बी.एड., एम.एड. प्रायोगिक परीक्षाओं में विश्वविद्यालय की मनमानी का मामला पहुंचा हाईकोर्ट haicourt Aajtak24 News

 

बी.एड., एम.एड. प्रायोगिक परीक्षाओं में विश्वविद्यालय की मनमानी का मामला पहुंचा हाईकोर्ट haicourt Aajtak24 News
रीवा - अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा में बी.एड. एवं एम.एड. प्रायोगिक परीक्षाओं के परीक्षकों की नियुक्ति में हुई कथित अनियमितताओं का मामला अब न्यायालय की चौखट तक पहुंच गया है। विश्वविद्यालय पर गेस्ट फैकल्टी एवं अपात्र प्राध्यापकों को नियमों को दरकिनार कर परीक्षक नियुक्त करने का आरोप लगा है। इसी संबंध में शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, रीवा में कार्यरत सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनील तिवारी ने मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर में याचिका क्रमांक 17296/2025 दाखिल की थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि विश्वविद्यालय ने बी.एड. एवं एम.एड. की प्रायोगिक परीक्षाओं हेतु योग्य एवं अनुभवी प्राध्यापकों को नजरअंदाज कर गेस्ट फैकल्टी और अपात्र व्यक्तियों की नियुक्ति की। न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप करते हुए याचिकाकर्ता को पुनः अभ्यावेदन प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान किया है एवं कुलसचिव को निर्देशित किया है कि उक्त अभ्यावेदन का विधिसम्मत निराकरण कर पात्रता अनुसार परीक्षक नियुक्ति की जाए।

शोध सहायक की पत्नी को आठ जगह बना दिया गया परीक्षक

विशेष रूप से यह आरोप लगाया गया है कि विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू शोध केंद्र में पदस्थ शोध सहायक नलिन दुबे की पत्नी शोभा रानी दुबे, जो स्वयं गेस्ट फैकल्टी हैं, को बी.एड. प्रथम वर्ष की प्रायोगिक परीक्षाओं के लिए एक साथ आठ महाविद्यालयों में परीक्षक नियुक्त किया गया। यह नियुक्ति न केवल नियम विरुद्ध बताई जा रही है, बल्कि इसके पीछे विश्वविद्यालय प्रशासन में प्रभावशाली पदों पर बैठे कुछ लोगों की मिलीभगत की भी बात सामने आई है।

शासकीय महाविद्यालय के अनुभवी प्राध्यापकों को किया गया दरकिनार

अभियोजन में यह भी दर्शाया गया कि संभाग के एकमात्र शासकीय शिक्षा महाविद्यालय, रीवा के प्राध्यापकों को जानबूझकर परीक्षक नियुक्ति से बाहर रखा गया। गौरतलब है कि यह महाविद्यालय प्रदेश के सबसे पुराने बी.एड./एम.एड. शिक्षण संस्थानों में गिना जाता है और यहां के प्राध्यापक पूर्व में लगातार परीक्षकों के रूप में सेवाएं देते रहे हैं।

निजी महाविद्यालयों के अपात्र प्राध्यापक बने एम.एड. परीक्षक

साथ ही कई निजी महाविद्यालयों के ऐसे प्राध्यापकों को एम.एड. परीक्षा के लिए परीक्षक नियुक्त किया गया, जिनके संस्थान में एम.एड. की कक्षाएं ही संचालित नहीं होतीं। जबकि नियमानुसार एम.एड. परीक्षक हेतु कम से कम पाँच वर्ष का एम.एड. अध्यापन अनुभव आवश्यक है।

पहले भी हुआ था न्यायालय से हस्तक्षेप

इससे पूर्व भी वाद क्रमांक WP/11963/2025 में विश्वविद्यालय के गैर-एम.एड. डिग्रीधारी प्राध्यापकों की नियुक्ति को लेकर उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय को नोटिस जारी किया था, जिसके बाद तत्कालीन आदेशों को स्थगित कर दिया गया था। बावजूद इसके, विश्वविद्यालय ने नियमों की अनदेखी करते हुए नए आदेशों में फिर अपात्र व्यक्तियों की नियुक्ति की।

नलिन दुबे पर बढ़ सकती हैं गाज

इस पूरे प्रकरण में शोध सहायक नलिन दुबे की भूमिका को लेकर कई गंभीर आरोप सामने आए हैं। बताया जा रहा है कि विश्वविद्यालय के तीनों कर्मचारी संगठनों द्वारा उनके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने पर अब एक महासभा बुलाई जा सकती है। इसके अलावा, कुलपति कार्यालय से उन्हें हटाकर मूल विभाग में स्थानांतरित करने की भी चर्चा जोरों पर है। राजभवन में भी उनके व्यवहार और अधिकारियों से अनावश्यक रोक-टोक की शिकायतें पहुंची हैं।

न्यायालय के निर्देश से स्पष्ट हुई दिशा

न्यायालय के निर्देशों के बाद अब यह संभावना प्रबल हो गई है कि शासकीय शिक्षा महाविद्यालय के पात्र प्राध्यापकों को बी.एड. एवं एम.एड. प्रायोगिक परीक्षाओं के लिए परीक्षक नियुक्त किया जाएगा। वहीं, अपात्र एवं गेस्ट फैकल्टी के रूप में कार्यरत व्यक्तियों को हटाए जाने की स्थिति भी बन गई है

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