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रीवा-मऊगंज पानी-पानी: भीषण गर्मी में सूखा कंठ, वादों की प्यास बुझा रही जनता janta Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - गर्मी अपने चरम पर है और सूरज आग बरसा रहा है, लेकिन रीवा और मऊगंज अंचल में पानी का संकट गहराता जा रहा है। आमजन के लिए पानी का एक कतरा भी मुश्किल हो गया है, जिससे उनकी दिनचर्या सुबह पानी की तलाश से शुरू होकर रात उसी में समाप्त हो जाती है।
गढ़ पंचायत में विकट जल संकट
जनपद पंचायत गंगेव की तीसरी सबसे बड़ी पंचायत माने जाने वाले ग्राम पंचायत गढ़ में हालात सबसे ज़्यादा गंभीर हैं। यह पंचायत न केवल स्थानीय प्रशासनिक केंद्रों से जुड़ी है, बल्कि इसके आसपास के पाँच किलोमीटर के गांवों के लोग भी इसी मार्ग से गुजरते हैं। यहां थाना, पशु चिकित्सालय, आयुर्वेदिक औषधालय, स्कूल और उप-तहसील जैसे महत्वपूर्ण संस्थान भी हैं, लेकिन इन सबके बावजूद, यहां के नागरिकों के लिए पीने के पानी का कोई स्थायी समाधान नहीं है।
टैंकर बने "लोहे की मूर्तियां"
मौके पर गढ़ पंचायत में तीन पानी के टैंकर खड़े मिले, जो स्थानीय विधायक इंजीनियर नरेंद्र प्रजापति द्वारा पंचायतों में टैंक और मोटरें लगवाने के वादे के बाद आए थे। लेकिन आज ये टैंकर केवल "लोहे की मूर्तियां" बनकर रह गए हैं, क्योंकि उनमें पानी नहीं है। हैंडपंप सूख चुके हैं, पानी की टंकियां खाली पड़ी हैं और तालाबों का नामोनिशान मिट चुका है।
पानी अब बना व्यापार
जल संकट के कारण पानी अब एक व्यापार बन गया है। जो लोग सक्षम हैं, वे 20 से 30 रुपये में 40 लीटर पानी खरीद रहे हैं। लेकिन गरीबों के लिए यह विलासिता है। उन्हें या तो दूसरों के दरवाज़े पर मदद के लिए हाथ फैलाना पड़ता है या फिर दूर-दूर तक पानी की तलाश में भटकना पड़ता है। कई बार तो उन्हें पूरी रात जागकर पानी की लाइन में लगना पड़ता है। गढ़ के ग्रामीण बताते हैं कि सुबह 3 बजे से ही महिलाएं, बुजुर्ग और बच्चे पानी भरने के लिए दौड़ना शुरू कर देते हैं, और यह सिलसिला रात 10 बजे तक चलता है।
जनता की अनसुनी पुकार
ग्रामवासियों का आरोप है कि विधायक द्वारा पिछले दो वर्षों से लगातार आश्वासन दिए जा रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। जल जीवन मिशन जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं केवल कागज़ों में ही जीवित हैं, और स्थानीय लोगों का कहना है कि इस योजना का लाभ केवल पाइप बनाने वाली कंपनियों और ठेकेदारों को मिल रहा है।
न्यायिक प्रक्रिया भी प्रभावित
गढ़ उप-तहसील के अधिवक्ताओं ने बताया कि यहां आने वाले पक्षकार और वकील भी पानी के लिए परेशान हैं। तहसील कार्यालय के सामने एक खाली पानी की टंकी और सूखा टैंकर खड़ा है, जो वर्षों से उपयोग में नहीं लाया गया है। न किसी सामाजिक संस्था ने प्याऊ खोला है और न ही प्रशासन ने कोई अस्थायी राहत दी है।
राजनीतिक वादों का खोखलापन
यह वही मनगवां विधानसभा क्षेत्र है, जिसने राज्य को श्रीनिवास तिवारी, गिरीश गौतम, रुक्मणि रमन प्रताप सिंह और सांसद यमुना प्रसाद शास्त्री जैसे कई दिग्गज नेता दिए हैं। लेकिन आज जब जनता को पीने के पानी की सबसे मूलभूत आवश्यकता है, तब उनके उत्तराधिकारी केवल राजनीतिक गणनाओं में व्यस्त दिखते हैं। भाजपा को यहां के लोग लगातार दो-तिहाई बहुमत से जिताते आए हैं, लेकिन जब बदले में पानी जैसी बुनियादी आवश्यकता भी पूरी न हो, तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है।
'जल जीवन मिशन' सिर्फ नाम का
सरकार की प्रमुख पेयजल योजना "जल जीवन मिशन" की बात करें तो, यह योजना आज सिर्फ दो वर्गों के लिए ही सफल दिखती है – एक पाइप आपूर्ति कंपनियों के लिए और दूसरे ठेकेदारों के लिए। ज़मीनी हकीकत यह है कि खारा पानी भी अब दुर्लभ हो रहा है, और मीठा पानी सिर्फ चुनावी वादों तक सीमित है।
जब मूलभूत आवश्यकता – पानी – के लिए जनता को इस कदर संघर्ष करना पड़े, तो यह केवल प्रशासनिक विफलता नहीं, बल्कि नैतिक पतन का भी संकेत है। गढ़ पंचायत जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र, जहां सरकारी कार्यालय और स्कूल हैं, यदि वहां पानी की यह स्थिति है, तो दूरस्थ बस्तियों का हाल क्या होगा, इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। अब समय आ गया है कि जनप्रतिनिधि केवल वादे न करें, बल्कि अपने क्षेत्र की जनता के बीच जाकर धरातल पर काम करें। अन्यथा, जनता का आक्रोश उनके चुनावी भविष्य को बंजर बना सकता है – ठीक उसी तरह जैसे यह ज़मीन बिना पानी के हो चुकी है।