स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन योजना के अंतर्गत वेबिनार | Swami vivekanand carrier margdarshan yojna ke antargat webinar

स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन योजना के अंतर्गत वेबिनार

स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन योजना के अंतर्गत वेबिनार

इंदौर (राहुल सुखानी) - आज दिनांक 13/03/2021 को स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन योजना, जो मध्यप्रदेश सरकार की एक महत्वाकांक्षी है, के अन्तर्गत डॉ.जी.सी. केसरीवाल मेमोरियल स्पेशन लेक्चर सीरिज, शासकीय नवीन विधि महाविद्यालय, इन्दौर द्वारा प्रत्येक शनिवार को आयोजित किया जा रहा है। इस योजना के अन्तर्गत आज Legal Aid & Legal services Authority : An Anthology विषय पर महाविद्यालय द्वारा वेबीनार का आयोजन किया गया है । इस अयोजन के मुख्य वक्ता माननीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश शमरोज अहमद खान है । 

स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन योजना के अंतर्गत वेबिनार

इस वेबीनार के आरंभ में मुख्य वक्ता द्वारा विद्यार्थियों को विधिक सहायता एवं विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 से विस्तृत रूप से अवगत कराया । विधिक सहायता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 एवं अनुच्छेद 39-ए, एक प्रत्याभूत संवैधानिक अधिकार है । उन्होने ने कानूनी सहायता के सम्बन्ध में छात्रों को अवगत कराया कि जो व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के होने के कारण न्याय प्राप्त नही कर सकते है, उन्हें बिना फीस लिये विधिक सहायता उपलब्ध कराना अधिवक्ताओं और विधि विद्यार्थियों के एक मार्गदर्षन के रूप में कार्य करता है । वक्तव्य में उनके द्वारा बताया गया कि भारत सरकार ने सन् 1952 से विभिन्न कानून मंत्रीयों तथा विधि आयोगों की बैठकों में गरीबों के लिये कानूनी सहायता के प्रश्न पर विचार करना शुरू कर दिया गया था । सन् 1960 सरकार द्वारा कानूनी सहायता योजनाओं के लिये कुछ दिशा-निर्देश भी तैयार किये गये । वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 39-ए को जोड़ा गया, जिसमें राज्य पर यह कर्तव्य अधिरोपित किया कि कोई भी नागरिक जो आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के न्याय प्राप्त करने से वंचित हो रहा है, उसे निशुल्क विधिक सहायता प्रदान की जावें । सन 1980 में पूरे देष में कानूनी सहायता कार्यक्रम के निगरानी और निरीक्षण के लिये न्यायमूर्ति पी.एन.भगवती की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय स्तरीय समिति का गठन किया गया और सन् 1987 में भारत सरकार ने नागरिकों को निशुल्क विधिक सहायता प्रदान एवं संवैधानिक आधिदेश को पूरा करने के लिये विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 पारित किया गया, जो बाद में 1994 के अधिनियम द्वारा कुछ संशोधन के बाद यह अधिनियम अंततः 9 नवम्बर 1995 को लागू कर दिया गया । अपने व्याख्यान को आगे बढाते हुए बताया कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 में कुल 30 धाराएं है जिसे सात अध्यायों में विभाजित किया गया है। सबसे महत्वपूर्ण अध्याय राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण है । राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण का मुख्य संरक्षक भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा और प्राधिकरण का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त कार्यकारी अध्यक्ष होगा, जो राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायमूर्ति के परामर्श से नाम निर्दिष्ट किया जायेगा । अध्याय-3 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सम्बन्ध है, जिसमें उच्च न्यायालय का मुख्य संरक्षक होगा और उच्च न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होगा, जो राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से नामनिर्दिष्ट किया जायेगा । लोक अदालत के सम्बन्ध में विद्यार्थियों को बताते हुए उन्होने कहा कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा 19 खण्ड 5 के अन्तर्गत लोक अदालत में आने वाले प्रकरण निम्न हैः-

