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रीवा संभाग में 'रामराज्य' का खोखला दावा: जब कानून के रखवाले, प्रशासनिक अधिकारी और पत्रकार भी असुरक्षित asurakshit Aajtak24 News |
रीवा - मध्य प्रदेश का रीवा संभाग, जिसमें रीवा, सतना, सीधी और मऊगंज जैसे महत्वपूर्ण जिले शामिल हैं, आज एक ऐसे गहरे असुरक्षा के दलदल में धंसता जा रहा है, जहां राज्य सरकार के 'रामराज्य' के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। विडंबना यह है कि इस संभाग में न तो महिलाएं सुरक्षित हैं, न बच्चियां, न युवा और न ही बुजुर्ग। हद तो तब हो जाती है जब न्याय दिलाने की जिम्मेदारी निभाने वाली पुलिस स्वयं असुरक्षित महसूस करे, और प्रशासनिक अधिकारी तक भय के साये में काम करने को मजबूर हों। ऐसे में आम नागरिक किससे अपनी सुरक्षा की उम्मीद करे? रीवा संभाग में हाल के दिनों में सामने आई आपराधिक घटनाओं की श्रृंखला न केवल चिंताजनक है, बल्कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व पर भी एक गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाती है। जिन तहसीलदारों और पटवारियों के हाथों में प्रशासनिक और न्यायिक अधिकार निहित होते हैं, यदि वे ही खुलेआम हमलों का शिकार हो रहे हों, तो आम आदमी अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए किसका दरवाजा खटखटाए? आज स्थिति यह है कि अपराधी बेखौफ होकर सड़कों पर घूम रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि राजनीतिक संरक्षण उन्हें किसी भी कानूनी कार्रवाई से बचा सकता है। वहीं, पुलिसकर्मी और प्रशासनिक अमला या तो अपराधियों के डर से सहमा हुआ है या फिर राजनीतिक दबाव के मकड़जाल में फंसा हुआ है।
प्रदेश की जनता ने पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार से त्रस्त होकर भारतीय जनता पार्टी को सत्ता सौंपी थी, इस उम्मीद के साथ कि अब 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' का नारा हकीकत में बदलेगा। लेकिन अब वही जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है। जिस सत्ता को उन्होंने 'रामराज्य' की आस में चुना था, आज उसी के शासन में उनके प्राण और प्रतिष्ठा दोनों खतरे में हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया पर भी हमले हो रहे हैं। पत्रकारों को सरेआम पीटा और धमकाया जा रहा है, जो लोकतंत्र के गहरे पतन का संकेत है। यदि जनता और सरकार के बीच संवाद का यह पुल भी टूट जाए, तो आम आदमी अपनी पीड़ा और गुहार किसके सामने रखेगा?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जी से रीवा संभाग की त्रस्त जनता का सीधा सवाल है कि क्या यही उनकी सरकार का 'रामराज्य' है? क्या यही 'गुड गवर्नेंस' का उनका वादा था? यदि पुलिस, पत्रकार, प्रशासनिक अधिकारी और आम नागरिक, कोई भी सुरक्षित नहीं है, तो यह शासन आखिर किसके लिए है? जनता को अब सिर्फ भाषण और नारों से संतोष नहीं मिलेगा। उन्हें जमीनी स्तर पर ठोस कार्रवाई चाहिए। जनता के विश्वास का उत्तरदायित्व केवल प्रचार से नहीं, बल्कि धरातल पर सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करके ही निभाया जा सकता है।
आज रीवा संभाग की जनता असहाय नहीं है। वह सब देख रही है, समझ रही है और सवाल भी पूछ रही है। यदि सत्ता वास्तव में 'जनसेवा' का माध्यम है, तो अब मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को सिर्फ शासन नहीं, बल्कि संवेदना के साथ प्रशासन चलाना होगा। रीवा संभाग में कानून व्यवस्था की यह गिरती स्थिति पूरे प्रदेश की तस्वीर का एक छोटा सा नमूना है। यदि अब भी आंखें नहीं खुलीं, तो यह असंतोष की आग पूरे प्रदेश में फैल जाएगी, और तब स्थिति को संभालना बहुत मुश्किल हो जाएगा।