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हिंसक अंत की ओर बढ़ते रिश्ते: जब तलाक आसान नहीं, तो अपराध बन जाता है विकल्प vikalp Aajtak24 News |
नई दिल्ली - भारत में शादी एक सामाजिक संस्था है, जिसे जोड़ने में परिवार, समाज और कभी-कभी कानून भी शामिल होता है। लेकिन जब यह संस्था टूटने लगती है, तब उस टूटन को स्वीकार करना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। तलाक की प्रक्रिया जितनी कठिन और समय लेने वाली होती है, उतना ही ज्यादा तनाव, गुस्सा और असंतोष बढ़ता है। यही असंतोष कई बार रिश्तों को अपराध में तब्दील कर देता है।
गाँव की पंचायत और शांति से हुआ अलगाव
उत्तर प्रदेश के रामपुर गांव की एक घटना इस बात का उदाहरण है कि अगर समाज समय रहते हस्तक्षेप करे और आपसी सहमति से मसला सुलझा दे, तो रिश्ता टूटने के बावजूद कोई गंभीर अपराध नहीं होता।
नेहा नामक एक दलित लड़की की शादी नगराम के दीपक से हुई थी। शादी के कुछ महीने बाद ही दोनों में विवाद शुरू हो गया। दीपक शराब पीकर मारपीट करता था और नेहा के चरित्र पर शक करता था। नेहा अपने मायके लौट आई। जब परिवारों ने पंचायत बुलाई, तो पुलिस की मौजूदगी में दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया। उन्होंने एक-दूसरे का सामान वापस किया और लिखित समझौते में स्पष्ट किया कि अब वे एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं रखेंगे।
यह मामला इस बात की मिसाल है कि अगर सुलह पंचायत स्तर पर हो जाए और पुलिस निष्पक्ष गवाह के रूप में मौजूद हो, तो लंबी कोर्ट प्रक्रिया की जरूरत नहीं रहती।
अलगाव न मिल पाने पर कैसे रिश्ते अपराध बन जाते हैं
लेकिन जब यही स्थिति समय रहते नहीं सुलझती, तो कई बार परिणाम हिंसक हो जाते हैं।
➡ मैनपुरी में दिलीप की हत्या:
प्रगति नाम की महिला, जो अनुराग से प्रेम करती थी, की शादी दिलीप नामक युवक से कर दी गई। शादी के 15 दिन के भीतर प्रगति ने अनुराग के साथ मिलकर अपने पति को मारने की साजिश रच डाली। पुलिस जांच में पता चला कि उसने प्रेमी को पति की हत्या के लिए एक लाख रुपये दिए। हत्या के बाद सभी आरोपी गिरफ्तार हुए। अगर प्रगति को समय रहते तलाक लेने का वैकल्पिक और सरल रास्ता मिल जाता, तो शायद यह हत्या नहीं होती।
➡ लखनऊ में सिपाही का प्रतिशोध:
सिपाही महेंद्र ने पत्नी अंकिता के प्रेम संबंध का विरोध किया। जब पत्नी ने प्रेमी से संबंध तोड़ने का वादा किया, तो सिपाही ने उसके साथ मिलकर पत्नी के प्रेमी और उसके दोस्त की हत्या कर दी। पुलिस ने जांच कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया।
➡ मेरठ में नीले ड्रम से निकला शव:
लंदन से लौटा मर्चेंट नेवी अधिकारी सौरभ अपनी पत्नी और बेटी के साथ रह रहा था। कुछ ही दिन में उसकी हत्या कर दी गई और शव को ड्रम में बंद कर सील कर दिया गया। पड़ोसियों को जब बदबू आई, तब मामला खुला। हत्या के पीछे पत्नी और उसके प्रेमी का संबंध था।
कानूनी पेचीदगियों की जटिलता
भारत में विवाह और तलाक से जुड़े कई कानून हैं — हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ, ईसाई विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम आदि। इन सबमें तलाक की प्रक्रिया समय लेने वाली, महंगी और मानसिक रूप से थकाने वाली होती है।
शून्य विवाह (Void Marriage):
ऐसे विवाह जो कानून की नजर में शुरू से ही अवैध हों — जैसे, किसी की पहली शादी वैध रूप से कायम हो और वह दूसरी शादी करे, या विवाह वर्जित रिश्ते में हो — उन्हें शून्य विवाह माना जाता है।
तलाक (Divorce):
तलाक वैध विवाह को कानूनी रूप से खत्म करने की प्रक्रिया है। इसमें कोर्ट की भूमिका होती है, और दोनों पक्षों को कई दस्तावेज, सुनवाई, और समय देना होता है।
शून्य विवाह में पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार नहीं होता, न ही पति की संपत्ति में कोई हिस्सा। बच्चों को कुछ हद तक अधिकार मिलते हैं, लेकिन सीमित। तलाक में ये अधिकार बने रहते हैं, जो तलाक को सामाजिक और कानूनी रूप से ज्यादा उचित बनाता है।
समाज और कानून के बीच टकराव
जब समाज शादी जैसे रिश्ते को 'अटूट' मानता है लेकिन कानून उसे खत्म करने में बाधा बनता है, तब युवा वर्ग इसे एक 'कफन' की तरह महसूस करता है।
शादी आसानी से हो जाती है, क्योंकि पंडित और समाज मदद करते हैं, लेकिन जब रिश्ता टूटता है, तब कानून और कोर्ट के बीच पति-पत्नी को अकेला छोड़ दिया जाता है। यही अकेलापन कभी-कभी गुस्से, हताशा और अपराध में बदल जाता है।
हल क्या है?
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तलाक की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए:
जैसे नोटरी पर एफिडेविट देकर अलगाव को मान्यता दी जाए। -
पंचायत स्तर पर वैध समझौते की मान्यता:
जहां दोनों पक्षों की रजामंदी हो और पुलिस की उपस्थिति हो, वहाँ इसे कोर्ट के बिना मान्यता मिले। -
समझौता केंद्रों की स्थापना:
कोर्ट से अलग 'विवाह परामर्श केंद्र' बनाए जाएं, जहां कम खर्च में, कम समय में रिश्तों को सुलझाया जा सके। -
महिला की सहमति को प्राथमिकता दी जाए:
महिला अगर साफ तौर पर रिश्ता खत्म करना चाहती है, तो उसे लंबी कानूनी प्रक्रिया में नहीं फँसाया जाए। -
कानून में लचीलापन हो:
विशेष रूप से युवाओं के मामले में, अदालत को जल्दी सुनवाई और जल्द फैसले की दिशा में काम करना चाहिए।
शादी जितनी आसानी से हो जाती है, अगर तलाक भी उतनी ही सहजता से हो सके तो रिश्ते अपराध में नहीं बदलेंगे। जब रिश्ते में घुटन हो और बाहर निकलने का कोई वैध रास्ता न हो, तब व्यक्ति अपराध की ओर बढ़ता है।
समाज, कानून और परिवार — तीनों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि रिश्ते टूटें तो इज्जत और इंसानियत के साथ, न कि खून और खौफ के साथ।