श्रीस्थाकवासी श्रमण संध के शताब्दी नायक उपाध्याय श्री मुलमुनि के देवलोक गमन से संध ने एक अमुल्य हीरा खो दिया - जयश्री जी व राजश्री जी मा.सा. | Shristhakvasi shraman sangh ke shatabdi nayak upadhyaksh shri mulmuni ke devlok gaman

श्रीस्थाकवासी श्रमण संध के शताब्दी नायक उपाध्याय श्री मुलमुनि के देवलोक गमन से संध ने एक अमुल्य हीरा खो दिया - जयश्री जी व राजश्री जी मा.सा.

श्रीस्थाकवासी श्रमण संध के शताब्दी नायक उपाध्याय श्री मुलमुनि के देवलोक गमन से संध ने एक अमुल्य हीरा खो दिया - जयश्री जी व राजश्री जी मा.सा.

जावरा (यूसुफ अली बोहरा) - श्री स्थाकवासी श्रमणसंध के गठन एकता के महानायक जगतवल्लभ जैन दिवाकर श्री चौथमल जी मा. सा. के वरिषठत्तम सुशिषय शताब्दी नायक बालब्रह्मचारी, चारित्रचुडामणी, संयम सुमेरू,श्रमणसंध के सुर्य  पुज्य उपाध्याय श्री मुलमुनि जी मा.सा.के महाप्रयाण देवलोक गमन पर अपने भावपुर्ण  विचारो के साथ भावभरी  भावभीनी भावानजली देते महासती श्री जयश्री जी वमहासती श्री राजश्री जी मा. सा. ने  यहा जैन दिवाकर भवन मे आयोजित श्रध्दांजलि सभा मे व्यक्त किये।

महासती द्बय ने बताया कि कैसे मात्र 16 वर्ष की आयु मे माता भीखी बाई पिता बस्तीमल जी गादिया पाली ने अपने जिगर के टुकडे को जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज को संयम के लिए सोप दिया।महासती द्बय ने बडी करूणामय शैली मे कहा कि अपने संयम के 81 वर्ष पुरे करनेवाले इस महापुरुष ने पुरे देश मे उग्र विहार कर मानव कल्याण सैवा जीवदया तथा अपने कर्मो की निर्जरा करने का अलख जगाया मुलमुनि आजातशत्रु थे बहुत ही सरल सोम्य किन्तु स्पष्ट वक्ता थे।महासती जय श्री ने बताया कि राजश्री जी मा. सा. की दीक्षा उपाध्याय श्री मुलमुनि व प्रर्वतक श्री रमेशमुनी जी की निश्रा व आर्शीवाद मे ही हुई। एसे महापुरुष शताब्दी नायक ने अपने गुरू चौथमलजी मा. सा. के पावन तीर्थ वल्लभवाडी कोटा मे ही वह भी रविवार के दिन ही 15 धण्टे के सन्थारे संलेखना के साथ अपनी अन्तिम सांसो को वश्राम दिया।एसे महापुरुष के जीवन व विचारों को अपने जीवन मे आत्मसात करेगं तो ही उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी।

भावानजली सभा को सम्बोधित करते हुए अ. भा. जैन दिवाकर संगठन समिति के मार्गदर्शक सुजानमल कोचट्टा ने श्री वर्धमान स्थाकवासी श्रावकसंध जावरा व सकल श्रीसंध की और से श्रध्दांजलि भावानजली अर्पित करते हु कहा कि शताब्दी नायक एवं उपाध्याय तो अब शारिरिक रूप से हमारे  बीच नही किन्तु एक आराध्यदेव के रुप मे हमेशा हमारे बीच हमेशा हमेशा मोजूद रहेगे आज पुरे संध की उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि यही होगी की हम अपनी रसना इन्द्री जीव्हा पर कन्ट्रोल करे तथा जो भी बोले तोल तोल कर बोले  बोलने से पहले दस बार सोचे की हम जो बोल र है है इससे किसी के दिल को ठैस तो नही पहुँचेगी या कोई अर्नथ तो नही होगा बस  देखो सब तरफ मंगल ही मंगल होगा। सभा को श्री संध परामर्शदाता व श्वेताम्बर जैन वरिषठसंध के पुखराजमल कोचट्टा ने कहा कि जैन दिवाकर सम्प्रदाय की रीढ की थे उपाध्याय श्री मुलमुनि जी उनके देवलोक गमन से दिवाकर सम्प्रदाय को भारी क्षति हुई है.उन्होंने दिवाकर जी के बाद 100 तक दिवाकर सम्प्रदाय को मजबूती से सम्हाला है पर उनके आर्शीवाद एवं उनके बताए मार्ग पर दिवाकर सम्प्रदाय मजबूती से चलेगा।यही उनके प्रति सच्ची श्रध्दांजलि होगी सभा का संचालन करते हुए श्रीसंध महामंत्री कनक चौरडीया ने भी उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुँ श्रध्दा सुमन व्यक्त किये। धर्मसभा मे बडी संख्या मे धर्मालुजन माजुद थे मुख्य रूप से बसन्तिलाल चपडो,ओमप्रकाश श्रीमाल, मोतीलाल माण्डोत अभय सुराणा, नरेन्द्र राका महावीर डांगी आदि। अन्त मे  जतीन कोचट्टा के साथ सभी ने चार लोगस्स का पाठ किया तथा अपनी भावानजली दी।उक्त जानकारी सुजानमल कोचट्टा ने दी।

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