पापाचार करने वाले जीव को अधोगति मिलती है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय | Papachar karne wale jiv ko adhogati milti hai

पापाचार करने वाले जीव को अधोगति मिलती है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

पापाचार करने वाले जीव को अधोगति मिलती है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

राजगढ़/धार (संतोष जैन) - 45 आगमों के अंतर्गत उत्तराध्ययन सूत्र पर हमारे यहां प्रवचन की श्रृंखला चल रही है उसमें बुद्धि का तत्व विचारणा में है । यदि मनुष्य के पास तुरन्त प्रकट होने वाली बुद्धि हो तो वह लाभ और हानि का तुरन्त निर्णय कर लेता है । मानवदेह हमें व्रत नियम धारण करने के लिये मिली है । नियम से साधक संयम की यात्रा कर सकता है । यदि हमारे जीवन में नियम नहीं रहेगें तो हमें यम के पास जाना ही है । पापाचार करने वाले जीव को अधोगति में जाना पड़ता है । नरक भी सात प्रकार के होते है । तत्वार्थसूत्र में उमास्वातीजी ने नरक के प्रकार स्पष्ट किये है । इन सात नरक में रत्नप्रभा प्रथम नरक में जीव की कम से कम 10 हजार वर्ष की आयु होती है । शर्कराप्रभा द्वितीय नरक में 1 से 7 सागरोपम तक का आयु होता है । वालुकाप्रभा तृतीय नरक में 3 से 7 सागरोपम तक का आयु होता है । पंकप्रभा चौथी नरक में 7 से 10 सागरोपम तक का आयु होता है । धुमप्रभा पांचवी नरक में 10 से 17 सागरोपम का आयुु होता है । तमप्रभा छठी नरक में 17 से 22 सागरोपम तक का आयु होता है । तमस्तमप्रभा सातवीं नरक में 22 से 33 सागरोपम तक का आयु होता है । जीव ऐसी नरक की यातनाओं को सहन करने के पश्चात् मानव जीवन को निगोद में आने के बाद प्राप्त करता है । तीर्थंकर का जीव तीन नरक तक की यातनाऐं सहन करता है । इन सात नरक में दस प्रकार की महावेदनाओं को सहन करना पड़ता है । वहां पर अनन्त भूख व प्यास सहन करना पड़ती है । तीन नरक तक परमाधामी देव जीव को सजा देते है । जीवन में ज्ञान का होना बहुत जरुरी है । उक्त बात श्री राजेन्द्र भवन राजगढ़ में गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीमद्विजय ऋषभचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न मुनिराज श्री पीयूषचन्द्रविजयजी म.सा. ने कही । आपने कहा कि पुन्यानुबंधी पूण्य के बल पर धन्यकुमार ने दान किया था उसी दान के कारण उनकी प्रसिद्धि हुई । वर्तमान समय में पैसे की प्रमुखता ने प्रेम को समाप्त कर दिया है । पहले हम जब कही बाहर जाते थे तो घर की चाबिया पडोसी को दे जाते थे । आपस में आदान प्रदान पडोसी के यहां होता था और बड़ा ही स्नेह होता था । वर्तमान में पैसे ने सारे प्रेम को खत्म कर दिया है ।

पापाचार करने वाले जीव को अधोगति मिलती है: मुनि पीयूषचन्द्रविजय

नमस्कार महामंत्र की आराधना हेतु सकल जैन श्रीसंघ राजगढ़ की विनती पर मुनिश्री ने अपनी सहमति प्रदान करते हुये कहा कि 14 अगस्त से 22 अगस्त तक यह आराधना राजगढ़ श्रीसंघ में करवायी जावेगी । 2 अगस्त से 4 अगस्त तक अट्ठम तप आराधना का आयोजन श्री मथुरालालजी प्यारचंदजी मोदी परिवार की ओर से रखा गया है ।


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