धमतरी - खेतों में फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले धुएं में मौजूद जहरीली गैसों के कारण न सिर्फ मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि वायु प्रदूषण भी बढ़ता है। इस समस्या को देखते हुए उप संचालक कृषि श्री मोनेश साहू ने किसानों से खेतों में फसल अवशेष जलाने से बचने की अपील की है।
उप संचालक ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करने वाली हानिकारक गैसों जैसे मीथेन, कार्बन मोनोअक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड तथा अन्य नाइट्रोजन ऑक्साईड का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। इसके अलावा, बायोमास जलाने से निकलने वाला धुंआ फेफड़ों की बीमारियों और कैंसर का कारण बन सकता है।
इसके अतिरिक्त, फसल अवशेष जलाने से मृदा की 15 सेंटीमीटर तक की ऊपरी परत में स्थित सभी लाभकारी सूक्ष्मजीवों का नाश हो जाता है, जिससे जड़ विकास प्रभावित हो सकता है। साथ ही, इसके कारण मित्र कीटों की संख्या कम हो जाती है, जिससे हानिकारक कीटों पर प्राकृतिक नियंत्रण नहीं हो पाता और कीटनाशकों का अधिक प्रयोग आवश्यक हो जाता है।
श्री साहू ने कहा कि एक टन धान के पैरे को जलाने से नाइट्रोजन, फास्फोरस, पौटेशियम और सल्फर जैसी महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की भारी क्षति होती है, जिससे खेतों की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। फसल अवशेष का उचित प्रबंधन कास्त लागत में कमी ला सकता है।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि फसल अवशेष जलाने की सूचना शासन के संज्ञान में आती है तो इसके लिए अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है। 0.80 हेक्टेयर तक के भू-स्वामी को 2500 रुपये का अर्थदण्ड और 0.80 से 2.02 हेक्टेयर या उससे अधिक के भू-स्वामी को क्रमशः 5000 रुपये और 15000 रुपये अर्थदण्ड का प्रावधान है।
फसल अवशेष के सही प्रबंधन के बारे में जानकारी देते हुए उप संचालक ने बताया कि फसल कटाई के बाद खेत में पड़े अवशेषों को हल्की सिंचाई और ट्राईकोडर्मा का उपयोग कर 15 से 20 दिनों में कम्पोस्ट में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे अगली फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्व मृदा में उपलब्ध होंगे, जो रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करके अधिक पैदावार प्राप्त करने में मदद करेंगे।