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बैंक लोन हुआ सस्ता, आम आदमी को मिलेगी राहत rahat Aajtak24 News |
नई दिल्ली - भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने देश की मौद्रिक नीति में बड़ा बदलाव करते हुए चालू वित्त वर्ष 2025-26 की पहली द्विमासिक समीक्षा बैठक में रेपो रेट में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है। अब यह दर घटकर 6 प्रतिशत पर आ गई है। यह निर्णय आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की 7 से 9 अप्रैल तक चली बैठक के बाद लिया गया। गवर्नर संजय मल्होत्रा ने प्रेस वार्ता के दौरान यह जानकारी दी और कहा कि समिति ने सर्वसम्मति से इस कटौती को मंजूरी दी है। रेपो रेट में कटौती का सीधा फायदा आम उपभोक्ताओं को मिलेगा। खासकर जिन लोगों ने होम लोन, ऑटो लोन या पर्सनल लोन लिया हुआ है या लेने की योजना बना रहे हैं, उनकी मासिक किस्त यानी EMI अब सस्ती हो जाएगी। इसके साथ ही रियल एस्टेट और वाहन जैसे क्षेत्रों में मांग बढ़ने की उम्मीद है, जिससे देश की आर्थिक गतिविधियों को बल मिलेगा।
क्या है रेपो रेट और इसका क्या असर पड़ता है?
रेपो रेट वह ब्याज दर होती है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक अपनी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं। जब रेपो रेट कम होती है, तो बैंकों के लिए फंड लेना सस्ता हो जाता है और वे ग्राहकों को भी सस्ती दर पर लोन उपलब्ध करवाते हैं। इससे बाजार में नकदी प्रवाह बढ़ता है और मांग को प्रोत्साहन मिलता है। आरबीआई रेपो रेट के जरिए महंगाई पर नियंत्रण रखने और आर्थिक गतिविधियों को संतुलित करने की कोशिश करता है। इस बार जब महंगाई दर में कुछ नरमी देखी गई, तो आरबीआई ने आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए रेपो रेट में कटौती का फैसला किया।
नीतिगत रुख 'तटस्थ' से 'उदार' किया गया
इस बार रेपो रेट में कटौती के साथ ही मौद्रिक नीति समिति ने अपने रुख में भी बड़ा बदलाव किया है। समिति ने पहले जहां ‘तटस्थ’ (Neutral) रुख अपनाया हुआ था, वहीं अब उसे ‘उदार’ (Accommodative) बना दिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले महीनों में यदि जरूरत पड़ी तो नीतिगत दरों में और कटौती की जा सकती है, लेकिन फिलहाल उन्हें यथास्थिति पर रखा जाएगा।
गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि यह फैसला देश की आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के उद्देश्य से लिया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विक व्यापार में जारी तनाव और ऊंचे टैरिफ के कारण एक्सपोर्ट पर असर पड़ सकता है, जिससे घरेलू आर्थिक वृद्धि भी बाधित हो सकती है। ऐसे में नीतिगत रुख को ‘अकोमोडेटिव’ बनाए रखना जरूरी था।
रियल एस्टेट और निवेश को मिलेगा प्रोत्साहन
विशेषज्ञों का मानना है कि रेपो रेट में इस कटौती से सबसे बड़ा फायदा रियल एस्टेट सेक्टर को मिलेगा। ब्याज दरों में गिरावट के कारण होम लोन सस्ते होंगे, जिससे मकान खरीदने वालों की संख्या में इजाफा होगा। इससे हाउसिंग डिमांड बढ़ेगी और निर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। इसके अलावा, छोटे और मध्यम उद्योगों (MSMEs) को भी सस्ता कर्ज मिलने से उनकी पूंजीगत जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी। इससे निवेश बढ़ेगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।
महंगाई पर असर और कच्चे तेल की कीमतें
आरबीआई ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। इससे आयातित महंगाई पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। आरबीआई का मानना है कि यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें नियंत्रण में रहती हैं तो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति को काबू में रखा जा सकता है। आरबीआई ने यह भी कहा कि मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं, जो देश की औद्योगिक प्रगति के लिए सकारात्मक संकेत हैं।
यूपीआई पेमेंट लिमिट में बदलाव का अधिकार अब एनपीसीआई को
आरबीआई की इस द्विमासिक मौद्रिक नीति में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है। अब नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) को पर्सन-टू-मर्चेंट (P2M) यूपीआई ट्रांजैक्शन की लिमिट तय करने का अधिकार दे दिया गया है। फिलहाल यह लिमिट 2 लाख रुपए है, लेकिन अब एनपीसीआई जरूरत के मुताबिक इसे बढ़ा या घटा सकता है। हालांकि, पर्सन-टू-पर्सन (P2P) यूपीआई ट्रांजैक्शन की मौजूदा सीमा – 1 लाख रुपए – को यथावत रखा गया है। यह कदम यूपीआई इकोसिस्टम को और ज्यादा फ्लेक्सिबल और डायनामिक बनाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
गोल्ड लोन पर आएंगे नए दिशानिर्देश
आरबीआई गवर्नर ने जानकारी दी कि गोल्ड लोन को लेकर नए दिशानिर्देश जल्द ही जारी किए जाएंगे। हाल के दिनों में गोल्ड लोन से जुड़े मामलों में अनियमितताओं और बेमेल आकलनों को लेकर कुछ चिंताएं जताई गई थीं। ऐसे में केंद्रीय बैंक इस पूरे सिस्टम को और पारदर्शी और सुरक्षित बनाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने वाला है।
आगे की राह क्या हो सकती है?
आरबीआई ने साफ संकेत दिया है कि आने वाले महीनों में अगर महंगाई नियंत्रण में रही और वैश्विक आर्थिक परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो रेपो रेट में और कटौती की जा सकती है। हालांकि यदि वैश्विक स्तर पर कोई बड़ा आर्थिक संकट आता है या तेल की कीमतों में फिर से उछाल आता है, तो नीतिगत दरों में बदलाव पर विचार टाला भी जा सकता है।
इस बार की मौद्रिक नीति समीक्षा से आम आदमी को सीधी राहत मिली है। EMI में कमी से घरेलू बजट पर दबाव कम होगा, साथ ही बैंकिंग और निवेश गतिविधियों में तेजी आने की भी उम्मीद है। आरबीआई का यह कदम निश्चित रूप से मौजूदा आर्थिक माहौल में राहत देने वाला साबित हो सकता है। वहीं, UPI लिमिट और गोल्ड लोन को लेकर लिए गए फैसले डिजिटल इकोनॉमी और बैंकिंग पारदर्शिता को बढ़ावा देने की दिशा में मजबूत कदम हैं।