मुनि निंदा के फल से लक्ष्मीमति का जीव छछूंदर गधा अंधा सांप सूअर बनी
पर्व दिनों में उपवास के नियम से उच्च गति प्राप्त हुई-आचार्य श्री वर्द्धमान सागर
धामनोद (मुकेश सोडानी) - वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाधीश आचार्य श्री वर्द्धमान सागर 27 साधुओ सहित ग्रीष्म कालीन वाचना धामनोद में कर रहे है चतुर्विध संघ में उत्तर पुराण का स्वाध्याय चल रहा है संघस्थ मुनि श्री हितेन्द्र सागर आचार्य की आज्ञा अनुसार वाचना कर रहे है संघस्थ साधुओ श्रावक श्राविकाओं के प्रश्नो का समाधान आचार्य श्री वर्द्धमान सागर करते हैआज के स्वाध्याय में प्रसंग में श्री गणधर वर्द्त्त स्वामी से सत्यभामा रुक्मणि ने पूर्व पर्याय जानने की जिज्ञासा प्रगट की सत्यभामा की पूर्व की अनेक पर्याय में एक भील की पर्याय थी जिसमे भील तीन मकार मद्य मांस एवम मधु का त्याग के नियम दिगम्बर मुनिराज से लेते है इसके त्याग के फल में वह अगले भव में राजा का पुत्र फिर सौधर्म इन्द्र फिर सत्यभामा की पर्याय मिलती है
रुक्मणि रानी की पूर्व पर्याय में बताया कि लक्ष्मीमति का जीव एक मुनिराज के शरीर की मलिनता को हीन भावना से देखती है इस मुनि निंदा के कारण अगले भवो में उदुम्बर कुष्ठ रोगी फिर छछुंदर फिर सांप गधा अंधा सांप अंधा सुवर फिर नाविक की पुत्री बनती है जन्मते ही माता पिता कुछ समय बाद मर जाते है
नानी पालन करती है
लक्ष्मीवती की पर्याय में जिस मुनिराज श्री समाधि गुप्त जी को देखती है उनके दर्शन कर प्रतिमायोग में स्तिथ मुनिराज को मच्छरों के उपसर्ग से बचाव हेतु उन्हें दूर करती रहती है
फिर मुनिराज से धर्म उपदेश सुनती है
बुद्धिमती का यह जीव नाविक पुत्री पर्व अष्टमी एवम चतुर्दशी के उपवास के नियम लेती है
जिनेन्द्र भगवान के दर्शन करती है
फिर एक आर्यिका माताजी के साथ रहती है
आर्यिका माताजी सानिध्य में समता पूर्वक मरण कर 16 वे स्वर्ग में देवी होकर आयु पूर्ण कर रुक्मणि की पर्याय में आती है
आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी ने कथानक को स्पष्ट कर बताया कि मुनि निंदा का क्या फल मिला और बाद में पर्व दिनों में उपवास का क्या उच्च फल मिला उपरोक्त जानकारी जेन समाज के
राजेश पंचोलिया द्वारा दी गई।
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