36 उपवास की तपस्वी पिंकी सुमितजी गादिया का हुआ पारणा | 36 upwas ki tapasvi pinki sumitji gadiya ka hua parana
36 उपवास की तपस्वी पिंकी सुमितजी गादिया का हुआ पारणा
तप से तन, मन और जीवन होता है कुंदन: मुनि पीयूषचन्द्रविजय
राजगढ़/धार (संतोष जैन) - श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के तत्वाधान में शनिवार को दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्टम पट्टधर गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की दिव्यकृपा से उनके आज्ञानुवर्ती शिष्य मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री वैराग्ययशविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जिनचन्द्रविजयजी म.सा., मुनिराज श्री जनकचन्द्रविजयजी म.सा. एवं साध्वी श्री सद्गुणाश्रीजी म.सा., साध्वी श्री संघवणश्रीजी म.सा., साध्वी श्री विमलयशाश्रीजी म.सा. आदि ठाणा की निश्रा में शांतिलालजी गादिया की पौत्रवधु एवं पारसमलजी गादिया की पुत्रवधु श्रीमती पिंकी सुमितजी गादिया के 36 उपवास के तप निमित्त में विशाल चल समारोह इन्दौर अहमदाबाद हाईवे मार्ग स्थित तलहटी से प्रारम्भ हुआ । चल समारोह में राजगढ़, टाण्डा, भाबरा, बदनावर सहित कई स्थानों से श्रावक-श्राविका तप अनुमोदना हेतु सम्मिलित हुए ।
चल समारोह के पश्चात् श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ के श्री यतीन्द्रसूरि चैक में धर्मसभा में मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कहा कि जिनशासन में मुल में कभी भूल स्वीकार नहीं होती है हम लोग साधना के साथ तप, व्रत आदि करके धर्म आराधना करने के बाद पुण्य एकत्रित करते है और उस पुण्य को कषाय के भावों के कारण नष्ट कर देते है । तप का अर्थ इच्छा निरोध तप । तपस्वी पिंकी बहन ने 36 दिनों तक अपनी रसेन्द्रीय पर अंकुश लगाया । जिव्हा मानव को पाप की और धकेलती है । इस पर अंकुश पाना बहुत कठिन होता है । तप से तन, मन और इंसान का पूरा जीवन कंुदन बन जाता है । जीवन में लक्ष्मी और संत किसी का इंतजार नहीं करते है । संवाद से समस्या का हल निकलता है इस लिये संवाद करें, विवाद नहीं करें । इस अवसर पर मुनिराज श्री वैराग्ययशविजयजी म.सा. ने कहा कि इंसान तप के द्वारा कर्मो की निर्जरा करने का छोटा सा प्रयास करता है । भारत भूमि संस्कृति से पूर्ण है । खाने पीने के युग में यदि ऐसे तपस्वी के दर्शन होते है तो लगता है कि हम संस्कृति के दर्शन कर रहे है । तपस्या की अनुमोदना तभी सार्थक होगी कि हम भी उस तप के निमित में कुछ तप करें । पर्युषण पर्व में रात्रि भोजन का त्याग और सामायिक प्रतिक्रमण करने का प्रयास करें । साध्वी श्री तत्वलोचनाश्रीजी म.सा. ने कहा तप से मानव में चेतन्य जागृत होकर निकाचित कर्म क्षय होते है । तप ही ऐसे कर्मो को नष्ट करने में सक्षम है । जैन बनना आसान है पर जीवन में जैनत्व लाना बहुत कठिन है । हमारी नेम प्लेट में जैन जरुर है पर हमारी प्लेट जैन नहीं है । इसमें सुधार की जरुरत है । साध्वी श्री विरागयशश्रीजी म.सा. ने कहा कि मनुष्य जीवन दुर्लभ है पर यह दुर्लभ क्यों है इस बात पर किसी ने विचार नहीं किया । मानव ने मानव जीवन का मुल्य नहीं समझा । सिर्फ मानव योनि में व्रत नियम पच्चखाण लेकर मानव भव से देवयोनि और मोक्ष तक का सफर मानव तय सकता है । देवता नियम व्रत पच्चखाण नहीं ले सकते है ।
इन्होंने की अनुमोदना-
राजगढ़ श्रीसंघ से अध्यक्ष श्री मणीलाल खजांची, अनिल खजांची, टाण्डा श्रीसंघ से पारसमलजी जैन, प्रकाशजी लोढ़ा, कांतिलाल गादिया, सोनु गादिया, बलवाड़ी श्रीसंघ से राजेन्द्र जैन, श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट से मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ ने अपना उद्बोधन देकर तपस्वी की अनुमोदना की ।
इन्होंने किया बहुमान-
श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा तीर्थ की ओर से मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ, कैलाशचंद कांकीनाड़ा, तीर्थ के महाप्रबंधक अर्जुनप्रसाद मेहता ने आज की नवकारसी एवं स्वामीवात्सल्य के लाभार्थी श्री शांतिलाल गादिया, पारमल गादिया एवं कांतिलाल गादिया का बहुमान किया साथ ही 36 उपवास की तपस्वी पिंकी सुमितजी गादिया एवं 36 आयंबिल की तपस्वी श्रीमती मोहिनी बेन सालेचा, श्रीमती पुष्पाबेन वाणीगोता, मनीषा वाणीगोता एवं संगीता हुण्डिया, अट्ठम तप तपस्वी सीमाबेन वाणीगोता भीनमाल का बहुमान ट्रस्ट की और से श्रीमती मंजुबेन पावेचा एवं श्रीमती अरुणा सेठ द्वारा किया गया । राजगढ़ श्रीसंघ की ओर से अध्यक्ष मणीलालजी खजांची एवं अनिल खजांची ने अभिनन्दन पत्र भेंट किया, मेनेजिंग ट्रस्टी सुजानमल सेठ ने ट्रस्ट की ओर से व टाण्डा श्रीसंघ ओर से पारस जैन ने अभिनन्दन पत्र तपस्वी को भेंटकर उनका बहुमान किया ।
पत्रिका लेखन हुआ -
दादा गुरुदेव की पाट परम्परा के अष्टम पट्टधर गच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के देवलोकगमन पश्चात् श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन श्वे. पेढ़ी ट्रस्ट श्री मोहनखेड़ा महातीर्थ तत्वाधान में आयोजित अष्टान्हिका महोत्सव 11 सितम्बर से 18 सितम्बर 2021 तक कार्यक्रम की आमंत्रण पत्रिका का लेखन श्री पुखराजजी केसरीमलजी कंकुचोपड़ा परिवार आहोर से परिवार के सदस्य श्री अमृतलालजी कंकुचोपड़ा एवं ट्रस्ट के पदाधिकारीयों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ । प्रवचन के दौरान मुनिश्री ने बताया कि 30, 31 व 01 सितम्बर तक त्रिदिवसीय दादा गुरुदेव श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. की आराधना एकासने के साथ रखी गई है ।
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