हिंसा का संबंध किसी को मारने से नहीं, मारने की दुर्भावना से है - ब्रह्मा कुमार नारायण भाई | Hinsa ka sambandh kisi ko marne se nhi marne ki durbhavna se hai
हिंसा का संबंध किसी को मारने से नहीं, मारने की दुर्भावना से है - ब्रह्मा कुमार नारायण भाई
उमरबन (पवन प्रजापत) - अहिंसा का अर्थ बहुत गहरा है। आत्मा अमर है और कोई भी आत्मा को मार नही सकता। सिर्फ शरीर मरता है। पाप किसी को थपड मारने से नहीं लगता, मारने की इच्छा से लगता है।
बिजली की तार को पकड़ने से कुछ नहीं होता। उन तारो में दौड़ रही विद्युत मनुष्य को नुकसान करती है* आप ने एक पत्थर उठाया और किसी का सिर तोड़ देने के लिए फेंका। नहीं लगा पत्थर और किनारे से निकल गया। कुछ चोट नहीं पहुंची, कहीं कुछ नहीं हुआ। लेकिन हिंसा हो गई। असल में जब आपने पत्थर फेंका, तब विचार के रुप में हिंसा प्रकट हुई।
पत्थर फेंकने की कामना की, आकांक्षा की, वासना की, तभी हिंसा हो गई। पत्थर फेंकने की दुर्भावना की, ये हिंसा हुई। पत्थर फेंकने की दुर्भावना अचेतन में छिपी है।
हिंसा का संबंध किसी को मारने से नहीं, हिंसा का संबंध मारने की दुर्भावना से है। अहिंसा के मार्ग में जो किसी को मारने की भावना से मुक्त हो जाते है वे भी पहुंच जाते हैं वहीं, जहां कोई योग से, कोई सांख्य से, कोई सेवा से, प्रभु-अर्पण से पहुंचता है। यह विचार इंदौर से पधारे धार्मिक प्रभाग के मुख्य प्रवक्ता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने मनावर रोड पर स्थित ब्रह्मा कुमारी सभागृह से नगरवासियों को अहिंसा के ऊपर ऑनलाइन संबोधित करते हुए बताया कि
अहिंसा की कामना या हिंसा की वासना से मुक्त हो जाने का क्या अर्थ है?** सारे भिन्न-भिन्न मार्ग बहुत गहरे में कहीं एक ही मूल से जुड़े होते हैं। जब तक मनुष्य के मन में लोभ है, तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है। जब तक आदमी इंद्रियों को तृप्त करने के लिए विक्षिप्त है, तब तक हिंसा से मुक्ति असंभव है।* स्थूल तथा सूक्ष्म इंद्रियां पूरे समय हिंसा कर रही हैं। जब आंख से किसी के शरीर को वासना के विचार से देखते है तब यह हिंसा है। आप अदालत में नहीं पकड़े जा सकते हैं क्योंकि अदालत के पास आंखों से किए गये बुरे को पकड़ने का अब तक कोई उपाय नहीं है।
जब आंख किसी के शरीर पर पड़ी और आंख ने एक क्षण में उस शरीर को चाह लिया, पजेस कर लिया, एक क्षण में उस शरीर की कशिश में तड़फ़ने लगा तो इस कामना का धुआं चारों तरफ फैल गया।
आंख से जो कर्म किया तो आंख शरीर का हिस्सा है। आंख के पीछे आप आत्मा हैं। आंख से हुआ, आपने किया; हिंसा हो गई। हिंसा सिर्फ छुरा घोंपने से नहीं होती, आंख के भटकने से भी हो जाती है।
इंद्रियां जब तक आतुर हैं किसी विकार के लिये, तब तक हिंसा जारी रहती है। इंद्रियां जब किसी बुरी इच्छा को आतुर नहीं रहतीं, तभी हिंसा से छुटकारा है।
सूक्ष्म हिंसा छोड़ें; वह तभी पैदा होती है, जब आपकी किसी कामना में अवरोध आ जाता है, अटकाव आ जाता है। अगर आप किसी के शरीर के दीवाने बन गये है और कोई दूसरा बीच में आ जाता है; या जिसका शरीर है, वही बीच में आ जाता है, तब हिंसा के भाव आयेगें, तेजाब डाल देंगे या किसी हथियार से आक्रमण करेगें या धमकी देंगे। हरेक के प्रति भाव रखो आप स्नेही हो । स्नेह की भावना से हिंसा के विचार नहीं उठते हैं।
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