1. लोक अदालत के क्षेत्र के न्यायालय में लम्बित प्रकरण 

2. ऐसे प्रकरण जो लोक अदालत के क्षेत्रांगत न्यायालय में आते हो, लेकिन उनके लिये वाद संस्थित न किया गया हो । परन्तु लोक अदालत को ऐसे किसी मामले या वाद पर अधिकारिता प्राप्त नही होगी, जिसमें कोई अशमनीय अपराध किया गया हो । ऐसे प्रकरण जो न्यायालय में लम्बित हो, पक्षकारों द्वारा न्यायालय की अनुज्ञा के बिना लोक अदालत में नहीं लाये जा सकते है । यदि न्यायालय में लम्बित कोई वाद का पक्षकार यह चाहता है कि उसके प्रकरण का निपटारा लोक अदालत के माध्यम से हो तथा विरोधी पक्षकार इसके लिये सहमत हो तो उस दशा में न्यायालय की यह संतुष्टि हो जाने पर कि मामले को लोक अदालत द्वारा शीघ्र निपटाये जाने की संभावना है तो लोक अदालत उस प्रकरण का संज्ञान ले सकेगी तथा संबंधित कोर्ट उस प्रकरण को लोक अदालत में भेजने के पूर्व दोनों पक्षकारों को सुनवाई का समुचित अवसर देगा । लोक अदालत को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल कार्यवाही की शक्ति होगी। दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 195 के प्रयोजन हेतु की गई कार्यवाही सिविल कार्यवाही होगी और भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193-ए एवं धारा 219 से 228 तहत की गई कार्यवाही न्यायिक कार्यवाही मानी जावेगी ।  नालसा के कार्यो के बारे में सर ने बताते हुए कहा कि नालसा सम्पूर्ण देश में कानूनी सहायता कार्यक्रम और योजनाए लागू करने के लिये राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को दिशा निर्देश जारी करता रहता है । मुख्य रूप से राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, तालुक विधिक सहायता समितियों आदि को निम्नलिखित कार्य नियमित आधार पर करते रहने की जिम्मेदारी सौंपी गई    है:- 

1. सुपात्र लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना । 

2. विवादों को सौहाद्रपूर्ण ढंग से निपटाने के लिये लोक अदालतों का संचालन करना । 

उद्बोधन के दौरान उन्होने हुस्नआरा खातून का मामला और अजमल कसाब के मामले के मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाष डाला । जहा पर हुस्नआरा खातून के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने नि:शल्क विधिक सहायता को अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत मूल अधिकार माना है तो वही पर कसाब के मामलें में नि:शल्क विधिक सहायता उपलब्ध किये जाने पर ही मामलें का विचारण किया गया। अंत में उन्होनें विद्यार्थियों से अपील की कि नि:शल्क विधिक सहायता प्रदान करने में विधि विद्यार्थियों को आगे आकर अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहिये । 

इसके बाद इस बेवीनार के कार्यक्रम को महाविद्यालय के प्राचार्य माननीय डॉ.इनार्मुरहमान ने विद्यार्थियों को विधिक सहायता के सम्बन्ध में प्रोत्साहन देते हुए कहा कि संविधान का मिषन समाज के अन्तिम व्यक्ति तक न्याय पहॅुचाना है । इसी कारण संविधान की प्रस्तावना में नागरिको के लिये सामाजिक,आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय को सुनिष्चित किये जाने के बारे में प्रावधान है ।  इसी उद्वेष्य को ध्यान में रखते हुए संविधान  में अनुच्छेद 39ए जोड़ा गया। जिसके अन्र्तग्रत विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 अधिनियमित किया गया जिसके अन्र्तगत NLSA, SLSA,DLSA  vkSj  TLSA की स्थापना की गई। जिससे न्याय तक हर एक व्यक्ति की पहुँच हो सके। प्राचार्य ने अपने उद्बोधन में महाविद्यालय में संचालित विधिक सहायता क्लीनिक के बारे में भी बताया और कहा कि विद्यार्थियों को विधिक व्यवसाय में बने रहने के लिये समाज की आवश्यकताओं को जानना होगा और  उन आवश्यकताओं पूर्ति हेतु जो कानून बनाये गये है उनके प्रवर्तन एवं निष्पादन  की स्थिति को जानना होगा साथ ही साथ समाज के कमजोर वर्गो  के लिए चलायी जा रही योजनाओ का इस सम्बन्ध में आकलन करना होगा कि क्या वे समाज की आवष्यकताओं की पूर्ति कर रही है तो अगर हा तो किस सीमा तक । क्योकि अगर छात्र शुरू से ही इन सब चीजो के साथ जुड़ जाते है तो विधि के पाठ्यक्रम को पुरा करने तक वे कानून को अच्छे ढंग से समझने लगेगे।और इसके क्रियान्वयन का सही आकलन कर सकेगे । साथ ही उन्होने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण से सम्पर्क स्थापित करने और लोक अदालतो की प्रक्रिया को जानने के लिये इन अदालतो में सम्मिलित होने हेतु विद्यार्थियो को प्रोत्साहित किया।

अन्त में आभार प्रो. विपिन मिश्रा द्वारा व्यक्त किया गया । कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय के विद्यार्थी योगेष श्रीवास्तव एवं शुभेन्दू सेन द्वारा किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में तकनीकी सहायक श्री शंभू मेहता,  श्री राजेष वर्मा तथा स्वामी विवेकानंद केरियर मार्गदर्शन की सदस्या प्रो. श्वेता जैन एवं सदस्य प्रो. सुहैल अहमद वाणी एवं महाविद्यालय परिवार का विशेष योगदान रहा है।

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