विचारों को मन में नहीं रखे विचार प्रकट करना चाहिये: मुनि पीयूषचन्द्रविजय | Vicharo ko man main nhi rakhe vichar prakat karna chahiye

विचारों को मन में नहीं रखे विचार प्रकट करना चाहिये: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

विचारों को मन में नहीं रखे विचार प्रकट करना चाहिये: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

राजगढ़/धार (संतोष जैन) - वर्षावास चल रहा है । यह समय धर्म आराधना, उपासना और तपस्या के लिये महत्वपूर्ण होता है । इस अवधि में जप, तप, भजन कीर्तन, सामायिक, प्रतिक्रमण आदि का विशेष महत्व है । हम चातुर्मास में पापों का विसर्जन कर पुण्य की प्राप्ति करते है । आज से प्रकाश का पखवाड़ा प्रारम्भ हो गया है । सुदी एकम को सभी श्रावक-श्राविका मांगलिक का श्रवण करके मंगल की कामना करते है । अध्यात्म का हो धर्म का क्षेत्र हो या संसारी क्षेत्र हो सभी कार्य सुदी पक्ष में करते है । वर्षावास के अन्तर्गत राजगढ़ श्रीसंघ में श्री गौतमस्वामीजी की लब्धि आराधना खीर एकासना के साथ हो रही है । श्री गौतमस्वामीजी का गृहस्थ नाम इन्द्रभूति था । वे ब्राह्मण थे । उनके पिता वसुभूति, उनके भाई वायुभूति और अग्निभूति थे । उनकी माता का नाम पृथ्वीमाता था । वैशाख सुदी 11 को इन्द्रभूति, वायुभूति ओर अग्निभूति तीनों भाईयों ने प्रभु महावीर से अपने 500-500 शिष्यों के साथ दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा प्राप्त करते ही इन्द्रभूति को त्रिपदी ओर चैथे ज्ञान की प्राप्ति हुई । उक्त बात गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने बतलाया कि श्री गौतमस्वामीजी ने छठ के पारणे छठ की तपस्या सारी उम्र की थी । तप के प्रभाव से उनके पास लब्धियों का अनन्त भण्डार था । भगवती सूत्र में 36 हजार बार प्रभु महावीर ने गौयम-गौयम करके गणधर गौतमस्वामी का नाम लिया । उक्त सूत्र को पढ़ने के लिये साधु को भी 6 माह तक आयंबिल तप करना पड़ता है । प्रभु के होठों पर हमेशा गौतम का नाम होता था क्योंकि वे प्रभु के हमेशा नजदीक रहते थे । हमेशा अपने विचारों को प्रकट कर देना चाहिये, मन में विचारों के संग्रह से द्वंद पैदा होता है । परमात्मा भी मां की भूमिका निभाते है अपने भक्तों के हितों की रक्षा करते है । प्रभु ने मनुष्य को देवों का प्रिय माना है इसलिये समवशरण में प्रभु जब भी देशना देते है तब देवानुप्रिय शब्द का उपयोग करते है । जो कुल का मद करता है उसे अगले भव में नीच कुल में जन्म लेना पड़ता है ।

विचारों को मन में नहीं रखे विचार प्रकट करना चाहिये: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

राजगढ़ श्रीसंघ में मुनिश्री की प्रेरणा से नियमित प्रवचन वाणी का श्रवण कर श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया राजगढ़ ने अपनी आत्मा के कल्याण की भावना से महामृत्युंजय तप प्रारम्भ किया था, आज उनका 18 वां उपवास है । आज सोमवार को श्री गौतमस्वामीजी के खीर एकासने का आयोजन हुआ जिसमें 100 से अधिक आराधकों ने तपस्या की । खीर एकासने के लाभार्थी श्री अनिलकुमारजी मनोहरलालजी खजांची एवं अट्ठम तप लाभार्थी श्री मथुरालालजी प्यारचंदजी मोदी परिवार का बहुमान राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से श्री पुखराज मांगीलालजी मेहता परिवार द्वारा किया गया । नमस्कार महामंत्र की आराधना मुनिश्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. की निश्रा में 14 अगस्त से 22 अगस्त तक श्रीसंघ में करवायी जावेगी । श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के तत्वावधान में प.पू. गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का पुण्योत्सव 11 से 18 सितम्बर तक श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ में मनाया जावेगा ।

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