पारिवारिक मामलों में क्रिमिनल कानून का बढ़ता हस्तक्षेप सामाजिक ताने-बाने के लिए घातक - फैमिली लाॅ पर रिसर्च
कानून मंत्री को फैमिली लाॅ में संशोधन के कानूनी सुझाव प्रेषित
बढ़ती तलाक दर चिंता का विषय,शादी की अपेक्षा लिव इन की ओर बढ़ता रुझान
इंदौर (राहुल सुखानी) - इंदौर के अधिवक्ता एवं लॉ प्रोफेसर पंकज वाधवानी ने केंद्रीय कानून मंत्री को फैमिली लॉ में आवश्यक सुधार करने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव प्रेषित किए हैं जिसमें प्रमुख रूप से यह मांग की गई है कि पारिवारिक मामलों में आपराधिक कानूनों का दखल समाप्त किया जाए। आपराधिक कानूनों की वजह से पति पत्नी के रिश्ते में जो दरार आती है वह रिश्ते को ही समाप्त कर देती है और इस वजह से भारत में तलाक दर तेजी से बढ़ रही है जो कि आगे चलकर सामाजिक ताने-बाने को और अधिक नष्ट कर देगी।
अधिवक्ता पंकज वाधवानी ने विभिन्न आंकड़ों के माध्यम से बताया है कि पिछले 10 सालों के आंकड़ों में देखें तो भारत में प्रति 1000 विवाह में से लगभग 7 विवाह तलाक की वजह से समाप्त होते थे, किंतु यह आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है वर्तमान आंकड़ों की ओर यदि गौर करें तो यह प्रत्येक 200 विवाह में 3 विवाह तक पहुंच गया है जोकि सीधे-सीधे दोगुना है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में रोज लगभग 22 से 25 तलाक याचिकाएं दाखिल हो रही हैं। यही स्थिति अब अन्य शहरों की भी होती जा रही है जनसंख्या के मान से तलाक प्रकरण की दर तेजी से बढ़ रही है।
*प्रत्येक राज्य में बढ़ रहे हैं तलाक के मामले*
फैमिली लॉ पर कानूनी रिसर्च करते हुए एडवोकेट पंकज वाधवानी ने बताया कि सामाजिक व्यवस्था में शादी अथवा विवाह बंधन का महत्वपूर्ण स्थान है। विवाह आदि काल से चला आ रहा है। प्रत्येक धर्म में विवाह के अपने रीति रिवाज और नियम होते हैं। विवाह का मुख्य उद्देश्य महिलाओं और बच्चों को भरण पोषण करना, वंश को बढ़ाना, पुरुषों को दायित्वाधीन बनाना इत्यादि ही नहीं होता बल्कि सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक होता है। पश्चिमी देशों से लिव इन परंपरा का अनुसरण भारत के मेट्रो शहरों में तो लंबे समय से प्रारंभ हुई गया था किंतु यह स्थिति कमोबेश हर राज्य में वर्तमान में हो चुकी है और तेजी से बढ़ रही तलाक दर, युवा पीढ़ी में विवाह के प्रति अरुचि और लिव इन रिलेशन के प्रति रुझान अत्यंत ही चिंताजनक है जो सामाजिक ताने-बाने समाप्त कर एक पारिवारिक अराजकता का माहौल उत्पन्न करने का संकेत दे रहे हैं।
*विश्व के अन्य देशों से स्थिति बेहतर*
विभिन्न आंकड़ों से प्राप्त तथ्यों के आधार पर पंकज वादवानी अधिवक्ता ने जानकारी दी कि एक-दो दशक पूर्व के आंकड़े यह दर्शा रहे हैं कि भारत में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार और बंधन के रूप में प्रत्येक धर्म में देखा गया है और इसके प्रति विवाह के दोनों पक्षकार अत्यंत गंभीर रहकर पूरा जीवन साथ बिताते रहे हैं। विवाह विच्छेद की संभावनाएं अत्यंत कम रही हैं भारत में प्रत्येक 1000 विवाहो में से 7 विवाह आंकड़ों के अनुसार विवाह विच्छेद अथवा तलाक हेतु आरक्षित रहा है। जबकि अन्य देशों में यह स्थिति नहीं है अमेरिका में प्रत्येक 100 में से 50 विवाह लगभग तलाक अथवा डाइवोर्स के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। कमोबेश यही स्थिति अन्य देशों की रही है स्वीडन में 54% रूस में 43% इंग्लैंड में 42% जर्मनी में 39% सिंगापुर में 17% इजराइल में 14% जापान में 2% श्रीलंका में 1.5% प्रतिशत और वर्तमान में भारत में यह 1% की ओर बढ़ चुकी है अर्थात प्रत्येक 100 शादियों में से एक शादी तलाक की ओर बढ़ रही है। निसंदेह अन्य देशों के आंकड़ों के सामने भारत की स्थिति वर्तमान में अच्छी दिखाई दे रही है किंतु पिछले कुछ वर्षों से जिस प्रकार से तेजी से तलाक के मामले बढ़े हैं वे भविष्य की एक भयावह तस्वीर को सामने ला रहे हैं।
*तलाक के प्रमुख कारण*
एक रिसर्च में सामने आया है कि भारत में तलाक के प्रकार मुख्यतः नगरीकरण, आधुनिकीकरण, मोबाइल इंटरनेट का बहु प्रयोग, व्यक्तिगत स्वतंत्रता घटती निर्भरता महिला सशक्तिकरण ससुराल पक्ष का व्यवहार बढ़ता मतभेद वैचारिक तालमेल का न मिलना कानूनों का दुरुपयोग इत्यादि सामने आया है। दहेज प्रताड़ना के मुकदमें अर्थात धारा 498 के केस लगने के उपरांत परिवार फिर से जुड़ पाना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जा रहा है इसी प्रकार भरण पोषण देने में त्रुटि करने वाले पति को जेल होने के पश्चात तलाक के प्रकरण भी बढ़ते हैं ऐसी स्थिति में काउंसलिंग एवं अनुभवी समाज शास्त्रियों की मदद ली जा कर इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है,अपराधिक मामला अथवा कानूनों का हस्तक्षेप पूरी तरीके से समाप्त कर देना चाहिए अन्यथा भविष्य में स्थिति और अधिक बिगड़ जाएगी।
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