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पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा: मिथुन बोले—सेना बुलाओ, नहीं तो नहीं होगा निष्पक्ष चुनाव chunav Aajtak24 News |
कोलकाता – पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला बीते कुछ दिनों से सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में है। 8 से 12 अप्रैल के बीच वक्फ (संशोधन) अधिनियम के विरोध में शुरू हुए प्रदर्शनों ने देखते ही देखते शमशेरगंज, सुती, धूलियन और जंगीपुर जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों को हिंसा की आग में झोंक दिया। इस हिंसा में अब तक तीन लोगों की मौत, सैकड़ों गिरफ्तारियां, और हजारों लोगों के विस्थापन की पुष्टि हो चुकी है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि राज्य सरकार को केंद्रीय एजेंसियों की मदद लेनी पड़ी है। इस बीच अभिनेता और भाजपा नेता मिथुन चक्रवर्ती ने राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार और गृहमंत्री अमित शाह से चुनाव के दौरान सेना की तैनाती की अपील की है, ताकि राज्य में निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित किया जा सके।
"मैंने कई बार अनुरोध किया है और अब भी गृह मंत्री से अनुरोध कर रहा हूं। कम से कम चुनाव के दो महीने के दौरान सेना तैनात की जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो निष्पक्ष चुनाव असंभव होंगे," — मिथुन चक्रवर्ती, भाजपा नेता
हिंसा की चिंगारी: वक्फ संशोधन से उपजा असंतोष
इस बार हिंसा की जड़ें वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 से जुड़ी हुई बताई जा रही हैं। इस अधिनियम का विरोध करते हुए कुछ मुस्लिम संगठनों ने प्रदर्शन किए, जो जल्द ही भड़क उठे और सांप्रदायिक हिंसा में तब्दील हो गए। ग्रामीण क्षेत्रों में मस्जिदों, दुकानों और घरों को जलाने की घटनाएं सामने आईं। कई स्थानों पर महिलाओं के उत्पीड़न और लूटपाट की शिकायतें भी दर्ज हुई हैं।
राज्यपाल पहुंचे मैदान में, CM को किया नजरअंदाज़
हिंसा के हालात का जायज़ा लेने के लिए राज्यपाल डॉ. सी.वी. आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के "दौरा टालने" के अनुरोध को ठुकराते हुए मालदा, शमशेरगंज, धूलियन, सुती और जंगीपुर के राहत शिविरों का दौरा किया।
"पीड़ित महिलाओं ने बताया कि उनके घरों में घुसकर हमला किया गया, गालियां दी गईं और उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया। वे सुरक्षा, पुनर्निर्माण और रोज़गार की मांग कर रही हैं।" — राज्यपाल डॉ. सी.वी. आनंद बोस
राज्यपाल की यह सक्रियता तृणमूल सरकार के लिए असहज करने वाली है। पहले ही राज्य की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं, ऐसे में राज्यपाल की ज़मीनी हकीकत को उजागर करने वाली गतिविधियाँ राजनीतिक दबाव को और बढ़ा सकती हैं।
महिलाओं की स्थिति पर NCW की पैनी नज़र
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अध्यक्ष विजया रहाटकर के नेतृत्व में एक टीम तीन दिन के दौरे पर मालदा और मुर्शिदाबाद पहुंची है। टीम हिंसा से प्रभावित महिलाओं और बच्चों की स्थिति का अध्ययन कर रही है। आयोग की रिपोर्ट आने वाले समय में राज्य सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।
"जब समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की कमी होती है, तब ही इस तरह की भयावह घटनाएं घटती हैं।" — विजया रहाटकर, अध्यक्ष, NCW
मिथुन की माँग और सियासी भूचाल
राज्य में लोकसभा चुनाव नज़दीक हैं और भाजपा बंगाल में खुद को मजबूत विपक्ष के तौर पर प्रस्तुत कर रही है। मिथुन चक्रवर्ती का बयान सिर्फ एक व्यक्तिगत अपील नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है। उनके बयान से भाजपा ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि राज्य में "ममता सरकार कानून-व्यवस्था को संभालने में विफल" हो चुकी है।
ममता सरकार की स्थिति
अब तक ममता बनर्जी ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि राज्यपाल और भाजपा नेताओं की “सक्रियता” को "राजनीतिक स्टंट" बताया जा सकता है। हालांकि, घटनाओं की गंभीरता और राज्यपाल की रिपोर्ट को लेकर तृणमूल सरकार पर दबाव बढ़ता जा रहा है।
हिंसा की राजनीति या राजनीति की हिंसा?
मुर्शिदाबाद की हिंसा ने एक बार फिर साबित किया है कि बंगाल में सांप्रदायिक तनाव और राजनीतिक प्रतिस्पर्धा एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हैं। मिथुन चक्रवर्ती की मांग और राज्यपाल की सक्रियता आने वाले दिनों में चुनावी बहस के केंद्र में होगी। इस बीच, हजारों पीड़ितों की सुध लेने और उन्हें पुनर्वास देने की ज़िम्मेदारी सरकार और प्रशासन की है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।