जगतपुर का कॉफी बागान हुआ उपेक्षा का शिकार | Jagat pur ka coffee bagan hua upeksha ka shikar

जगतपुर का कॉफी बागान हुआ उपेक्षा का शिकार

जगतपुर का कॉफी बागान हुआ उपेक्षा का शिकार

डिंडौरी (पप्पू पड़वार) - वन परिक्षेत्र करंजिया अंतर्गत जगतपुर रेस्ट हाउस के सामने लाखों खर्च कर वन विभाग द्वारा तैयार कराया गया कॉफी बागान उपेक्षा का शिकार हो गया है। यहां कॉफी के पेड़ पौधे तो जरुर हैं, लेकिन इनमें फल नहीं आ रहे हैं। बागान में बंदरों का आतंक है। जिन पेड़ों में फल आते भी हैं उन्हें बंदर नष्ट कर देते हैं। मौसम की अनुकूलता के साथ आदिवासी जनजाति को रोजगार से जोड़ने के लिए यहां कॉफी बागान विकसित किया गया था। शुरुआती दौर में जब पेड़ तैयार हुए तो कॉफी बड़ी मात्रा में पैदावार भी हुई। विगत एक दशक से यहां वीरानगी नजर आ रही है।
38 साल पहले रोप गए थे पौधेः ग्रामीणों ने बताया कि जगतपुर के कॉफी बागान में वर्ष 1982 में वन विभाग द्वारा सैकड़ो कॉफी के पौधे रोपे गए थे। अब भी कॉफी के पेड़ों की संख्या सैकड़ों में है। कई पेड़ो से लगातार फल आ रहे हैं लेकिन ये नीचे गिरकर बर्बाद हो रहे हैं। बागान में बंदरों का भी आतंक होने से कॉफी के फलों को नुकसान हो रहा है। वन विभाग द्वारा आय का स्त्रोत बढ़ाने के लिए भी पौधे रोपे गए थे। कॉफी पौधों से मिलने वाले फलों को सुखाकर विक्रय भी किया जाता था। ग्रामीणों के अनुसार लगभग 10 साल तक कॉफी के फलों का विक्रय वन विभाग द्वारा किया गया। विभाग के जिम्मेदारों की मानें तो यदि पेड़ों की देखरेख की जाए तो लगभग दस क्विंटल कॉफी के फलों को सुखाकर बेचा जा सकता है जिसकी कीमत बाजार में लाखों रुपये होगी।


जनप्रतिनिधियों ने भी नहीं दिया ध्यानः ग्रामीणों ने बताया कि जुलाई अगस्त से कॉफी के पेड़ों में फल आना शुरू हो जाता है। 6 से 7 माह में यह फल पककर लाल हो जाते हैं। जब यह फल लाल हो जाएं तो इन्हें तोड़कर सुखाया जाता है। इसके बाद बीज की कॉफी बनाई जाती है। जगतपुर के कॉफी बागान से लगा हुआ वन विभाग का रेस्टहाउस भी है। यहां अधिकारियों सहित जनप्रतिनिधियों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन कॉफी बागान की दुदर्शा को ठीक करने कोई आगे नहीं आ रहा है। कॉफी बागान अमरकंटक से मात्र लगभग दस किलोमीटर दूर ही है। ऐसे में इसे विकसित किया जा सकता है।


ग्रामीण तैयार हैं रखरखाव के लिएः 

जगतपुर के बाशिंदे कॉफी बगान के रखरखाव के लिए तैयार भी हैं। उनका कहना है कि जगतपुर का कॉफी बागान पूरे क्षेत्र की पहचान है। लोगों का मानना है कि कॉफी बागान का जितना उत्पादन बढ़ेगा उतना ही जगतपुर क्षेत्र की पहचान बढ़ेगी। ग्रामीण विशाल मरावी ने बताया कि वन विभाग गांव के लोगों को अधिकृत कर दे और किसी अनुबंध के तहत भर्ती कर ले तो गांव के लोगो को रोजगार भी मिल जाएगा और कॉफी बागान का उत्पादन बढ़ने से विभाग को अतिरिक्त आय भी होगी।


वन विभाग पर निष्क्रियता के आरोपः 

जगतपुर में वन विभाग ने ही कॉफी बागान तो लगाया लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग ही अब इसे खत्म करने पर अमादा है। बताया गया कि विभाग द्वारा पौधों की देखरेख नहीं की जाती जिससे संख्या लगातार पेड़ों की कम हो रही है।
ग्रामीणों ने बताया कि वर्षो पूर्व कॉफी के साथ ही यहां चायपत्ती के भी पौधे रोपे गए थे और वो भी कुछ वर्षों में खत्म हो गए। बताया गया है कि यहां चायपत्ती के लिए मौसम तो अनुकूल तो नहीं है लेकिन कॉफी के लिए अनुकूलता होने के बाद भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है।

बन सकता है पिकनिक स्पॉटः

 क्षेत्र में कहीं भी पिकनिक स्पॉट नहीं है। लोगों का मानना है कि जगतपुर में कॉफी बागान को विकसित करने के साथ यहां पिकनिक स्पॉट भी बना सकता है। 70 वर्षीय सुंदर लाल का दर्द झलक गया उन्होने बताया कि 30 वर्ष पूर्व जब वो बागान से कॉफी के फल तोड़ने के बाद सुखाते हुए वन विभाग को देते थे तो बाहर के व्यापारी आकर ख़रीदते थे लेकिन अब न तो फल हैं और न ही कोई खरीदार। क्षेत्र के राम सिंह उरैती ने बताया कि अभी भी शासन और प्रशासन के लोग चाहे तो कॉफी का बागान फिर से खिल सकता है। अभी तो मुख्य रूप से देखरेख ही महत्वपूर्ण है। इससे जगतपुर के साथ ही क्षेत्र का न सिर्फ विकास होगा बल्कि एक पहचान भी मिलेगी।


वर्जन........
लगभग दस प्रतिशत पेड़ में ही फूल आ रहे हैं। बेंगलुरू से मैंने कुछ जानकारों को बुलाया था, लेकिन लॉकडाउन के चलते वे लोग डिंडौरी नहीं आ पाए। शीघ्र ही कॉफी बागान को लेकर कार्ययोजना बनाते हुए कार्य किया जाएगा।
मधु वी राज
वन संरक्षक डिंडौरी।

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