चित्रगुप्त भगवान की अखण्ड ज्योति जलाकर मनाई भाई दूज
भिंड (मधुर कटारे) - चित्र गुप्त भगवान की अखंड ज्योति जलाकर एक अलग नये अंदाज़ मे भाई दूज मनाई गई,, जिसमे भगवान चित्रगुप्त की कथा का भी वर्णन किया गया, जिसमे बताया गया कि चित्रगुप्त एक प्रमुख हिन्दू देवता हैं। वेदों और पुराणों के अनुसार धर्मराज श्री चित्रगुप्त जी अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा करके न्याय करने वाले बताए गये हैं। भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के धर्माधिकारी हैं। इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें यमराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। यमराज जब 84 लाख योनियों के कार्य को ठीक ढंग से नही कर पा रहे थे क्युकी देव , दानव , ऋषि सब उनके समान शक्ति के थे जिस कारण यमराज ने ब्रह्मा जी से विनती की और कहां की मैं यह कार्य करने में असमर्थ हूं किरपा मेरी सहायता करे , ब्रह्मा जी चिंतित हो गए की इतनी बड़ी सृष्टि को संचालन कौन करेगा , इस चिंता में वो ध्यान में लीन हो गए और 11000 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उनकी आंख खुली तब उन्होंने अपने सामने एक श्याम वर्ण के पुरुष को खड़ा देखा और पूछा आप कौन हैं ? भगवान चित्रगुप्त ने बोला की मुझे मेरे माता पिता का तो नही पता पर हां मैं आपके भीतर ही गुप्त रूप से था ,अब आप ही मेरा नाम कारण कीजिए , फिर ब्रह्मा जी बोले आप मेरे काया में गुप्त रूप से विद्यमान हैं और आपके कारण ही मैने ये सृष्टि की रचना की हैं आपका चित्र भी मेरे मस्तिष्क में बना इसलिए आप चित्रगुप्त नाम से जाने जायेंगे और आप मेरे काया से निकले हैं इसलिए आप मुझे अधिक प्रिय हैं और आप मेरे समान शक्ति के मालिक हैं , आपको 3 लोक को संचालन करना हैं और 84 लाख योनियों का लेखा जोखा और उनके जन्म मरण , पुनर्जन्म का हिसाब करके उनको मुक्ति और जीवन देना हैं । ब्रह्मा जी ने भगवान चित्रगुप्त को उज्जैन नगरी में वैदिक यज्ञ संपन्न करवाया और उस यज्ञ से दो कन्या उत्पन हुई जिनसे भगवान चित्रगुप्त का विवाह करवाया गया उन दोनो कन्या का विवाह के लिए मनु और ऋषि को कन्यादान के लिए चुना गया , जिस कारण लोग उन दोनो कन्याओं को मनु और ऋषि कन्या भी कह देते हैं । उन दोनो कन्या से 12 पुत्र की प्राप्ति हुई , जो कायस्थ नाम से विख्यात हुए , चित्रगुप्त पूजन कार्य क्रम मे भानू प्रताप श्रीवास्तव, (पुजारी) अरुण श्रीवास्तव राजेश सक्सेना संतोष सक्सेना अभिषेक सक्सेना डॉ साकेत सक्सेना कुलदीप अभिषेक सक्सेना संतोष श्रीवास्त सक्षम श्रीवास्तव गिरधर गोपाल श्रीवास्तव कृष्ण गोपाल श्रीवास्तव सोमेंद्र श्रीवास्तव आकाश श्रीवास्तव अनूप श्रीवास्तव शैलेंद्र सक्सेना अमित सक्सेना बालमुकुंद श्रीवास्तव प्रदीप श्रीवास्तव संदीप उर्मिला श्रीवास्तव सुहानी श्रीवास्तव शिवानी श्रीवास्तव आकांक्षा श्रीवास्तव प्रतिमा श्रीवास्तव काजल श्रीवास्तव अंतरा सक्सेना सिंगापुर एवं अधिक संख्या में लोग उपस्थित रहे।
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