![]() |
चिकित्सा के नाम पर मौत का बाजार! 3500 से अधिक फर्जी डॉक्टरों का जाल, अपाहिज होती स्वास्थ्य व्यवस्था vyavstha Aajtak24 News |
नकली डिग्री, जानलेवा इलाज: झोलाछाप डॉक्टरों का बढ़ता जाल
इन अवैध चिकित्सकों, जिन्हें आम भाषा में झोलाछाप डॉक्टर कहा जाता है, के पास न तो वैध चिकित्सा की कोई डिग्री है, न ही बीमारियों का निदान और उपचार करने का कोई अनुभव। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन्हें किसी भी प्रकार के चिकित्सकीय नियमों या नैतिक जिम्मेदारी का कोई बोध नहीं है। स्थिति इतनी हास्यास्पद और खतरनाक है कि दंत चिकित्सा का मामूली ज्ञान रखने वाले व्यक्ति हृदय और किडनी जैसी गंभीर बीमारियों का इलाज कर रहे हैं। वहीं, तथाकथित पैथोलॉजी सेंटरों में बिना किसी वास्तविक मर्ज के मरीजों को गंभीर बीमारियां बताई जा रही हैं, जिससे वे अनावश्यक और कई बार हानिकारक उपचार करवाने को मजबूर हो रहे हैं। दवाओं के नाम पर मरीजों को क्या दिया जा रहा है, यह भी एक बड़ा सवाल है, क्योंकि कई मामलों में नकली और मिलावटी दवाएं परोसे जाने की आशंका है, जो मरीजों के स्वास्थ्य को और भी गंभीर खतरे में डाल सकती हैं।
गर्भवती महिलाओं से धोखा, भ्रूण हत्या तक को मजबूर
रीवा जिले से ऐसे कई चौंकाने वाले मामले सामने आए हैं, जहां इन फर्जी डॉक्टरों ने गर्भवती महिलाओं के साथ घिनौना खेल खेला है। उन्हें झूठी और मनगढ़ंत मेडिकल रिपोर्टें दिखाकर गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया है। यह न केवल चिकित्सा पद्धति की हत्या है, बल्कि एक सभ्य समाज में मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन और अपमान है। इन अवैध कृत्यों के कारण न जाने कितनी मासूम जिंदगियां गर्भ में ही समाप्त कर दी गईं, और कितनी महिलाओं को मानसिक और शारीरिक पीड़ा सहनी पड़ी।
कौन है जिम्मेदार? सत्ता के गलियारों में पसरी चुप्पी
सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री और उपमुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्ति स्वयं इसी विंध्य क्षेत्र से आते हैं, और फिर भी क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति इतनी बदतर है? यह सवाल आम जनता के मन में बार-बार उठ रहा है। क्या यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है, या फिर इस पूरे अवैध कारोबार के पीछे किसी बड़ी साजिश के तहत चुप्पी साधी गई है? जनता यह समझने में विफल है कि उनके अपने क्षेत्र के इतने बड़े नेता होने के बावजूद, स्वास्थ्य व्यवस्था इस कदर चरमरा गई है और हजारों की संख्या में अवैध डॉक्टर उनकी जान से खेल रहे हैं।
"मेडिकल हब" या "मेडिकल माफिया का गढ़"? विरोधाभासी तस्वीर
एक तरफ सरकार रीवा को एक विकसित "मेडिकल हब" के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है, वहीं दूसरी तरफ जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत है। सच्चाई यह है कि रीवा और आसपास के क्षेत्रों के गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीज बेहतर इलाज की तलाश में पड़ोसी राज्यों के नागपुर, बनारस और प्रयागराज जैसे शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। सवाल यह उठता है कि यदि रीवा वास्तव में इलाज में सक्षम है, तो हर दिन बसों में भरकर इतने सारे मरीज दूसरे शहरों की ओर क्यों भेजे जा रहे हैं? यह विरोधाभासी तस्वीर सरकार के दावों पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
प्रशासन की रहस्यमय चुप्पी = स्वीकृति?
प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका भी इस पूरे मामले में संदेह के घेरे में है। रीवा और मऊगंज के हर थाने, हर स्वास्थ्य केंद्र और हर मेडिकल स्टोर के आसपास इन अवैध डॉक्टरों की उपस्थिति क्या बिना प्रशासन की जानकारी के संभव है? यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हर कोई जानना चाहता है। क्या प्रशासनिक अधिकारी सिर्फ ट्रांसफर और पोस्टिंग के खेल में व्यस्त हैं, और उन्हें आम जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा की कोई परवाह नहीं है? उनकी रहस्यमय चुप्पी इस बात की ओर इशारा करती है कि कहीं न कहीं इस अवैध कारोबार को अप्रत्यक्ष रूप से संरक्षण मिल रहा है।
भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें: हर विभाग में व्याप्त शिथिलता
रीवा और मऊगंज में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी तक फैली हुई हैं। पुलिस विभाग में महत्वपूर्ण नियुक्तियां तक जनप्रतिनिधियों के इशारों पर हो रही हैं, जिससे कानून व्यवस्था कमजोर हो रही है। आबकारी और खनिज जैसे महत्वपूर्ण विभागों में बाहरी राज्यों के माफिया सक्रिय हैं, जो अवैध कारोबार को बढ़ावा दे रहे हैं। और जहां तक स्वास्थ्य विभाग की बात है, तो वह पूरी तरह से शिथिल नजर आ रहा है, जिसका सीधा फायदा इन अवैध डॉक्टरों को मिल रहा है।
चिंताजनक बात यह है कि रीवा अब अपराध के आंकड़ों में बिहार और बंगाल जैसे राज्यों को भी पीछे छोड़ता जा रहा है। यदि यही स्थिति बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब रीवा राज्य का सबसे असुरक्षित और अस्वस्थ जिला कहलाएगा।
जनता के ज्वलंत प्रश्न: कौन देगा जवाब?
रीवा और मऊगंज की जागरूक जनता अब कुछ महत्वपूर्ण सवाल पूछ रही है, जिनका जवाब उन्हें अपने जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से चाहिए:
- क्या हमारे जनप्रतिनिधि रीवा की इस दयनीय दुर्दशा के लिए कभी जवाबदेह होंगे?
- प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री किस "मॉडल" की बात कर रहे हैं, जब उनके ही गृह जिले में मौत के सौदागर खुलेआम घूम रहे हैं और लोगों की जान से खेल रहे हैं?
- क्या स्थानीय प्रशासन गहरी नींद में सो रहा है, या फिर वह जानबूझकर इन सभी अवैध गतिविधियों पर अपनी आंखें मूंदे हुए है?
- क्या प्रशासन किसी बड़ी और भयावह घटना के घटित होने का इंतजार कर रहा है, जिसके बाद वह सिर्फ खानापूर्ति के लिए कुछ दिखावटी कार्रवाई करेगा?
अब बहुत हो चुका! जनता चाहती है जवाबदेही, कार्रवाई और बदलाव
रीवा की जनता अब सिर्फ चुनावी वादों और खोखले आश्वासनों से संतुष्ट होने वाली नहीं है। वह अब अपने जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से ठोस जवाबदेही और प्रभावी कार्रवाई चाहती है। सवाल यह है कि यदि अब भी सिस्टम नहीं जागा, तो कब जागेगा? क्या प्रशासन किसी और बड़ी त्रासदी का इंतजार कर रहा है, जिसके बाद वह कुछ समय के लिए जांच के नाम पर कार्रवाई करेगा और फिर सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा? अब समय आ गया है कि इस "मौत के बाजार" को बंद किया जाए और आम जनता के स्वास्थ्य और जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।