रीवा में निशुल्क खाद्यान्न वितरण योजना में बड़ा घोटाला: लाखों का अनाज बाजार में बिकता, प्रशासनिक जांच की मांग mang Aajtak24 News


रीवा में निशुल्क खाद्यान्न वितरण योजना में बड़ा घोटाला: लाखों का अनाज बाजार में बिकता, प्रशासनिक जांच की मांग mang Aajtak24 News 

रीवा -  मध्य प्रदेश के रीवा जिले में सरकार द्वारा गरीबों को राहत देने के उद्देश्य से संचालित निशुल्क खाद्यान्न वितरण योजना में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं के आरोप सामने आ रहे हैं। सरकार के इस महत्वपूर्ण कदम के बावजूद, लाखों रुपये मूल्य का अनाज बाजार में बिकने की शिकायतें मिली हैं, जिससे गरीबों को मिलने वाला लाभ लूट लिया गया है। इस घोटाले ने प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

घोटाले की प्रमुख बातें:

सूत्रों के अनुसार, मऊगंज, गढ़, हनुमना और अन्य तहसीलों में उचित मूल्य की दुकानों पर गड़बड़ियों की शिकायतें लगातार आ रही हैं। अपात्र व्यक्तियों को राशन मिल रहा है, जबकि असली लाभार्थी वंचित रह जा रहे हैं। यह घोटाला सिर्फ राशन वितरण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि खाद्यान्न की जमाखोरी और अवैध बिक्री के खेल में भी शामिल है।

जिले में लाखों रुपये मूल्य के खाद्यान्न की कालाबाजारी हो रही है। कुछ दुकानदार अपात्र व्यक्तियों से सांठगांठ कर अनाज की जमाखोरी कर रहे हैं और खुले बाजार में ऊंचे दामों पर बेच रहे हैं। यह सब प्रशासनिक अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत से संभव हो रहा है, जिनकी निगरानी में यह भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है।

बैंक रिकॉर्ड में भी गड़बड़ी की संभावना:

जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, रीवा के अभिलेखों का मिलान यदि 31 मार्च से पहले किया जाए, तो अनियमितताओं का बड़ा खुलासा हो सकता है। पहले जब खाद्यान्न की कीमत 1 रुपये प्रति किलो थी, तब लाखों रुपये की राशि जमा होती थी। अब जब यह योजना निशुल्क हो गई है, तब इन राशियों का कोई लेखा-जोखा नहीं मिल रहा। इससे यह सवाल उठता है कि यह धन कहां गया और इसका उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया गया।

गैर-योग्य व्यक्तियों के नाम पर दुकानें:

अनेक उचित मूल्य की दुकानें ऐसे व्यक्तियों के नाम पर हैं जो खुद पढ़-लिख नहीं सकते, मशीन नहीं चला सकते, और जिनका कोई प्रशासनिक ज्ञान नहीं है। ऐसे विक्रेता कमीशन के लालच में अपनी दुकानें अन्य लोगों को सौंपकर व्यापार करवा रहे हैं। प्राइवेट व्यक्तियों को 6,000 से 7,000 रुपये मासिक देकर दुकानों का संचालन कराया जा रहा है, जिससे खाद्यान्न की घटतौली आम बात हो गई है – 50 किलो के बोरे में 2 से 4 किलो तक राशन कम दिया जा रहा है।

यह भी आरोप है कि कुछ दुकानदार लाभ के लिए पात्र लाभार्थियों के नाम पर फर्जी राशन कार्ड बनवा रहे हैं और उन्हें राशन वितरित करने के नाम पर अनाज को खुले बाजार में बेच रहे हैं। इससे गरीबों को उनके हक का अनाज नहीं मिल पाता, जबकि अपात्र लोग इसका लाभ उठा रहे हैं।

प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत का आरोप:

स्थानीय जनता का आरोप है कि इस भ्रष्टाचार में प्रशासनिक अधिकारी, सहकारी समिति के प्रबंधक और जनप्रतिनिधि भी शामिल हैं। संबंधित विभागों द्वारा उचित मूल्य की दुकानों का नियमित निरीक्षण नहीं किया जाता। बड़े पैमाने पर फर्जी राशन कार्ड बनाए गए हैं और अपात्र लोगों को खाद्यान्न दिया जा रहा है।

गरीबी रेखा से नीचे (BPL) सूची में शामिल कई परिवार महंगी गाड़ियां खरीद रहे हैं, जिससे साफ पता चलता है कि उन्हें अनुचित लाभ मिल रहा है। तहसील और राजस्व विभाग की पिछली जांच भी हुई ठंडे बस्ते में पहले भी कुछ उचित मूल्य की दुकानों की जांच हुई थी, लेकिन उचित कार्रवाई नहीं हुई।

इस बार भी प्रशासन ने लापरवाही बरती, तो यह घोटाला और बढ़ सकता है और गरीबों के हक का अनाज खुले बाजार में बिकता रहेगा।

क्या होना चाहिए?

  1. सभी उचित मूल्य की दुकानों का गहन निरीक्षण किया जाए: नियमित निरीक्षण और ऑडिट के माध्यम से अनियमितताओं का पता लगाया जाए।

  2. बैंक अभिलेखों की जांच कर अपात्र व्यक्तियों की पहचान की जाए: अनाज के वितरण और संबंधित वित्तीय लेन-देन की पूरी जांच आवश्यक है।

  3. राशन की कालाबाजारी रोकने के लिए उचित मूल्य की दुकानों पर CCTV कैमरे अनिवार्य किए जाएं: इससे दुकानों के अंदर की गतिविधियों की निगरानी की जा सकेगी।

  4. घटतौली करने वाले दुकानदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो: दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई और उनकी लाइसेंस रद्द की जाए।

  5. संबंधित राजस्व अधिकारियों और तहसीलदारों द्वारा हर दुकान का नियमित सत्यापन किया जाए: ताकि कोई भी दुकान बिना जांच के न खुली रहे।

प्रशासन क्या करेगा?

अब देखना यह है कि संभागीय आयुक्त, जिला कलेक्टर और अन्य प्रशासनिक अधिकारी इस भ्रष्टाचार के खिलाफ क्या कार्रवाई करते हैं। क्या वे इस बड़े घोटाले का पर्दाफाश करेंगे या फिर यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

अगर समय रहते सख्त जांच और कार्यवाही नहीं हुई, तो आने वाले समय में सहकारी समितियां और उचित मूल्य की दुकानें दिवालिया हो सकती हैं, और गरीबों के हक का अनाज खुले बाजार में बिकता रहेगा।

जनता की उम्मीदें:

जनता की उम्मीद है कि प्रशासन इस घोटाले की गहराई से जांच करेगा और भ्रष्ट अधिकारियों तथा दुकानदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा। साथ ही, उचित मूल्य की दुकानों के संचालन में पारदर्शिता लाने के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे।

अगर ऐसा नहीं हुआ तो यह घोटाला न केवल रीवा बल्कि पूरे मध्य प्रदेश में सरकार की योजनाओं की विश्वसनीयता को कमजोर करेगा। इस समय जनता प्रशासन से सख्त कदम उठाने की मांग कर रही है ताकि गरीबों के हक का अनाज सही लोगों तक पहुंचे और भ्रष्टाचार का अंत हो सके।




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