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मॉनसून से पहले धान की बंपर पैदावार का मंत्र: भारत के किसान अपनाएं ये आधुनिक तकनीकें, बढ़ेगा मुनाफा और बैंक बैलेंस balnce Aajtak24 News |
नई दिल्ली - मॉनसून की दस्तक करीब है और देशभर के किसान धान की खेती की तैयारियों में जोर-शोर से जुट गए हैं। आधुनिक कृषि पद्धतियों और वैज्ञानिक सलाह को अपनाकर भारत के किसान अब अपनी मेहनत, मजदूरी और समय बचाने के साथ-साथ बंपर पैदावार सुनिश्चित कर अपना मुनाफा बढ़ा सकते हैं। कृषि विशेषज्ञों की सलाह है कि किसान कुछ खास कामों को मॉनसून से पहले ही निपटा लें ताकि धान की फसल बेहतरीन हो और उनका आर्थिक लाभ भी बढ़े।
गर्मी की जुताई: मिट्टी का पोषण और रोग नियंत्रण
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मॉनसून से पहले गर्मी में खेतों की जुताई करना मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। तेज धूप में जुताई से मिट्टी में छिपे कीटों के अंडे, लार्वा और बीमारियों के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है और अगली फसल में कीट-रोगों का प्रकोप भी कम होता है। जैसे ही मॉनसून की पहली बारिश होती है, किसान तुरंत रोटावेटर चलाकर खेतों को बुवाई के लिए तैयार कर सकते हैं।
DRS और मेडागास्कर पद्धति: समय की बचत और जैविक खेती को बढ़ावा
भारत के कई हिस्सों में किसान अब पारंपरिक रोपाई विधि से हटकर नई पद्धतियों को अपना रहे हैं। डायरेक्ट राइस सोइंग (DRS) तकनीक इसमें प्रमुख है। इस पद्धति से सीधे धान की बुवाई शुरू की जाती है। इससे समय की भारी बचत होती है क्योंकि नर्सरी तैयार करने और रोपाई करने की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही, खेतों में नमी बनी रहती है, जो धान की अच्छी ग्रोथ और जड़ विकास के लिए अनुकूल है। इसके अलावा, कुछ प्रगतिशील किसान मेडागास्कर पद्धति को भी अपना रहे हैं, जो जैविक खेती को बढ़ावा देती है। इस विधि में धान की नर्सरी तैयार की जाती है, लेकिन इसमें गोबर और वर्मी कम्पोस्ट जैसी जैविक खादों का भरपूर प्रयोग किया जाता है। नर्सरी तैयार होने में लगभग 15 दिन लगते हैं, जिसके बाद धान की रोपाई की जाती है। यह तकनीक पौधों को शुरुआती अवस्था में ही पर्याप्त पोषक तत्व और बढ़ने के लिए मजबूत आधार देती है, जिससे पौधों में मजबूती आती है और उत्पादन बेहतर होता है।
कोनोवीडर और SRI पद्धति: अधिक कल्ले और बेहतर उत्पादन
उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान कोनोवीडर नामक यंत्र का भी उपयोग कर सकते हैं। यह यंत्र, जिसे किसान मैन्युअल रूप से चलाते हैं, मिट्टी को बार-बार उलटने-पलटने का कार्य करता है। यह खरपतवार नियंत्रण में भी सहायक है और मिट्टी को हवादार बनाए रखता है। धान की रोपाई एसआरआई (System of Rice Intensification) पद्धति से की जाती है, जिसमें पौधों को 25 सेमी की दूरी पर लाइन में लगाया जाता है। यह दूरी सुनिश्चित करती है कि कोनोवीडर का व्हील आसानी से चल सके। इस तकनीक से पौधों को पर्याप्त स्थान और पोषण मिलता है, जिससे धान में ज्यादा कल्ले आते हैं और अंततः उत्पादन में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है।
धान की प्रमुख किस्में और सरकारी खरीदी व्यवस्था
