![]() |
रीवा-मऊगंज में 'निशुल्क' राशन योजना में 'महा-घोटाला': गरीबों का निवाला छीन रहे 'राशन माफिया mafiya Aajtak24 News |
रीवा/मऊगंज - प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी "निशुल्क खाद्यान्न योजना", जिसका उद्देश्य गरीबों को भुखमरी से बचाना है, मध्य प्रदेश के रीवा और मऊगंज जिलों में व्यापक भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नज़र आ रही है। आरोप है कि राशन माफियाओं का एक सुनियोजित नेटवर्क इस योजना को खोखला कर रहा है, जबकि शासन-प्रशासन इस पूरे खेल पर चुप्पी साधे हुए है। पारदर्शिता के लिए बनाए गए नियमों का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, और जरूरतमंद हितग्राही अपने हक के अनाज से वंचित किए जा रहे हैं।
अंगूठा लगवाकर कम अनाज: पोषण सुरक्षा नहीं, मुनाफाखोरी का अड्डा
जिलों की कई उचित मूल्य की दुकानों पर POS (प्वाइंट ऑफ सेल) मशीन में पहले हितग्राही का अंगूठा लगवा लिया जाता है, लेकिन उसके बाद अनाज की मात्रा मनमाने तरीके से दी जाती है। आरोप है कि हितग्राहियों को यह भी नहीं बताया जाता कि उन्हें कितनी मात्रा में खाद्यान्न मिलना चाहिए और कितना मिला। कहीं चावल में तो कहीं गेहूं में कटौती, यह गड़बड़ी अब सिस्टम का हिस्सा बन चुकी है। मुफ्त में मिलने वाला यह अनाज गरीबों की पोषण सुरक्षा की जगह, कुछ लोगों की मुनाफाखोरी का अड्डा बन गया है।
गोदाम से दुकान तक भ्रष्टाचार का 'खेल': वजन में हेरफेर और कालाबाजारी
इस भ्रष्टाचार का खेल गोदाम से ही शुरू हो जाता है। बताया गया है कि जब बोरियां गोदाम से निकलती हैं तो उनका वजन 50 किलो 700 ग्राम होता है, लेकिन उचित मूल्य की दुकान पर जांच में यही बोरियां 54 किलो तक की हो जाती हैं। सवाल यह है कि अतिरिक्त वजन की इन बोरियों का हिसाब कौन रख रहा है? यह अतिरिक्त अनाज क्या वाकई हितग्राहियों तक पहुंचता है, या फिर सीधे माफियाओं के गोदामों में खपाया जा रहा है? यदि रोज़ 10,000 बोरियां निकलीं और हर बोरी में 4 किलो अतिरिक्त रहा, तो प्रतिदिन 40,000 किलो अनाज कहां गायब हो रहा है?
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रत्येक उचित मूल्य दुकान पर प्रतिमाह 10 से 15 क्विंटल खाद्यान्न गुपचुप तरीके से गायब कर दिया जाता है। इस अनाज को या तो बिचौलियों को बेचा जाता है या स्थानीय व्यापारियों के माध्यम से कालाबाजारी के नेटवर्क में खपाया जाता है।
विक्रेताओं की संदिग्ध योग्यता और आय से अधिक खर्च
राशन वितरण करने वाले विक्रेताओं की भर्ती प्रक्रिया पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि मापदंडों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। एक विक्रेता की मासिक आय अधिकतम ₹11,000 होती है, लेकिन उनका मासिक खर्च कर्मचारियों और अन्य सुविधाओं पर ₹16,000 तक पहुंच रहा है। ऐसे में यह बड़ा सवाल उठता है कि इन विक्रेताओं के पास अतिरिक्त पैसा कहां से आ रहा है? क्या यह हितग्राहियों के हिस्से का राशन बेचकर जुटाया जा रहा है?
फर्जीवाड़ा और दलालों का राज: POS मशीन से अंगूठा लगाकर चोरी
कई दुकानों पर तो अंगूठा पहले ही लगाकर केवल रिकॉर्ड में राशन वितरण दर्शाया जा रहा है, जबकि हकीकत में हितग्राही को खाद्यान्न नहीं दिया जा रहा। ऐसे वीडियो और शिकायती पत्र सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं। क्या प्रशासन इन शिकायतों को नजरअंदाज कर रहा है, या भ्रष्टाचारियों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है?
राशन कार्ड की पात्रता पर भी बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। आरोप है कि रीवा और मऊगंज जिले में हजारों ऐसे व्यक्ति हैं जिनके नाम पर गरीबी रेखा से नीचे (BPL) कार्ड बने हैं, जबकि वे वास्तव में समृद्ध हैं। वहीं, जो वास्तविक गरीब हैं, वे दर-दर भटक रहे हैं। यह भी सामने आया है कि ₹2,000 से ₹3,000 में फर्जी कार्ड बनवाए जा रहे हैं। पूरा सिस्टम दलालों के इशारे पर चल रहा है।
खुलेआम बिक रहा मुफ्त का अनाज: खाद्य विभाग पर सवालिया निशान
उचित मूल्य की दुकानों के पास बैठे एजेंट ₹18 से ₹20 प्रति किलो की दर से गेहूं और चावल खरीदते हैं, जिसे बाद में ऊंचे दामों में बेचा जाता है। पैसे के लालच में कई हितग्राही मुफ्त का राशन बेच देते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या इन सब गतिविधियों से खाद्य विभाग पूरी तरह अनजान है या जान-बूझकर आंखें मूंदे हुए है?
प्रशासन की चुप्पी: जांच कब और कौन करेगा?
यह सब तब हो रहा है जब शासन और खाद्य विभाग के पास निगरानी के लिए टेक्नोलॉजी, पोर्टल और अन्य सभी संसाधन मौजूद हैं। फिर भी कोई कार्रवाई न होना गंभीर संदेह पैदा करता है। क्या जिला कलेक्टर रीवा और मऊगंज इस गंभीर मुद्दे पर ध्यान देंगे? क्या गोदाम से निकलने वाली बोरियों का वास्तविक वजन रिकॉर्ड किया जा रहा है और क्या तुला यंत्रों की नियमित जांच हो रही है?
जनता की मांग है कि:
- सभी राशन दुकानों का स्वतंत्र ऑडिट किया जाए।
- गोदाम से बोरियों के वजन की जांच हो और रिकॉर्ड सार्वजनिक हो।
- हितग्राहियों की पुनः पात्रता जांच कर अपात्रों के कार्ड रद्द किए जाएं।
- बिचौलियों और विक्रेताओं की मिलीभगत पर कड़ी कानूनी कार्रवाई हो।
- भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों एवं कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय कर उन्हें सस्पेंड किया जाए।
यदि अब भी कार्रवाई नहीं हुई, तो जनता को न्याय मिलना संभव नहीं होगा। यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि गरीब की थाली से निवाला छीनने का है।