भाषा की एकरुपता से सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रवाद पनपता है - मणिमोहन चवरे
अभा साहित्य परिषद की हिंदी कार्यशाला संपन्न
मनावर (पवन प्रजापत) - अखिल भारतीय साहित्य परिषद मनावर द्वारा आॅनलाइन हिंदी कार्यशाला के तहत अनुस्वार-अनुनासिक के प्रयोग पर वेबिनार आयोजित किया जिसमें देश भर से सत्तर कलमकारों और शिक्षकों ने भाग लिया । कार्यक्रम की शुरुआत ब्रजेश पटवारी द्वारा सरस्वती वंदना से की गई । स्वागत भाषण महासचिव विश्वदीप मिश्र ने दिया । मुख्य वक्ता भाषाविद मणिमोहन चवरे,पूना ने कहा कि संवाद के लिए संपर्क भाषा की आवश्यकता होती है । सन् 1983 में केन्द्रीय हिंदी संस्थान ने हिंदी का आधिकारिक रुप बनाया । भाषायी एकता से समाज में सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रवाद पनपता है । नासिक्य व्यंजन का जहाँ प्रयोग होता है वहाँ हम अनुस्वार लगाते हैं और अनुस्वार एक वैकल्पिक व्यवस्था है, ये व्याकरण का बदलाव नहीं है । ऐसे ही वे स्वर जिनके उच्चारण में मुख के साथ नाक की भी सहायता ली जाती है, उन्हें अनुनासिक कहते हैं । आयोजन में उदाहरणों के द्वारा उन्होंने हर पहलू को समझाया । कार्यक्रम संचालन राम शर्मा परिंदा ने ,आभार डॉ जगदीश चौहान ने जताया और तकनीकी सहायक रघुवीर सोलंकी थे । कार्यक्रम में अभिरुचि के प्रधान संपादक रमेश बर्वे,धार जिलाध्यक्ष शरद जोशी शलभ, साहित्यकार जयंत जोशी,धरमपुरी तहसील अध्यक्ष ओमप्रकाश कुशवाह,महू अध्यक्ष विनोद गुर्जर,चंद्रमणि दफ्तरी,ब्रजेश बड़ोले, जालिम सिंह तोमर, नंदकिशोर विश्वकर्मा, अनिल ओझा, डॉ रजनी पांडेय, बृजबाला गुप्ता,तेजालाल पंवार, विनोद सोनगीर, वीरेंद्र दसौंधी, रामगोपाल निर्मलकर,पल्लवीश्री जोशी, कृष्णा जोशी, रंजना गोयल,मो खलील खान, दिलीप कुशवाह, कैलाश परमार, मुकेश मेहता, राजा पाठक, हंसा पाटीदार, हरिशंकर पाटीदार आदि उपस्थित थे ।