भारत के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में धान की अलग-अलग किस्में उपयुक्त होती हैं। आमतौर पर 120 से 135 दिनों में तैयार होने वाली किस्में लोकप्रिय हैं, हालांकि कुछ किस्में 110 दिनों में भी पक जाती हैं। उत्पादन की दृष्टि से 120 दिनों वाली किस्में ज़्यादा कारगर मानी जाती हैं। किसानों की उपज की खरीदी सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर की जाती है, जिससे उन्हें अपनी फसल का उचित दाम मिल सके। इसके अलावा, कई किसान धान को चावल में बदलकर सीधे बाजार में बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
मॉनसून की पहली बारिश के बाद किसानों के लिए आवश्यक तैयारी:
मॉनसून की पहली बारिश किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आती है, लेकिन यह समय अत्यंत सावधानी और तैयारी का भी होता है। कृषि विशेषज्ञों की सलाह है कि इस समय कुछ जरूरी कदम उठाना पूरे खेती सीजन में अच्छी फसल सुनिश्चित कर सकता है:
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खेत की मेड़ों की मरम्मत और उचित जल निकासी: पहली बारिश के बाद अक्सर खेतों में पानी जमा हो जाता है, जिससे बीज गल सकते हैं या पौधे सड़ने लगते हैं। इससे बचने के लिए खेत की मेड़ों की मरम्मत करना, नालियों की सफाई सुनिश्चित करना और खेत को ऐसा ढलान देना जिससे पानी का समुचित बहाव बना रहे, अत्यंत महत्वपूर्ण है। सही जल निकासी से बीज और पौधों को नुकसान नहीं होता।
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मिट्टी की जांच और संतुलित उर्वरक: अक्सर किसान अनुमान से खाद डालते हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता घट जाती है। बारिश के बाद मिट्टी में नमी बनी रहती है, जो मिट्टी की जांच के लिए सबसे अच्छा समय होता है। जांच से मिट्टी में मौजूद और अनुपस्थित पोषक तत्वों का पता चलता है। इसके आधार पर संतुलित उर्वरक का प्रयोग करने से उत्पादन में वृद्धि होती है और मिट्टी की सेहत भी बनी रहती है।
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बीजों का फफूंदनाशक से उपचार: मॉनसून में नमी बढ़ने से बीजों में फफूंदी लगने का खतरा बढ़ जाता है, जिससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है। इसलिए, बुवाई से पहले बीजों को फफूंदनाशक दवाओं से उपचारित करना चाहिए। इससे बीज रोगमुक्त रहते हैं, अच्छा अंकुरण होता है, और पौधे मजबूत बनकर रोगों से सुरक्षित रहते हैं।
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सही फसल और समय पर बुवाई: देरी से बुवाई करने पर फसल को पूरा विकसित होने का समय नहीं मिल पाता और पैदावार घट जाती है। इसलिए, स्थानीय जलवायु और मिट्टी को ध्यान में रखकर फसल का चयन करें और समय पर बुवाई करें, ताकि फसल का पूरा चक्र पूरा हो सके।
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प्रभावी खरपतवार नियंत्रण: पहली बारिश के बाद खेतों में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं। ये फसलों से पोषक तत्व और पानी छीन लेते हैं, जिससे फसल की वृद्धि और उत्पादन दोनों प्रभावित होते हैं। इसलिए, खरपतवार को समय पर हटाना अत्यंत आवश्यक है ताकि फसल स्वस्थ बनी रहे।
भारत के किसान यदि मॉनसून से पहले खेत की तैयारी और इन आधुनिक तकनीकों व वैज्ञानिक सलाह का सही प्रयोग करते हैं, तो उन्हें निश्चित रूप से बंपर पैदावार के साथ बेहतर मुनाफा मिल सकता है। आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाकर भारत कृषि के क्षेत्र में और भी अधिक अग्रणी बन सकता है।