राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री कार्यालय से समान नागरिक संहिता पर आया जवाब
संस्था न्यायालय ने की थी देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने की मांग
इंदौर (राहुल सुखानी) - संस्था न्यायाश्रय के अध्यक्ष अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने जानकारी देते हुए बताया कि संस्था द्वारा हिजाब विवाद की वजह से देश में चल रहे अस्थिरता के माहौल को सदैव के लिए समाप्त करने के लिए देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने की मांग राष्ट्रपति को की गई थी जिसके लिए संभाग आयुक्त कार्यालय इंदौर में ज्ञापन सौंप कर प्रधानमंत्री कार्यालय एवं राष्ट्रपति कार्यालय से कम्युनिकेशन किया गया था जिस पर दोनों ही कार्यालयों के जवाब प्राप्त हुए हैं जिसके अनुसार काहे शीघ्र ही देश में समान नागरिक संहिता लागू की जाएगी इसके लिए विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है।
राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रेषित पत्र में कहा गया था कि कर्नाटक के स्कूली शिक्षा अधिनियम 1983 के तहत उठा हिजाब विवाद राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय रूप ले चुका है राष्ट्र विरोधी तत्वों एवं हमारे देश भारत से ईर्ष्या रखने वाले कुछ विदेशी देशों द्वारा हमारे देश की वैश्विक छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से इस विवाद को धार्मिक स्वतंत्रता ऊपर हमला करार करते हुए नया मोड़ दे दिया है और संकुचित बुद्धि एवं सोच रखने वाले लोगों में यह भावना उत्पन्न की जा रही है कि देश अब धर्मनिरपेक्ष नहीं रहा है तथा अल्पसंख्यक समुदाय अब खतरे में है ऐसा कर कर राष्ट्र विरोधी ताकते हमेशा की तरह हमारे देश में फिर से अस्थिरता और सामाजिक वैमनस्यता का भाव उत्पन्न करना चाहते हैं। शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में किसी प्रकार का कोई धर्म, लिंग,जाति, रंग,वर्ण, जन्म स्थान इत्यादि किसी भी आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव अथवा विभेदीकरण ना हो, इस उद्देश्य से एक समान पहनावा अर्थात यूनिफॉर्म की अवधारणा का जन्म हुआ है, तथा इस अवधारणा को पूरे विश्व में मान्यता प्राप्त है और जो देश भारत को इस मामले में नसीहत दे रहे हैं उन देशों में भी यही एक अनिवार्य नियम के रूप में प्रचलन में भी है।
इस प्रकार के विवाद देश के लिए खतरे की घंटी
संस्था न्यायाश्रय के अध्यक्ष विधि विशेषज्ञ पंकज वाधवानी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को प्रेषित पत्र में लिखा था कि वर्तमान में भले ही हिजाब का मामला हो या अनियंत्रित बयानबाजी का मामला हो , धार्मिक भावनाओं को आहत पहुंचाने की बात हो अथवा एक दूसरे पर छींटाकशी कर लोक व्यवस्था भंग करने की बात हो या अन्य विभिन्न मामले हो, धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर आए दिन हमारे देश की सामाजिक एवं सांस्कृतिक सद्भावना पर कुछ लोगों द्वारा चोट पहुंचाई जा रही है और एक प्रकार से अस्थिरता का माहौल उत्पन्न में किया जा रहा है जो कि भविष्य में खतरे की घंटी है। भारत के संविधान में ही अनुच्छेद 44 के अंतर्गत समान नागरिक संहिता को लागू किए जाने की बात भी की गई है और यही इन सभी समस्याओं को समाप्त करने का एक सबसे सशक्त एवं प्रभावी साधन है आश्चर्य की बात है हमारे देश में स्वयं हमारे देश का सुप्रीम कानून एवं इसे निर्माण करने वाली संविधान निर्मात्री सभा के अनेक सदस्यों द्वारा यहां तक की संविधान के निर्माता कहे जाने वाले बाबा साहेब आंबेडकर ने भी देश में समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की बात पर जोर दिया था उसके बाद भी सरकार इस बात पर अमल क्यों नहीं कर रही है अथवा हमारे देश की राजनीतिक संप्रभुता अर्थात जनता को इसके लिए क्यों सरकारों को मजबूर नहीं किया जा रहा है यह समझ से परे है। समान नागरिक संहिता इन सभी समस्याओं की कुंजी है जो इन समस्याओं उसे हमें स्थाई रूप से निजात दिला सकती है अब समय आ गया है कि जो काम विगत कई दशकों से नहीं हुआ है उस कार्य को हम पूर्ण करें और समान नागरिक संहिता को लागू कर राष्ट्र की अस्मिता देश की गरिमा एकता अखंडता राष्ट्रवाद को अपने-अपने धर्म अपनी अपनी जाति और अपने-अपने संकीर्ण मतलबों से ऊपर रखें और मातृभूमि को उसका सर्वोच्च एवं उचित स्थान प्रदान कर एक सच्चा नागरिक धर्म निभाएं।
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