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स्कॉटलैंड की संसद में पहली बार हिंदूफोबिया पर प्रस्ताव: मंदिरों पर हमले और भेदभाव के खिलाफ उठी सशक्त आवाज़ aavaj Aajtak24 News |
नई दिल्ली - यूरोप में पहली बार हिंदू समुदाय के खिलाफ बढ़ते भेदभाव और सांस्कृतिक बहिष्करण के खिलाफ स्कॉटलैंड ने ऐतिहासिक पहल की है। स्कॉटिश संसद में 'हिंदूफोबिया' (Hinduphobia) के खिलाफ एक औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया है, जो न केवल स्कॉटलैंड बल्कि पूरे यूरोपीय संघ में अपनी तरह का पहला प्रस्ताव है। यह कदम अंतर-धार्मिक संवाद, सामाजिक समरसता और विविधता की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर माना जा रहा है।
प्रस्ताव का मूल उद्देश्य: धार्मिक नफरत के विरुद्ध विधायी पहलकदमी
इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को स्कॉटलैंड की एल्बा पार्टी की सांसद ऐश रीगन द्वारा संसद में पेश किया गया। प्रस्ताव स्कॉटलैंड में कार्यरत गांधीवादी संस्था की हालिया रिपोर्ट ‘Hinduphobia in Scotland’ के निष्कर्षों पर आधारित है। इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि किस प्रकार अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को लगातार धार्मिक घृणा, सांस्कृतिक असहिष्णुता और मंदिरों पर हमलों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु: भय, भेदभाव और बहिष्करण
स्कॉटलैंड की कुल आबादी लगभग 54 लाख है, जिसमें हिंदुओं की संख्या मात्र 0.3% यानी लगभग 16,000 है। इसके बावजूद, इस छोटे समुदाय को असमान व्यवहार, जातिगत टिप्पणियों, धार्मिक प्रतीकों की उपेक्षा और मंदिरों पर लक्षित हमलों का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार:
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हिंदू छात्रों को स्कूलों में सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के लिए ताना मारा जाता है।
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कुछ शिक्षण संस्थानों में हिंदू त्योहारों के प्रति अपमानजनक रवैया देखा गया।
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मंदिरों की दीवारों पर तोड़फोड़ और घृणास्पद नारों की घटनाएं सामने आई हैं।
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सामाजिक बहिष्कार और सार्वजनिक रूप से फब्तियां कसी जाती हैं।
गांधीवादी संस्था की भूमिका और सराहना
इस प्रस्ताव की आधारशिला बनी ग्लासगो स्थित गांधीवादी शांति संस्था ने स्कॉटलैंड में हिंदू समुदाय पर केंद्रित पहला व्यापक शोध प्रस्तुत किया है। स्कॉटिश संसद ने इस संस्था के प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए इसे “धार्मिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक योगदान” बताया है।
भारतीय मूल के नेताओं की प्रतिक्रिया
भारतीय काउंसिल ऑफ स्कॉटलैंड के अध्यक्ष नील लाल ने कहा,
"जब मंदिरों पर हमला होता है या हिंदू परिवारों पर फब्तियां कसी जाती हैं, तो यह केवल समुदाय पर नहीं, बल्कि स्कॉटलैंड के बहुलतावादी मूल्यों पर सीधा हमला होता है। यह प्रस्ताव हमारी आवाज को न केवल मान्यता देता है, बल्कि भविष्य में संरक्षण की भी गारंटी देता है।"
यूरोप में बढ़ता 'हिंदूफोबिया': क्यों जरूरी है यह कदम?
पिछले कुछ वर्षों में यूरोप के कई देशों में हिंदू प्रतीकों, ग्रंथों और धार्मिक स्थलों के अपमान की घटनाएं बढ़ी हैं। यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी और नीदरलैंड्स जैसे देशों में मंदिरों पर हमले, सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणियां और हिंदू संस्कृति के प्रति उपेक्षा की भावना देखी गई है।
राजनीतिक और सामाजिक महत्व
यह प्रस्ताव मात्र सांकेतिक नहीं है। यह सरकार से मांग करता है कि—
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हिंदूफोबिया को आधिकारिक रूप से नफरत अपराध (Hate Crime) की श्रेणी में शामिल किया जाए।
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स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदू धर्म के बारे में सकारात्मक और सटीक जानकारी दी जाए।
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सांस्कृतिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशासन, पुलिस और शिक्षकों को संवेदनशील बनाया जाए।
अंतरराष्ट्रीय समर्थन और संभावनाएं
भारत सरकार ने इस पहल का स्वागत करते हुए कहा है कि यह “विश्व मंच पर हिंदू अस्मिता की रक्षा के लिए एक साहसिक कदम” है। अगर यह प्रस्ताव पारित होता है, तो यह यूरोप के अन्य देशों में भी इसी तरह के विधायी प्रयासों को प्रेरित कर सकता है।
धार्मिक समरसता की दिशा में एक नया अध्याय
स्कॉटलैंड का यह प्रस्ताव न केवल हिंदू समुदाय की सुरक्षा की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि यह बहुलता, सहिष्णुता और समरसता को फिर से परिभाषित करता है। यह यूरोप में रह रहे उन लाखों भारतीय मूल के लोगों को आश्वस्त करता है कि उनकी आस्था, पहचान और अस्तित्व को मान्यता मिलेगी और उनके खिलाफ किसी भी प्रकार के भेदभाव को सहन नहीं किया जाएगा। यह एक प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि यथार्थपरक घोषणा है — कि हिंदूफोबिया को अब अनदेखा नहीं किया जाएगा।