Karyasheli me uljhi jile ki chikitsa suvidha Aaj Tak 24 news

 

Karyasheli me uljhi jile ki chikitsa suvidha Aaj Tak 24 news 

शहडोल  -  विकास की मुख्य धारा से जोडऩे और मृत्यु दर कम करने के लिए सरकार ने चिकित्सा का लोकव्यापीकरण कर उसे लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया है। लेकिन फर्जबेजार मैदानी अमले ने अपने स्वार्थवृत्ति के कारण शासन के इस प्रयास पर पानी फेर दिया है। आदिवासी बहुल इस जिले में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों और उपस्वास्थ्य केन्द्रों की भरमार होने के बावजूद ग्रामीणों को कोसों दूर का सफर तय कर जिला मुख्यालय तक दौड़ लगानी पड़ती है। ग्रामीणों को आज भी समय से इलाज नहीं मिल पाता है और दर्जनों मौतें हर साल हो जातीं हैं। देहाती क्षेत्रों के लोग आज भी झाड़ फूंक और देशी दवाओं का सहारा लेते हैं। दूर देहाती क्षेत्रों में आज भी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कि देर रात सर्पदंश की घटना हो या कोई गंभीर रूप से बीमार हो तो उसे अल्प समय में ही उपचार मिल जाए। वर्षों से आसन जमाए बैठे बीएम ओगोहपारू के 30 बिस्तरा सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ खण्ड चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरके शुक्ला गोहपारू से मात्र 14 किमी दूर स्थित ग्राम लेदरा के निवासी हैं। करीब 20 वर्षों से यह इसी अस्पताल में पदस्थ हैं जबकि शासन का नियम यह है कि कोई भी राजपत्रित अधिकारी अपने गृहजिले में पदस्थ नहीं हो सकता है। इन्हे इस अस्पताल में अनुपस्थित पाए जाने के कारण एक बार यहां से हटाया भी जा चुका है। लेकिन जल्द ही घूम फिर कर फिर उसी अस्पताल में पहुंच गए। इनकेे द्वारा कभी उपस्वास्थ्य केन्द्रो का भ्रमण नहीं किया जाता है। बंद रहते हैं उपस्वास्थ्य केन्द्र उपस्वास्थ्य केन्द्रों का संचालन लगभग बेकार सा हो गया है। अधिकंाशत: केन्द्र बंद पड़े रहते हैं। गोहपारू में लगभग 45 की संख्या में उपस्वास्थ्य केन्द्र संचालित हैं। अधिकांश केन्द्र मनमानी के शिकार हैं, लफदा, लेदरा, सरसवाही, पलसऊ, करुआ आदि के केन्द्र देखे जा सकते हैं। रोगियों को यहां से कभी एक गोली भी नहीं मिल पाती है। हैरानी की बात है कि बड़े अफसर कभी इन केन्द्रों का औचक निरीक्षण भी नहीं करते हैं। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को मनमानी करने की मानो छूट सी मिली हुई है। अस्पताल की दवाएं बेच रहे उपस्वास्थ्य केन्द्रों के स्वास्थ्य कार्यकर्ता घरों में बीमार पड़े रोगियों को देखने जाते हैं और अस्पताल की दवाएं देकर उनसे पैसे ऐंठ लेते हैं। अस्पताल की जो दवाएं नि:शुल्क दी जानी चाहिए उनका सौदा किया जाता है। यहां भी स्वास्थ्य कार्यकर्ता 10-10 वर्षों से जमे हैं। उनकी भी जड़ें निकल आईं हैं, ड्यूटी के नाम पर वे हफ्ते में कभी एक दो दिन केन्द्रों में चले जाते हैं वह भी कभी दोपहर तो कभी शाम को केवल घण्टे दो घण्टे के लिए ही। शासन की मंशा क्या है और यहां क्या हाल मचा हुआ है दोनों में कितना अंतर है यह समझा ही जा सकता है।

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