पंचायत में कच्चे बिल से हो रहा लाखो का भुगतान
ग्राम पंचायत जमुनिया में सचिब सरपंच के द्वारा लगाए जा रहे धुँधले बिल
हर्रई (रत्नेश डेहरिया) - जनपद पंचायत हर्रई क्षेत्र की पंचायत जमुनिया में निर्माण कार्यों के नाम पर कच्चे फर्जी बिल लगाकर जमकर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। केवल कच्चे बिल के माध्यम से सरपंच-सचिव द्वारा राशि निकालकर सप्लायर्स को फिक्स कमीशन देकर मौके पर निर्माण कार्य नहीं कराया जा रहा है। सप्लायर्स भी कमीशन के लालच में शासन को टैक्स का चूना लगाकर लाखों रुपए का लेनदेन कर रहे हैं। पंचायत में चल रहे इस फर्जीवाड़े की जांच की जाए तो बड़ा खुलासा हो सकता है। इधर जनपद पंचायत के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा भी बिलों के भुगतान में अनदेखी कर किसी तरह की आपित्त ना लेने से शासन को हर माह टैक्स के रूप में मिलने वाली राजस्व की हानि हो रही है।
पंचायतों में जीएसटी की प्रक्रिया को धता बताकर निर्माण कार्यों का भुगतान किया जा रहा है। पंचायतें निर्माण कार्य के बाद ऐसे सप्लायर को बिलों का भुगतान कर रहे हैं जिनके पास जीएसटी नंबर तक नहीं हैं। सप्लायर्स गिट्टी, रेत और ईंट तक के ऐसे फर्जी बिल दे रहे हैं जिसकी पात्रता में वह नहीं आते। आज तक 24 अखबार के संवाददाता के पास कई पंचायतों में निर्माण कार्यों के नाम किए गए भुगतान के ऐसे बिल मौजूद हैं जिनमें लाखों रुपए का भुगतान सप्लायर्स के खातों में किया गया है। पंचायतों में जिस तरह से फर्जी बिलों के माध्यम से राशि निकाली जा रही है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पंचायतों में होने वाला ऑडिट किस तरह से हो रहा है और ऐसे भुगतानों पर ऑडिट में भी कोई आपित्त नहीं ली जा रही है। जनपद पंचायत के अंतर्गत ऐसे कई मामले हैं जिनमें सरपंच और सचिवों ने राशि निकालने के बाद भी निर्माण कार्य नहीं कराया।
नहीं अपनाई जाती प्रक्रिया
किसी भी सप्लायर्स को साम्रगी सप्लाई के लिए लायसेंस, जीएसटी नंबर सहित अन्य प्रक्रिया अपनानी जरूरी है, उसके बाद ही वह सामग्री की सप्लाई कर सकता है, लेकिन हर्रई में ऐसे सैंकड़ों सप्लायर्स हैं जो पंचायतों में फर्जी बिलों की आड़ में हर साल लाखों रुपए का कारोबार कर रहे हैं। कारोबार के नाम पर हाथ में उनके कुछ नहीं है, लेकिन बिल के नाम पर वह लोहा, रेत से लेकर गिट्टी, सीमेंट और ईंट तक के बिल पंचायतों को दे रहे हैं। जो सप्लायर्स पंचायतों को केवल बिल देते हैं वह फर्जी बिल के रूप में कमीशन वसूलते हैं। इधर सप्लायर्स भी फर्जी बिल से शासन को टैक्स का नुकसान कर चपत लगा रहे हैं।
भरोसेमंद सप्लायर को ढूंढते हैं
निर्माण कार्य से पहले सरपंच और सचिव निर्माण सामग्री सप्लाई करने के लिए भरोसेमंद सप्लायर को ढूंढ़ते हैं। जो उनकी सुविधा अनुसार बिल लगाकर दे। उस बिल के आधार पर सप्लायर्स को भुगतान किया जाता है। भुगतान के बाद सरपंच, सचिव राशि वापस ले लेते हैं, क्योंकि कुछ पंचायतों के निर्माण कार्य कागजों में ही पूरे होते है धरातल पर नहीं। इसीलिए हर पंचायत अलग-अलग फर्जी फर्म भी बनाती है।