![]() |
प्रथम अपीलीय प्राधिकारी पारित कर रहे मनमाने आदेश |
इंदौर - प्रशासनिक कार्य में पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र सरकार ने सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 लागू किया। आम भाषा में इस आरटीआई एक्ट कहा जाता है। हालांकि यह एक बड़ी बदनसीबी ही कही जा सकती है कि 20 वर्षों में भी सरकारी अधिकारियों को इस एक्ट के बारे में पूरी तरह जानकारी ही नहीं है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि जिन अधिकारियों को जानकारी होती है वह भी दस्तावेज आम लोगों को देने में बहानेबाजी, आनाकानी और टालमटोल करते हैं। जहां तक आरटीआई एक्ट के पालन करवाने की जिम्मेदारी प्रथम अपीलीय प्राधिकारी की है तो वे भी महीनों तक अपील की सुनवाई ही नहीं करते हैं। आरटीआई एक्ट के उल्लंघन में सबसे आगे नगर निगम, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी, देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी और लोक निर्माण विभाग के अधिकारी हैं।
जानकारी अनुसार सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 में लागू किया गया। इस अधिनियम में ही यह प्रावधान है कि एक्ट लागू होने के 100 दिनों के अंदर प्रत्येक विभाग में लोक सूचना अधिकारी और अपील प्राधिकारी की नियुक्ति कर इस अधिनियम का पर्याप्त प्रचार किया जाना है, लेकिन यह एक विडंबना ही कहीं जा सकती है कि कई विभागों में तो आज तक धारा 4 के प्रावधानों का ही पालन नहीं किया गया है। वहीं नगर निगम, पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और पीडब्ल्यूडी अर्थात लोक निर्माण विभाग का आलम यह है कि यहां अधिकतर जानकारी प्रदान ही नहीं की जाती। पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और पीडब्ल्यूडी के अधिकारी तो यह कहते हुए खुले आम सुने जा सकते हैं कि केंद्र सरकार ने एक्ट लागू कर दिया पालन करना या नहीं करना तो हमारा काम है। उधर, सिक्के का दूसरा पहलू यह भी है कि जानकारी प्रदान नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ भी राज्य सूचना आयोग बहुत अधिक कड़ा एक्शन नहीं लेता, इस कारण भी लोक सूचना अधिकारी और अपील प्राधिकारी इसके पालन में आनाकानी कर रहे हैं।
लोक सूचना अधिकारी की मनमानी को ढंक रहे अपीलीय प्राधिकारी
लगभग सभी विभागों में प्रथम अपीलीय प्राधिकारी विभाग का मुखिया या बड़ा अधिकारी ही है। ऐसे में एक और लोक सूचना अधिकारी जानकारी देने में आनाकानी करते हैं। जब इसके खिलाफ अपील की जाती है तो अपीलीय प्राधिकारी भी अपने विभाग की जानकारी छुपाने के उद्देश्य से मनमाने आदेश पारित कर रहे हैं। पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी और पीडब्ल्यूडी के तो अपीलीय प्राधिकारी 6 महीने तक भी अपीलों की सुनवाई ही नहीं करते रहे हैं, जबकि अधिकतम 45 दिनों के अंदर अपील का निराकरण किया जाना है। लोगों को जानकारी नहीं देने वाले लोक सूचना अधिकारी के खिलाफ तो आरटीआई एक्ट में कार्रवाई का प्रावधान है लेकिन प्रथम अपील यह प्राधिकारी के खिलाफ इस एक्ट में कार्रवाई का प्रावधान नजर नहीं आता। इस कारण लोगों को यह जानकारी ही नहीं है कि प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के खिलाफ उसकी सेवा शर्तों का उल्लंघन करने पर कार्रवाई के लिए राज्य सूचना आयोग से मांग की जा सकती है।
अधिकारियों के ठेकेदार फर्मों से रिश्ते, कैसे हो एक्ट का पालन
आईटीआई एक्ट के पालन में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि नगर निगम हो या बिजली कंपनी यहां के अधिकतर अधिकारियों के ठेकेदार फर्म के अधिक साथ व्यवहारिक रिश्तेदारी है। इस कारण जहां लोक सूचना अधिकारी इन फार्मो से संबंधित जानकारी प्रधान नहीं करते तो अपीलीय प्राधिकारी भी इनके खिलाफ न तो कार्रवाई करते हैं न ही आदेश पारित करते हैं।