन से अधिक के शवों को छत्तीसगढ़ में उनके परिवारों को सौंपा गया है, लेकिन बसवराजू जैसे 'शीर्ष नेता' के लिए ऐसा करना उचित नहीं है। यह मामला सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है, जहां उन्हें कानून-व्यवस्था बनाए रखने, उग्रवाद के महिमामंडन को रोकने और मानवाधिकारों के बीच संतुलन साधना होता है। पुलिस का यह फैसला नक्सल विरोधी अभियानों में अपनाई जा रही रणनीति और भविष्य की दिशा को भी प्रभावित कर सकता है, खासकर ऐसे समय में जब देश के कुछ हिस्सों में वामपंथी उग्रवाद अभी भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। 


Post a Comment

Previous Post Next Post