स्व. देवकुंअर शर्मा की तृतीय पुण्यतिथि पर काव्य सुमन अर्पित किए
मनावर (पवन प्रजापत) - साहित्यकार राम शर्मा परिंदा की माताजी स्व. देवकुंअर शर्मा की तृतीय पुण्यतिथि के अवसर पर मकर संक्रांति को ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें देश के साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से मां का गुणगान कर शब्द सुमन अर्पित किए । कार्यक्रम की शुरुआत वीरेंद्र दसौंधी वीर खरगोन ने सरस्वती वंदना से की और एक सुंदर स्वरचित भजन प्रस्तुत किया । इंदौर के वरिष्ठ कवि अनिल ओझा ने मां की ममता का बखान करते हुए कहा कि बंटवारा नहीं कर सकते मां की ममता का, सदा रखती है मां भाव समता का । हाटपिपल्या, देवास के साहित्यकार हरिशंकर पाटीदार ने कहा कि सब रिश्तों से प्यारी मां, हिमालय से दुख झेल कर भी कभी नहीं हारी मां । सागर के साहित्यकार रामगोपाल निर्मलकर ने मां की महत्ता बताते हुए कहा कि अपनों की बात हो तो मां सबसे पास है,रूठ जाए सारा जहां तो मां ही एक आस है । छतरपुर के साहित्यकार बलराम यादव ने कहा कि मां देवकुंअर थी देवकी सी माई, सुंदर छवि लगे सदा सुखदाई । मनावर के साहित्यकार डॉ जगदीश चौहान ने नेताओं पर व्यंग्य कविता सुनाई । धामनोद अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अध्यक्ष ओमप्रकाश कुशवाह ने अपने गीत में कहा कि गुरु मात-पिता गुरू बन्धु सखा । शाजापुर की साहित्यकार हंसा पाटीदार ने मां गुणगान करते हुए कहा कि ममता की आप मूरत थी, ईश्वर की ही सूरत थी,जीवन के हर रास्ते पर,मां तेरी जरूरत थी । इंदौर के कवि विनोद विनम्र ने कार्यक्रम संचालन करते हुए अपने गीत में कहा कि अपने आंचल का क्षीर पिलाती है खुद भूखी रहे पर हमको खिलाती है । राम शर्मा परिंदा ने अपनी कविता में मां की महत्ता बताते हुए कहा कि दिखावा वहां कहां होता है, मां का मंत्र बस मां होता है । इंदौर की कवियित्री बृजबाला गुप्ता ने अपने गीत में कहा कि सदा रहे मां तू इस दुनिया में हमसाया बन कर । राजपुर के कवि दिलीप कुशवाह ने कहा कि मां क्या गई घर की रौनक चली गई, ऐसा लगता है कि मेरी सारी दौलत चली गई । मनावर के गीतकार राजा पाठक ने भी शब्द सुमनों से भाव अर्पित किए । कार्यक्रम का आभार तकनीकी सहायक रघुवीर सोलंकी बड़वानी ने जताया ।
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